यह पुण्य परम्परा इस मास से आरम्भ कर ही दें।

May 1967

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गत मास अखण्ड ज्योति परिजनों की जन्म तिथि पूछी गई थी। उसका उद्देश्य जन्म दिन प्रथा का प्रचलन करना ही था-कोई ज्योतिष जन्मपत्री वर्षफल आदि जैसी बात उसमें नहीं थी। जन्म-दिन मनुष्य जीवन की महत्ता एवं दिशा के समझने समझाने का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यों स्वभावतः मनुष्य को अपना नाम, अपना स्वरूप, अपना यश, अपना अस्तित्व अत्यधिक प्रिय होता है। अपना जन्म दिन भी हर व्यक्ति के लिए उसकी मानव योनि प्राप्त करने की महत्ता सफलता का प्रतीक होने के कारण बहुत ही आनन्द एवं उल्लास का दिन है। उसे मनाने से जहाँ भौतिक आनन्द उल्लास प्रीति करने का लाभ है वहाँ उससे आत्म-चिंतन की उपयुक्त घड़ी पर कोई निर्माणात्मक निर्णय लेने की सम्भावना भी है। इस उत्सव आयोजन में इकट्ठे होने वाले विचारशील लोगों में परस्पर प्रेम भाव बढ़ता है, सृजनात्मक संगठन होता है और एक प्रेरणाप्रद परिपाटी के शुभारम्भ का अवसर मिलता है। युग-निर्माण योजना जिस उद्देश्य को लेकर बनी है उसकी पूर्ति के बीजाँकुर भी इस कार्यक्रम में सन्निहित हैं। वह प्रचलन निश्चय ही व्यक्ति निर्माण और तदनुसार समाज निर्माण का बहुत कुछ प्रयोजन पूरा करेगा।

मनुष्य जीवन स्वरूप एवं उद्देश्य को जितनी अच्छी तरह जन्म दिन के अवसर पर सोचा समझा जा सकता है उतना और किसी दिन नहीं। उस दिन हमें जीवन तत्व पर विस्तारपूर्वक विचार करना चाहिए और वह दिशा ढूँढ़नी चाहिए जिस पर चल कर जीवनोद्देश्य की पूर्ति सम्भव हो सके।

मनुष्य जन्म परमात्मा का एक अनुपम वरदान है। उसे प्राणी का सर्वोत्तम सौभाग्य भी कह सकते हैं। आज हमें उस सौभाग्य का मूल्य मालूम नहीं पड़ता पर जिस दिन तुलनात्मक अध्ययन का अवसर मिलेगा, उस दिन पता चलेगा कि यह अलभ्य अवसर अपने ढंग का अनुपम था। जीवन के लिए इससे बड़ी मंगलमय परिस्थिति इस धरती पर और कुछ हो ही नहीं सकती जैसी कि मनुष्य शरीर का उपयोग करने के दिनों में उपलब्ध होती है।

पृथ्वी बड़ी तेजी से अपनी धुरी पर घूम रही है और सूर्य की परिक्रमा के लिए भी हजारों मील प्रति घण्टा की द्रुत गति से दौड़ी जा रही है। हम उस पर रहते हैं-सारी जिन्दगी काट डालते हैं पर धरती स्थिर ही मालूम पड़ती रहती है। पानी के जहाज, हवाई जहाज, रेल आदि द्रुतगामी वाहनों में खिड़की बन्द करके बैठ जाएं तो मामूली हिलने-जुलने का अनुभव तो होता है पर यह पता नहीं चलता कि हम कितनी तेजी से दौड़े या उड़े जा रहे हैं। शरीर के भीतर का हर अवयव आश्चर्यजनक गति से निरन्तर कार्य संलग्न है। रक्त संचार, श्वास-प्रश्वाँस, पाचन प्रणाली, दोषों का बनना बिगड़ना, स्नायुओं का सिकुड़ना फैलना, ज्ञान तन्तुओं में विद्युत संचार, मस्तिष्क की अद्भुत शक्तिमत्ता आदि बातें किसी वैज्ञानिक को आश्चर्यचकित करने के लिए पर्याप्त हैं, पर हमें कुछ पता नहीं चलता कि भीतर क्या कुछ हो रहा है। लकड़ी के खम्भे की तरह हम अपने आपको एक चलता फिरता पुतला मात्र समझते हैं। आयु तेजी से बढ़ती जाती है, मौत तेजी से निकट आती जाती है पर हमें कुछ पता ही नहीं चलता कि आखिर क्या कुछ हो रहा है। शरीर में रोग कीटाणु घुसे बैठे रहते हैं और चुपके-चुपके हमें खोखला करते हुए मौत के मुँह में धकेल देते हैं पर हम अपनी बुद्धि से समझ ही नहीं पाते कि ऐसा भी कहीं कुछ हो रहा है।

