यों ही पति के श्रेयों की साझीदार नहीं-
एक भेंट के अवसर पर श्रीमती ललिता शास्त्री ने अपनी रूस यात्रा के समय के अनुभव बताते हुए कहा कि उन्हें वहाँ जो बात सबसे अधिक पसन्द आई वह वहाँ के लोगों की परिश्रमशीलता है।
वहाँ के लोग न केवल परिश्रमी ही हैं बल्कि घर के कोने से लेकर राज्य परिषद तक में काम करने वाला हर आदमी इस दृष्टिकोण से काम करता है मानो वह कोई साधारण काम न करके राष्ट्रीय हित का बहुत बड़ा काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनको रूस की यह परम्परा बहुत पसन्द आई कि वहाँ पति की स्थिति के अनुसार पत्नी योंही श्रेय नहीं पाती। जो महिलायें स्वयं ही अपनी सेवा अथवा गुणों से ऊँची उठी नहीं होतीं उन्हें पति के श्रेयों में साझीदार नहीं बनाया जाता, इसलिये पति के अनुरूप सम्मान पाने के लिये वहाँ के उच्चपदस्थ व्यक्तियों की पत्नियाँ भी जी तोड़ मेहनत तथा समाज सेवा किया करती हैं।