रोज-रोज के सिर दर्द ने उन्हें परेशान कर रखा था। जिन्दगी की सारी सुविधाओं से घिरे रहने के बावजूद गहरी अशांति और बेचैनी ने उन्हें घेर रखा था। इसी कारण वह अपना साधारण काम-काज तक भी ठीक से नहीं कर पाते थे। देश-विदेश के अनगिनत हकीमों के भी इलाज बेकार गए, किसी से कुछ भी फायदा न हुआ। सिर दर्द के कारण उन्हें अपना सारा दिन बिस्तर पर छटपटाते हुए बिताना पड़ता था। कोई दवा कारगर साबित नहीं हो रही थी। कभी -कदर कोई दवा अपना थोड़ा बहुत असर दिखाती, कुछ समय के लिए सिर दर्द कम भी होता, परन्तु रोग जहाँ का तहाँ।
दवा बेअसर साबित होने पर दुआ की तलाश की जाने लगी। वजीर सिपाही गुमाश्ते फकीरों दरवेशों की ढूँढ़ खोज में जुट गए। सभी को अपने खलीजा हारुन-उल रशीद की बेहद फिक्र लगी थी। बगदाद के कोने-कोने में उनकी बीमारी चर्चा का विषय बन गयी थी। किसी ने उन्हें अरब के प्रख्यात फकीर अल्लामा इषा के बारे में बताया कि वे कठिन से कठिन रोगों का इलाज बड़ी आसानी से कर देते हैं और आज तक जिन रोगियों का भी उन्होंने इलाज किया, उनमें से कोई भी दुबारा फिर कभी उस रोग से आक्रान्त नहीं हुआ। खलीफा ने अपने कुछ सरदारों को बढ़िया सवारी देकर फकीर के पास भेजा कि वे उन्हें पूरे सम्मान के साथ यहीं लिवा लाएँ। साथ ही यह भी कहला दिया कि आपकी दवा से यदि खलीफा स्वस्थ हो गए तो आपको भारी इनाम दिया जाएगा। यही नहीं, प्रारम्भिक भेंट के रूप में थोड़ा धन अग्रिम भी भेज दिया।
बताये गए पते सरदार अपने सिपाहियों के साथ गए । वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा की एक फकीर ऊँट चरा रहा है। सहसा उन्हें अपनी नजरों पर भरोसा न हुआ। सोचा कोई और होगा । उन्होंने उससे संत अल्लामा का पता पूछा तो उसने कहा मैं ही अल्लामा हूं। इतना बड़ा दरवेश और हकीम ऊँट चराता होगा यह बात उनकी समझ में न आयी । उन्होंने और लोगों से पूछा तो उनका संशय दूर हुआ कि यही दरवेश अल्लामा हैं। अल्लामा से उन्होंने अपने खलीफा का पैगाम और उनके मर्ज का हाल कह सुनाया तो उन्होंने कहा मैं। किसी मरीज के घर नहीं जाता। उन्हें ही यहाँ लाना पड़ता है और जहाँ तक तुम्हारे खलीफा का सवाल है उनसे कहना कि वह पैदल ही चलकर यहाँ आये।
सरदार अपने सिपाहियों के साथ निराश होकर लौट गए। डरते-झिझकते उन्होंने फकीर की पूरी बात अपने खलीफा को कह सुनायी। पहले तो खलीफा काफी हताश हुए, पर कोई चारा न देखकर उन्होंने पैदल चलकर फकीर के पास पहुँचने का निश्चय किया। काफी हफ्तों तक चलते रहकर खलीफा ने इतनी दूर की मंजिल तय की और अल्लामा के पास पहुँच गया।
अल्लामा ने मरीज को भली प्रकार देखा-परखा और उसे कुछ पुड़ियाएँ देते हुए कहा कि इसकी सौ खुराक दवा हैं इनका प्रयोग करने से मर्ज अच्छा हो जाएगा। दवा के प्रयोग की विधि यह बतायी गयी कि जब माथे पर पसीना आवे, तब एक पुड़िया खोल कर सिर पर मल लिया जाय और हाँ आप जिस प्रकार पैदल चलकर आये हैं, उसी प्रकार पैदल चलते हुए ही वापस लौटें। निर्देश के अनुसार खलीफा को पैदल ही वापस लौटना पड़ा। सिर पर पसीना निकले इसका एक ही उपाय था कि तेज चाल से यात्रा की जाय। उसने वही किया और करीब तीन सप्ताह में वापस बगदाद पहुँच गया। वह तब तक तेज कदमों से चलता ही रहता, जब तक कि सिर पर पसीना निकल न आए और जब पसीना निकल आता तो वह दवा की पुड़िया खोल कर उसे अपने माथे पर मल लेता।
घर लौटने तक खलीफा का सिर दर्द पूरी तरह अच्छा हो गया। बची हुई दवा का क्या किया जाय? इस सवाल का जवाब पाने के लिए उसने अपने सिपाहियों-गुमाश्तों को वह दवा लेकर अल्लामा के पास वापस भेजा। गुमाश्ते अल्लामा के पास पहुँच कर बोले- हमारे खलीफा अब पूरी तरह ठीक हो गए हैं। आपने कहा था कि इस दवा का प्रयोग रास्ते में तभी करना है, जब सिर पर पसीना आए। खलीफा वापस अपनी राजधानी पहुँच गए हैं और मर्ज भी ठीक हो गया है अब इस दवा का क्या किया जाय?
अल्लामा ने हँसते हुए कहा-यह दवा तो मामूली मिट्टी भर थी इसे भले ही फेंक दो। असली इलाज तो निरन्तर चलते रह परिश्रम का अभ्यास करवाना था। फिर कुछ देर रुकने के बाद दरवेश अल्लामा ने कहा” पैदल चलने की आदत छोड़ देने से ही लोग मरीज बनते और बीमार पड़ते हैं। यदि अपने शरीर और मन को निरोग रखना है तो मेरी ही तरह पैदल चलने की आदत डालनी चाहिए। मुझे देखो में पैदल घूमता हुआ मजहब और ईमान का प्रचार भी करता हूं और तन्दुरुस्त भी रहता हूँ। यही मेरी सिद्धी का रहस्य है।”