हमें पता न चले, बुद्धि समझ न पावे, यह बात दूसरी है, पर इसमें लक्ष्य तो ज्यों के त्यों रहेंगे। हमें अपना जीवन भार लगता हो, अभावग्रस्त, दरिद्र, असफल दिन गुजारते प्रतीत होते हों या दुर्भाग्य के कारण चित्त खिन्न रहता हो तो रहा करे इससे इस तथ्य में रत्तीभर भी अन्तर नहीं आता है कि हम इस भूलोक-सृष्टि में सर्वोपरि सौभाग्य लाभ कर रहे हैं। जीवन में जो अभाव रहते हैं हम सदा उन्हें ही देखते रहते हैं जो उपलब्धियाँ हैं उन पर कभी विचार ही नहीं करते। कभी किसी दिन यह सोचने लगें कि हमें जो कुछ मिला है वह कितना अनुपम है, कितना महान है कितना अद्भुत है तो हममें से जो अपने को निर्धन, चिन्तित, खिन्न, असफल कहते रहते हैं वे भी अनुभव करें कि वे कितने बड़े सौभाग्यशाली और कैसी अनुपम विभूतियों के अधिपति हैं।

शरीर छूटने पर वस्तुस्थिति का बोध होता है। तब प्रतीत होता है कि चौरासी लाख योनियों से निकल कर करोड़ों वर्ष बाद अलभ्य अवसर मिला था, मनुष्य शरीर पाया था उसे बाल क्रीड़ा में गँवा दिया। अब फिर अन्धकारमय भविष्य सामने है। फिर उन्हीं योनियों में भ्रमण करने के लिए 84 लाख योनियों में लाखों करोड़ों, वर्ष के लिए जाना पड़ेगा। यह अवसर कितना सुन्दर था, कितनी सुविधायें थीं इसमें। दूसरे जीव-जन्तु पशु-पक्षी जिस बोलने-चालने, पढ़ने लिखने, खाने खेलने सोचने समझने की कल्पना भी नहीं कर सकते, जिस आहार-विहार की सुविधा उनके लिए एक असम्भव जैसी वस्तु है वह सभी इस मानव शरीर में प्राप्त थे। दूसरे प्राणियों की तुलना में यह नर जन्म इतना ही ऊँचा था जितना मनुष्यों की तुलना में स्वर्गवासी देवताओं का। इस सुअवसर का सदुपयोग करना न आया, केवल छोटी-छोटी बातों को लेकर रोते झींकते, कुढ़ते-खीजते और काटते रहे। वह न कर सके जो करना चाहिये था, वह न सोच सके जो सोचना चाहिये था। तब पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं रहता। अच्छा यही है कि समय रहते चेता जाए और मानव जीवन के उद्देश्य एवं स्वरूप को समझकर उसके सदुपयोग के लिए सावधान हुआ जाए।

इस महत्वपूर्ण समस्या पर सारा ध्यान एकाग्र करने और उसे सुलझाने के लिए वर्ष में एक दिन एक आध्यात्मिक पर्व आता है वह है अपना जन्म दिन। इस त्यौहार को यदि ठीक तरह मनाया जाए तो सोता मनुष्य जाग सकता है, पथ भ्रष्ट अपना सही रास्ता पा सकता है भ्रमग्रस्त वस्तुस्थिति समझ सकता है। इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक श्रेयार्थी अपना जन्म-दिन एक प्रेरणाप्रद वातावरण उत्पन्न करते हुए उत्साहपूर्वक हर वर्ष मनाया करे।

भारतीय धर्म का प्रत्येक पर्व, त्यौहार एक विशेष समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने और उसका हल समझाने के उद्देश्य से बना है। दिवाली अर्थव्यवस्था पर,बसन्त पंचमी विद्या के प्रश्न पर होली स्वच्छता पर, गुरु पूर्णिमा अनुशासन पर, श्रावणी आध्यात्मिक कर्तव्यों पर, दशहरा स्वास्थ्य संवर्धन पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए है। जन्म दिन ही एक त्यौहार है। सच पूछा जाए जो व्यक्तिगत दृष्टि से यह सबसे बड़ा त्यौहार है। अन्य त्यौहारों में सामूहिक रूप से विचार करना होता है और सामाजिक समस्याएं सुलझानी पड़ती हैं किन्तु जन्मदिन व्यक्तिगत समस्याओं पर, विशेषतया जीवनोद्देश्य को समझने और उसके लिए आवश्यक सतर्कता बरतने की प्रेरणा देने के लिए आता है। इसलिए उसका महत्व अन्य सभी त्यौहारों से अधिक है।

