आ रहा है निश्चित ही स्वर्णिम युग

March 1996

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इक्कीसवीं सदी महान परिवर्तनों की धुरी है। इस महान परिवर्तन का सबसे बड़ा पक्ष यह है कि एक ओर जहाँ सृजनात्मक शक्तियां जोर-जोर से उज्ज्वल भविष्य के सरंजाम खड़ी कर रही होंगी, वहीं दूसरी ओर ध्वंसात्मक शक्तियां मरते-मरते भी इतना कुछ कर गुजरेंगी जिन्हें आने वाली पीढ़ियाँ सैकड़ों वर्षों तक याद रखेंगी। यह एक तथ्य भी है और वास्तविकता भी, जिसे एक चेतावनी के रूप में लिया और तद्नुरूप अपने चिन्तन, चेतन एवं क्रिया-कलापों में परिवर्तन करके उज्ज्वल भविष्य की सुनिश्चित संभावना को साकार करने में सहायक भी बना जा सकता है।

अगला समय संकटों से भरापूरा है; इस बात को विभिन्न मूर्धन्यों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार विभिन्न प्रकार से जोरदार शब्दों में कहा है। पाश्चात्य देशों में जिन भविष्य वक्ताओं की भविष्य-वाणियाँ निन्यानवे प्रतिशत सही निकलती रही है, उनमें जीन डिक्सन, रुथमौअगोमरी आदि साथ डा. एलेक्स टेनस का नाम भी जोड़ा जा सकता है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘बियोन्ड कोइन्सिडेन्स’ में उन्होंने लिखा है कि पूर्वानुमान और भविष्य वाणी एक ही की है। भविष्यवाणी की विशेषता बताते हुए वे लिखते हैं कि पूर्वकथन व्यक्ति विशेष या समूह विशेष या कुछ सौ व्यक्तियों के बारे में हुआ करता है, जबकि भविष्यवाणी का सम्बन्ध समूचे राष्ट्रों से, महाद्वीपों से, समस्त मानव जाति या समग्र धरती से होता है। मेरी यह भविष्यवाणी समूचे मानव जीवन से संबंधित है।

सन् 1967 के अक्टूबर माह में जब वे वाशिंगटन के कैथोलिक विश्वविद्यालय में थे, तब एक दिन आराम कुर्सी पर बैठे अपने साथियों से बातचीत कर रहे थे। अचानक उनकी आँखें किसी दूरवर्ती दृश्य को देखते हुए स्थिर हो गयी और बरबस यह शब्द मुँह से निकल पड़े-- “मानव जाति, आज आज जो पथभ्रष्ट हो गयी है, उसे चेतावनी देने के लिए अगले दिनों एक ऐसी घटना जिसे समूचा विश्व देखेगा।” इस घटना ने डा. टेनस को अन्दर से झकझोर कर रख दिया। वे यह सोचने लगे कि क्या यह संकेत वास्तविक है या केवल मन की कल्पना मात्र। सन् 1972 में वे जब पेरिस के चेपल आफ एपिरियन्स चर्च में गये तब उन्हें उक्त भविष्यवाणी का समाधान मिल गया। उन्हें अन्तर्बोध हुआ कि सन् 2000 से पूर्व के कुछ वर्ष समूची मानव जाति के लिए जीवन मरण के दिन हैं। इन दिनों मनुष्य जाति को सर्वनाशी विभीषिकाओं का सामना करना पड़ेगा, इतने पर भी भौतिक घटनाओं की अपेक्षा विश्व की मानव जाति और धर्मतंत्र के लिए यह एक भव्य मोड़ का समय होगा। विश्व के विभिन्न धर्मों-संस्कृतियों के मिलन की दिशा में यह एक अनूठा कदम होगा। इसके लिए जो कुछ करना आवश्यक है, वह मार्ग भी सुझाई देगा और विचारशील लोगों द्वारा पराक्रम पूर्वक किया भी जायेगा। यह समय अब निकट है। जाति, लिंग, वर्ण, धन, भाषायें, धार्मिक मान्यताओं आदि के प्रकरण बरती जाने वाली विषमता का अन्त समय अब निकट आ गया। शस्त्र बल और धन बल की अपेक्षा इस नये युग में बुद्धि बल एवं संगठन का प्रभाव प्रत्यक्ष होगा।

