॥ पूर्ण जागरण ॥
रोक नहीं सकता कोई छल बल से,
यह भारत की आत्मा जाग रही है।
इसे समझ लो देशवासियों अपने सब पड़ौसियों!
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण अगुआ और हेतियो!
जाति, धर्म, दल संस्कृति क्या यह मिट्टी जाग रही है।
यह मैदान नदी औ’ पर्वत नहीं जाति औ’ भाषा,
देश हमारा असली स्वतन्त्रता की है परिभाषा!
देश-देश की आत्मा इसके संग-संग जाग रही है!
था इसकी अन्तर्मुखता में वास्यानुकरण अनुपस्थित,
ऊँचे आदशैं की जीवन अभिव्यक्ति थी अपेक्षित,
भारत के जीवन की सच्ची आस्था जाग रही है।
सँकरी आदर्श-भीतियाँ अब उत्सुक हैं गिरने को,
फूट चले हैं स्त्रोत उमड़ कर सभी आज मिलने को,
अब यह सागर की निस्सीम कामना जाग रही है।
लिया पकड़ कर है धर जिसने सब दुविधा भावों को,
चाट लिया है और भभक कर तमग्रस्त स्वभावों को,
यह भारत की शक्ति सनातन ज्वाला जाग रही है।
जिसने पैदा किया और पाला पोसा विकसाया,
और सत्य पर जिसने हमको बलि होना सिखलाया,
यह भारत माता की आर्य महत्ता जाग रही है।
सुन लो कान खोलकर मानव स्वार्थों, दुर्बलताओं,
असुरों की दुर्धर्ष शक्तियों और गुप्त छलनाओं,
बच न सकोगी प्रभु की अग्नि घड़ी यह जाग रही है।
ज्ञान और विज्ञान, यन्त्र, व्यापार और शिक्षा पर ,
घर बाहर औ’ देश विदेश नीति पर, राजनीति पर,
भारत की देवी अब पूरा शासन माँग रही है।
—विद्यावती देवी “कोकिल”
*समाप्त*