सभ्य संसार में सर्वत्र जन्म-दिन मनाए जाने की प्रथा है। हर प्रगतिशील देश के नागरिक अपना जन्मदिन मनाते हैं। उस दिन उसके मित्र शुभ चिन्तक उसे बधाई देने, अपनी शुभ कामना प्रकट करने और उत्साह बढ़ाने आते हैं। अपने-अपने ढंग से मनोरंजन के, जलपान के, गीत वाद्य के कार्यक्रम रखते हैं। अपने भारतवर्ष में यह प्रथा चिरकालीन है। प्रत्येक भारतीय धर्मानुयायी को अपना जन्म-दिन कैसे मनाना चाहिए, इसकी एक सुव्यवस्थित पद्धति निर्धारित है। हवन, देवपूजन, दीपदान, पंच तत्व पूजन, मृत्युंजय जप, आरती आशीर्वाद आदि का धार्मिक विधान निर्धारित है। इसके अतिरिक्त स्वजन सम्बन्धी उसे पुष्प भेंट करने आते हैं। जलपान से आगंतुकों का स्वागत सत्कार किया जाता है। गीत, वाद्य की व्यवस्था रहती है। जीवन समस्या को समझने और उसे उपर्युक्त ढंग से हल करने की प्रेरणाएं और प्रवचन होते हैं। घर की सजावट, नये -वस्त्र, तिलक, चंदन, देव दर्शन आदि की जहाँ जैसी व्यवस्था बन पड़ती है वहाँ वैसा किया जाता है। बहुत दिन पहिले से ही तैयारी की जाती है और स्वजन सम्बन्धियों को उस दिन आग्रहपूर्वक आमन्त्रित किया जाता है। प्रेमीजन भी पहिले से ही उत्सुकतापूर्वक उस दिन की बाट जोहते रहते हैं डायरी में ऐसी तिथियाँ नोट रखते और उस दिन गुलदस्ता पुष्पहार आदि उपहार लेकर पहुँचते हैं। यह जन्म दिन का बाह्य स्वरूप हुआ।

आध्यात्मिक स्वरूप यह है कि जिसका जन्म दिन हो वह एकान्त चिन्तन द्वारा यह विचार करे कि क्या हमने अब तक का जीवन वैसे ही बिताया जैसा कि उसे बिताना चाहिये था? यदि नहीं, तो उस भूल को तुरन्त क्यों न सुधारा जाए? जो सुधार परिवर्तन सम्भव है वह आज से ही क्यों न आरम्भ किया जाए? वे दुर्गुण अपने में कौन-कौन से हैं जो प्रगति में बाधक बन बैठे हैं, उन्हें ढूंढ़ा पहचाना और हटाया जाए। वे सद्गुण कौन-कौन से हैं जो अपने में नहीं हैं, उनका महत्व समझा जाए। और उन्हें स्वभाव में सम्मिलित करने के लिये योजनाबद्ध तैयारी की जाए।

इस प्रकार की विचारणा को दृढ़तापूर्वक हृदयंगम किया जाए, उसके प्रकाश में भावी जीवन की व्यवस्थित रूप रेखा बनाई जाए, इस पर संकल्प पूर्वक मजबूती के साथ चलने का व्रत लिया जाए तो जन्म दिन मनाने का आध्यात्मिक उद्देश्य ठीक तरह पूरा हो सकता है। इस प्रकार की विचारणा आस्था और प्रगति मानव जीवन के सदुपयोग के लिये ठोस आधार उपस्थित कर सकती है, करती रही है। इस लिये इस बात की महत्वपूर्ण आवश्यकता अनुभव की गई कि देश में जन्म दिन मानने की प्रेरणा भरी प्रक्रिया को एक व्यापक आन्दोलन के रूप में गतिशील किया जाए। यह परम्परा यदि चल पड़ी तो उससे व्यक्ति निर्माण के पुण्य प्रयोजन में भारी सहायता एवं सफलता मिलेगी। अतएव युग-निर्माण योजना की प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रथम वर्षीय कार्य-क्रम में जन्म दिन मनाने की प्रेरणा को एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम माना गया है। अब इसे व्यावहारिक रूप देने के लिये हम में से प्रत्येक को तत्परतापूर्वक प्रयत्न करना चाहिये।

अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्य, परिजन इस वर्ष छंटनी योजना के कारण काफी घट गये हैं। पर जो रह गये हैं वे भावनाशील, सक्रिय, विवेकशील और आदर्शवाद में निष्ठा रखने वाले हैं, इसमें सन्देह नहीं। इसलिये देश-व्यापी, विश्वव्यापी परम्परा का प्रचलन करने के लिये अपने उस वर्त्तमान-दस हजार व्यक्तियों के परिवार में कार्य आरम्भ कर देना चाहिये।