अमेरिका की हरवर्ड यूनिवर्सिटी के सुप्रसिद्ध खगोल विज्ञानी ऐरिक जो. चैसन ने इस नये युग को “ए होल न्यू ऐरा” के नाम से सम्बोधित किया है। अपनी पुस्तक “कॉस्मिक डॉन” में उनने लिखा है कि ब्रह्माण्डीय योजना के अंतर्गत बीसवीं शताब्दी के अंत तक विशिष्ट प्रकार के अन्तरिक्षीय परिवर्तन होंगे। सूक्ष्म खगोल भौतिकी एवं जैव रासायनिक प्रक्रिया को देखकर यही कहा जा सकता है कि विश्व-ब्रह्माण्ड में एक नये प्रकार का परिवर्तन होगा जिसके अनुरूप मनुष्य को अपनी गतिविधियों का निर्धारण करना होगा। पदार्थ सत्ता के स्थान पर चेतन सत्ता की महत्ता को सर्वोपरि मानना होगा। चैसन ने इस नयी सभ्यता के शुभारंभ को “टेक्नोलॉजी सभ्यता के शुभारंभ को “टेक्नोलॉजीकली इन्टेलीजेन्ट लाइफ” नाम दिया है। उनके अनुसार इस नयी सभ्यता का आरंभ अपनी इसी पृथ्वी पर होगा जो अन्य ग्रह गोलकों की अपेक्षा कहीं अधिक व्यवस्थित एवं सुन्दर है। इस युग को उनने “लाइफ ऐरा” कहा है, जबकि आज के युग को “मैटर ऐरा” की संज्ञा दी है। ब्रह्माण्डीय परिवर्तन का वह चक्र बिलकुल समीप आ चुका है जिसमें पदार्थ की अपेक्षा चेतन तत्व को ही जीवन का मूल भूत आधार मानकर मनुष्य अपनी जीवनचर्या का निर्धारण करेगा। ब्रह्माण्ड की इस विशिष्ट परिवर्तन प्रक्रिया को उनने “कोस्मिकरिइनकार्नेषन” के नाम संबोधित किया है। इक्कीसवीं सदी का शुभारंभ यहीं से होने वाला है। ऐसी स्थिति में लोगों में नयी सूझबूझ और जागृति आयेगी और वे परस्पर स्नेह सहयोग और सद्भाव के साथ जीवन जी सकेंगे। ‘दि वन्डरफल वर्ल्ड टुमारो’ नामक अपनी कृति में हरबर्ट डब्ल्यू ओर्म्स स्ट्राँग ने भी इसी तरह बाइबिल के ईसाम ( 2:10-12-17) का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि “तब लोगों में घृणा, ईर्ष्या, और विद्वेष की वृत्तियाँ समाप्त होकर स्नेह-सद्भाव जगेगा। इक्कीसवीं शताब्दी में धरती पर जिस स्वर्ग की कल्पना की गयी है, वह मनुष्य में दैवीय गुणों के विकास से ही संभव हो सकेगी।”

