फूल की बात काँटों से

July 1968

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फूल की बात काँटों से :-

गुलाब के फूल और काँटों में विवाद चल पड़ा। फूल ने अभिमान में आकर कहा- “ओरे काँटे! तुझे मेरे पास रहते लज्जा नहीं आती। देख मेरी सुन्दरता कितनी अक्षुण्ण है, मुझे अमीर-गरीब सब प्यार करते हैं, मैं देवताओं के मस्तिष्क पर चढ़ता हूँ, सुन्दरियाँ मुझे गले से लगाती हैं। कहाँ मैं इतना सुन्दर, सुगन्धित और सम्मानित, कहाँ तू सूखा-सा दूसरों को कष्ट देने वाला काँटा, अच्छा होता तू मेरे समीप न जन्मा होता।

काँटा बहुत दुःखी हुआ उसने कहा- “ठीक कहते हो फूल। तुम्हारा सौंदर्य अकथ और अद्वितीय है पर क्या कभी यह सोचा कि तुम्हारी रक्षा हम काँटे ही करते हैं। हम न होते तो आज तुम्हारी हँसी मिट्टी में मिली होती, जो आता वही तुम्हें मसलकर फेंकता चला जाता। तुम्हारे सौंदर्य की रक्षा कर मैंने कोई अपराध किया है क्या?

फूल क्या उत्तर देता, लज्जा से सिर झुका कर चुप हो गया।


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