यह अंक मिलने पर हर परिजन को अपना जन्म दिन मनाने की तैयारी आरम्भ कर देनी चाहिये। जन्म दिन का पूजा-विधान जन्म दिवसोत्सव और विवाह दिवसोत्सव संस्कार पुस्तिका में और उसका विवेचन व्याख्यान जन्म दिवसोत्सव इस तरह मनायें पुस्तिका में है। पहली का मूल्य 40 पैसा और दूसरी का 20 पैसा है। जिसके पास यह पुस्तिकायें न हों वे 60 पैसा मूल्य और 15 पैसा पोस्टेज कुल 75 पैसे भेज कर उन्हें मथुरा से मँगा सकते हैं। इस आधार पर अपना जन्म दिन मनाने की तैयारी हर परिजन को आरम्भ कर देनी चाहिये।

इस प्रक्रिया को आरम्भ करने के लिये संगठित रूप से कार्य किया जाए तो अधिक सुविधा रहेगी और अधिक सफलता मिलेगी। अखण्ड-ज्योति के सदस्य मिला कर एक छोटी समिति कार्य के लिये संगठित कर सकते हैं। या-दो व्यक्ति ही आगे बढ़ कर स्थानीय व्यवस्था जमाने के लिये प्रयत्नशील हो सकते हैं। अपने यहाँ जितने भी अखण्ड-ज्योति के सदस्य हैं उन सब के पास जाकर उनकी जन्म तिथियाँ नोट कर लेनी चाहिएं। उस दिन उन्हें क्या करना है, यह विस्तारपूर्वक समझा देना चाहिये परिवार के सभी सदस्यों को उसमें उपस्थित होने की सूचना दे देनी चाहिये। निजी मित्र, कुटुम्बियों को आमन्त्रित एवं सूचित करने का कार्य संबद्ध व्यक्ति को स्वयं ही करना चाहिये। आयोजन का समय ऐसा रखा जाए जो सभी के लिए सुविधा का हो। ऐसा समय तो प्रातःकाल हो सकता है या फिर रात्रि को। उस समय सभी आगंतुक पुष्प उपहार ले कर उपस्थिति हों और निर्धारित, धार्मिक कर्मकाण्ड , हवन, देव पूजन, दीप दान, पंचतत्व का पूजन, आशीर्वाद सम्पन्न हो, और गीत वाद्य एवं छोटे प्रवचनों का आयोजन हो। उत्सव का स्थान आकर्षक ढंग से सजाया जाए। हवन में पति-पत्नी दो ही आहुति दें और शेष उपस्थित व्यक्ति केवल पूर्णाहुति में ही एक आहुति डालें तो हवन का खर्च कम हो सकता है। तब एक रुपया में भी हवन आयोजन हो सकता है। सभी आगन्तुक आहुति दें इसकी कोई आवश्यकता नहीं। उपहार में लोग केवल पुष्प ही लावें। मिठाई आदि कीमती भेटें लाने की प्रथा नहीं चलाई जानी चाहिये। इससे सबको बदला चुकाने में असुविधा होगी। उसी प्रकार आगन्तुकों के स्वागत में गर्मी में शरबत ओर जाड़े में औषधियों की चाय जैसी कोई सस्ती चीज ही रहे। मिठाई, नमकीन, फल आदि खर्चीली चीजें साधन-सम्पन्न तो जुटा सकते हैं पर गरीबों को असुविधा होगी। इसलिये प्रचलन ऐसा होना चाहिये जो हर स्थिति के व्यक्ति के लिये समान रूप से सुविधाजनक हो। जिस व्यक्ति का जन्म दिन है यदि अपने जीवन में कोई नया सद्गुण ग्रहण करने या कोई दुर्गुण छोड़ने की स्थिति में हो तो उसे अपने निश्चय की सूचना उस अवसर पर एक घोषणा के रूप में देनी चाहिये। जिसका उपस्थित लोगों द्वारा हर्षोल्लास के रूप में स्वागत-समर्थन किया जाए। स्थानीय सुविधा के अनुसार मनोरंजन की कई और बातें इस प्रक्रिया में सम्मिलित करके उसे आकर्षक बनाया जा सकता है।

यह प्रचलन अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों में आरम्भ किया जा रहा है पर आगे चल कर इसका जन-जन में प्रचार होगा। यह प्रेरणा हर व्यक्ति का आत्म-निर्माण करके समाज निर्माण की महती आवश्यकता पूरी करने में आश्चर्यजनक रूप से सहायक होगी। इसलिये प्रचलन को अग्रगामी बनाने में हमें पूरे उत्साह से काम करना चाहिये।


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