अमेरिका की श्रीमती जीन डिक्सन की गणना विश्व के ख्यातिलब्ध भविष्य वेत्ताओं में प्रमुख रूप से की जाती है। उनके द्वारा महत्वपूर्ण घटनाओं के भविष्य कथन की सार्थकता को देखते हुए सन् 1970 में अमेरिका तथा विश्व के 300 से अधिक दैनिक समाचार पत्रों ने उनकी भविष्यवाणियों को प्रकाशित किया था। अमेरिका की ही सुप्रसिद्ध भविष्यवाणियों उल्लेख किया है जो सच्चाई की कसौटी पर खरी सिद्ध हुई है। चीन में साम्यवाद की स्थापना, अफ्रीकी समस्या, भारत का विभाजन और गाँधी जी की हत्या के सम्बन्ध में उनने जो पूर्व कथन किये थे, समयानुसार लोगों को ठीक वैसा ही देखने को मिला। अपनी एक अन्य कृति ”द काँल टू ग्लोरी” में उनने बताया है कि निकट भविष्य में एक ऐसा समय भी आयेगा जिसमें संसार का हर प्राणी अपने को मुक्त मानेगा। संसार के इस स्वरूप को उनने “यूनीफाइट वर्ल्ड” के नाम से पुकारा है और कहा है कि शीघ्र ही धार्मिक एकता-यूनिटी आफ रिलीजन का युग निश्चित ही आयेगा। रुथ मौंटगोमेरी को अतीन्द्रिय क्षमता’सम्पन्न महिला माना जाता है। उनका कहना है कि भविष्य के अंदर झाँकने और उसके स्वरूप को समझ सकने की क्षमता उन्हें अशरीरी दिव्य आत्माओं से प्राप्त होती है। इस अलौकिक चेतना को उनने “वाक-इन्स” के नाम से संबोधित किया है। प्रागैतिहासिक दिव्य आत्माएँ भी उक्त प्रयोजन की आपूर्ति में सहयोगी होती हैं। सन् 1981 में मिश्र के राष्ट्राध्यक्ष अनवर सादात की हत्या, अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के शासनकाल में “वाटरगेट काण्ड” ईरान के बादशाह के अपदस्थ होने की उनकी भविष्यवाणियाँ अक्षरशः सत्य निकली थीं। मौंटगोमेरी ने दिव्य जीवन एवं इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य के सम्बन्ध में कई पुस्तकें लिखी हैं। जिनमें से प्रमुख है (1) ‘हियर एण्ड हियर आफ्टर’ (2) ‘ए सर्च फार द ट्रूथ’ ‘ (3) ‘स्ट्रेर्न्जस एमाँग अस’ (4) ‘द वर्ल्ड बिफोर’ एमाँग अस’ (5) ‘ए वर्ल्ड बियोन्ड’ (6) ‘थ्रेस होल्ड टू टूमारो’ आदि।

अपनी कृति “थ्रैस होल्ड टू टूमारो” के अन्तिम अध्याय में विस्तारपूर्वक उज्ज्वल भविष्य के सम्बन्ध में उनने प्रकाश डाला है। इस नये युग को उनने “ऐक्वेरियन एज” के नाम से संबोधित किया है। उनके अनुसार बीसवीं सदी के अन्तिम कुछ वर्ष में में एक ओर जहाँ विध्वंसकारी गतिविधियाँ भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर ने केवल उन पर काबू पा लेंगी, वरन् नयी सृष्टि की रचना में भी समर्थ होंगी। इन्हीं दिनों भौतिकवाद की प्रधानता वाली मान्यता भी अपनी अन्तिम साँसें गिन रहीं होंगी और इक्कीसवीं सदी आते-आते लोग आदर्शवादी एवं आध्यात्मवादी विचारधारा के अनुरूप अपने क्रियाकलापों का निर्धारण करने लगेंगे। यद्यपि बीसवीं सदी के अंतिम दिनों तक एक और बर्बर विश्व युद्ध के छिड़ने की संभावना है, पर संसार कुछ प्राणवान लोगों के प्रयत्न और पुरुषार्थ के फलस्वरूप उसे विफल कर दिया जायेगा। इस सत्प्रयत्न को उनने “हरक्यूलियन ऐफर्ट्स” की संज्ञा दी है। नये युग का सूत्रपात जो इसी सदी में आरंभ हो चुका है, अब पल्लवित पुष्पित होता नजर आयेगा। ऐसी स्थिति को “काँड्स किंगडम” यानी “धरती पर स्वर्ग” कहा जायेगा।

