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May 1973

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एक अन्धा भीख माँगा करता था। जो पाई पैसे मिल जाते, उसी से अपनी गुजर करता, एक दिन एक धनी उधर से निकला उसे अन्धे के फटे हाल पर बहुत दया आई और उसे पाँच रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राह ली।

उसने कागज को टटोल कर देखा और समझा किसी ने ठिठोली की है और उस नोट को खिन्न मन जमीन पर फेंक दिया। एक सज्जन ने नोट को उठाकर अन्धे को दिया और बताया यह पाँच रुपये का नोट है। तब वह प्रसन्न हुआ और उससे अपनी आवश्यकताएँ पूरी की। ज्ञान चक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते है। पर यदि हमें जो नहीं मिला है उसकी शिकायत कना छोड़कर जो मिला है उसी की महत्ता को समझे तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है वह काम नहीं अद्भुत है।


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