पहले द्वेष दूर कर-
यदि तू भक्तिभाव से मन्दिर में आया है, और श्रद्धा से अपनी भेंट देवता को चढ़ाना चाहता है, और ऐसे समय भी तुझे याद आ जाये कि मेरा अमुक भाई किसी कारण से मेरे प्रति अपने मन में विरोध की भावना रखता है। तो पूजा की सामग्री और उपहार मंदिर के द्वार पर ही रख दे और वापिस जाकर पहले अपने बंधु को मना, उसके मन से अपना द्वेष दूर कर।
क्योंकि यदि किसी कारण से कोई तुझसे द्वेष मानता है तो ऐसा करने में उसे कुछ न कुछ तो कष्ट होगा ही। द्वेष आग के समान होता है जो कि तेरे कारण ही तेरे बन्धु का हृदय जलाता है। यदि तू जाकर उसका समाधान कर देगा, अपनी नम्रता से उसके मन की ज्वाला बुझा देगा तो वह तेरा बंधु सुखी हो जायेगा। और यदि तू ऐसा नहीं करता तो वह तेरे अभिमान के कारण मन ही मन जलता रहेगा जिससे तुझे दोष लगेगा और तेरी भेंट परमेश्वर के घर स्वीकार न की जा सकेगी।
-ईसा