इक्कीसवीं शताब्दी में ब्रह्माण्ड में “क्रियेटिव फोर्स” अर्थात् सृजनात्मक शक्तियों की सक्रियता बढ़ जायेगी जिससे समस्त मानव जाति के हित साधन का प्रयोजन पूरा होता हुआ दृष्टिगोचर होगा। उनके अनुसार इस तरह की अलौकिक -शक्ति-सामर्थ्य का स्त्रोत सामूहिक रूप से अपनाई जा रही ध्यान-साधना ही होगी। हार व्यक्ति वैचारिक दृष्टि से अपने को स्वतंत्र अनुभव करेगा। लोगों की आक्रामक एवं अपराधी प्रवृत्तियों को देखते हुए तृतीय विश्व युद्ध तो इस सदी के अंतिम वर्षों में हो जाना चाहिए, पर दूसरी ओर परमार्थ परायण शक्तियों की सक्रियता होने लगेंगी, साथ ही लोगों की अभिरुचियों में विशिष्ट प्रकार का परिवर्तन भी आयेगा। वे शहरों के आकर्षक एवं अप्राकृतिक जीवन की ओर भागने की अपेक्षा गाँव के सादगी भरे जीवन को ही अधिक पसंद करेंगे, फलस्वरूप जगगी। यू. एस. नेवल औब्जरवेटरी के विशेषज्ञ डा. गैर्नोट विंकलर का भी कहना है कि इन दिनों पृथ्वी की परिभ्रमण गति के समय में बड़ा भारी अंतर आया है, जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि इस सदी के अंत तक कुछ विशिष्ट प्रकार का परिवर्तन होना सुनिश्चित है। भविष्य-वेत्ता रुथ मौंटगोमरी ने अपनी एक अन्य पुस्तक “द वर्ल्ड बिफोर” में बताया है कि बीसवीं शताब्दी में जो समस्यायें अभी दिख रही हैं, उनका समापन होना सुनिश्चित है, क्योंकि मानव−शरीर में किसी दिव्य आत्मा ने जन्म ले लिया है और वह अपनी प्रचंड तप एवं आध्यात्मिक शक्ति से उन्हें उलट कर रख देगा। नये युग अर्थात् इक्कीसवीं शताब्दी को उज्ज्वल एवं प्रकाशपूर्ण बनाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। उनने उस दिव्यात्मा को “ल्म्यूरियन्स” के नाम से पुकारा है। उसकी प्रेरणा फलस्वरूप अच्छे लोगों का इस धरती पर बाहुल्य होगा। लोग बुद्धि के साथ-साथ हृदय की भाव-संवेदनाओं को भी महत्व देंगे जिससे दोनों का समन्वय होकर निरंकुश बुद्धिवाद की समाप्ति और आदर्शवादी भावनाशील वृत्तियों का विकास-विस्तार होगा। आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलेगा और प्राकृतिक नियम व्यवस्था के अनुरूप लोग अपनी जीवनचर्या का निर्धारण करेंगे। स्वजाति भक्षण के स्थान पर लोगों में परस्पर स्नेह-सहयोग की प्रवृत्तियां जगेंगी और वैर-वैमनस्य का समापन होगा। उनने इस युग को “वर्न्डस ऐरा” नाम दिया है और कहा है कि इस स्वर्णिम युग में किसी व्यक्ति विशेष का हस्तक्षेप न होकर प्रकृति की स्वसंचालित प्रक्रिया के अनुरूप ही प्राणियों की जीवनचर्या संचालित होगी। अपनी पुस्तक “स्ट्रेर्न्जस ऐमोंग अस” में तो उनने यहाँ तक कहा है कि इक्कीसवीं शताब्दी में ईसा जैसी महान आत्मा दूसरी बार इस पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। वह अपनी कार्यप्रणाली से समूची मानव जाति को प्रभावित-प्रेरित करेगी और उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगी। गिरों को उठाना, प्रसुप्तों को जाग्रत करना तथा जाग्रत आत्माओं को प्राणवान बनाकर उन्हें लोक सेवा में नियोजित करना ही उसका मूलभूत उद्देश्य है। इन दिनों यही हो भी रहा है। इक्कीसवीं सदी की गंगोत्री शांतिकुंज से जो प्रेरणा प्रवाह चल रहा है उसकी परिणति अगले ही दिनों मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण की चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता की पूर्ति के रूप में दृष्टिगोचर होने लगेगी। यह सुनिश्चित संभावना ही नहीं, वरन् एक तथ्य भी है।


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