मर्यादाओं का पालन कीजिए

March 1961

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री बाबूलाल टीकम दास कदवाने)

मर्यादा शब्द से ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी का स्मरण हो आता है। मर्यादा शब्द तो केवल साढ़े तीन अक्षर का है, किन्तु मर्यादा पालना उतना सरल नहीं। सती सीता को भी मर्यादा पालना अर्थात् मर्यादा की रेखा को उल्लंघन करते ही रावण उन्हें उठा ले गया और फलतः उन्हें (सीता) को अशोकवाटिका में बन्दी रहना पड़ा। इससे स्पष्ट है कि मर्यादा-पालन कितना कठिन है और न पालने से कितने कष्ट उठाने पड़ते हैं।

प्राकृतिक नियमानुसार हर चीज की मर्यादा होती है और जहाँ मर्यादा की अवहेलना हुई कि मनुष्य संकटों का शिकार हुआ। इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि “अति सर्वत्र वर्जयेत्।” अर्थात् किसी भी कार्य में अति नहीं होना चाहिए। प्रायः देखा गया है कि हम तनिक भी मर्यादा के बाहर गये कि हमें संकट का सामना करना पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति की खुराक आधा सेर है और वह स्वादिष्ट भोजन के लोभवश कुछ अधिक खा जावे तो यह निर्विवाद है कि उसे अपच आदि किसी-न-किसी दुःख को सहन करना ही पड़ता है। उक्त नियम केवल मनुष्य या प्राणिमात्र के लिए नहीं, किन्तु संसार को हर वस्तु के लिए है। हम आएँ दिन खबरें सुनते तथा पढ़ते हैं कि आज अमुक स्थान पर रेल की पटरी से गाड़ी उतर जाने या मोटर गलत बाजू से जाने से वहाँ दुर्घटना हो गई और फलस्वरूप इतने व्यक्ति मरे व इतने घायल हुए तथा इतने रुपया की हानि हुई। यह सब क्यों होता है? इसका एक ही उत्तर दें-मर्यादा का उल्लंघन।

यदि कोई व्यक्ति अपनी आमदनी से अधिक खर्च करता है तो उसे अधिक संकट भोगना पड़ता है और इसीलिए यह कहावत है कि “कमावे धेला खेर्चे उसकी दुर्गति देखे कौन?” तात्पर्य यह कि हर व्यक्ति को अपनी आमदनी की मर्यादानुसार ही खर्च करना चाहिए अन्यथा मनुष्य मुश्किल में आ गिरता है। यदि हमने अपना बिस्तर देखकर पैर न फैलाये तो बिस्तर के बाहर अवश्य जावेंगे। इसीलिए मर्यादा का पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि किसी सुन्दर भवन के स्तम्भ या कोई अन्य भाग मर्यादा एवं सूत या लाइन में नहीं है कि उस भवन का जीवनकाल शीघ्र ही समाप्त हो जावेगा। यदि मनुष्य अपने जीवन को मर्यादित बना लेता है तो उसका जीवनकाल भी मर्यादित हो जाता है। वह चिरंजीवी होकर सुख-शान्ति का अनुभव करता है।

मानव शास्त्र में मनुष्य जीवन के जो चार विभाग किए हैं, उनमें प्रथम विभाग ब्रह्मचर्य का है, यह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है, इसे मनुष्य जीवन का आधार स्तम्भ कहे तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। जिस किसी ने मानव जीवन शास्त्र के इस नियम के अनुसार ब्रह्मचर्य पाला है और गृहस्थाश्रम जीवनकाल में भी जो साँसारिक वासना में लिप्त न होकर मर्यादा का पलता है वह सदा सुखी और शान्तिमय जीवन व्यतीत करता है, अन्यथा उक्त मर्यादा का उल्लंघन करने वाला सदा दुःखी और अस्वस्थ नजर आता है तथा अपने जीवन को शीघ्र ही पालन करना कितना आवश्यक है और न पालने से कितने भयंकर कष्टों का सामना पड़ता है, यह इससे ज्ञात हो जाता है।

मनुष्य ज्ञानवान् प्राणी है, ईश्वर ने उस पर कृपा कर उसे ज्ञान दिया है और इसी कारण वह सर्वश्रेष्ठ प्राणी गिना जाता है, अन्यथा “ज्ञानेन” हीना पशुभि: समाना।'' वाली कहावत के अनुसार उसमें और पशु में कोई व्यक्ति ज्ञानहीन (( मूर्खतापूर्ण) कार्य कर बैठता है तो, उसे अन्य व्यक्ति तुम जानवर हो क्या ?? यह प्रश्न कर देते हैं। किन्तु वास्तव में देखा जाय तो ऐसे व्यक्ति को जानवर की उपाधि देना उस जानवर के साथ भी अन्याय करना होगा, क्योंकि जानवर स्वल्प बुद्धि होते हुए भी अपनी मर्यादाओं का पालन करता है और ज्ञानवान मनुष्य यदि अज्ञान मूलक, मर्यादा से विपरीत कार्य करे तो उसे पशु से भी निम्न स्तर का समझना चाहिए।

यह भी देखा गया है कि जिस परिवार में मर्यादा नहीं अर्थात पिता, पुत्र, पति, पत्नी, सास, बहु व भाई- भाई के आपसी व्यवहार में भी यदि मर्यादा का अभाव है तो उस परिवार में कभी भी आपसी वैमनस्य उत्पन्न हो जाता है। फलत: उसका संयुक्त रहना मुश्किल ही नहीं किन्तु असम्भव- सा हो जाता है और वह विभाजित होकर विनाश ग्रस्त हो जाता है।

यह तो सम्भवत: सभी पाठक जानते ही होंगे कि हाल ही में अमेरिका के एक विमान यू- २ ने अपनी मर्यादा का उल्लंघन किया तो उसे रूसी उल्का (राकेट) द्वारा नष्ट कर दिया गया और परिणाम स्वरूप शीर्ष सम्मेलन, जिसकी ओर संसार के शान्ति प्रिय सभी देश बड़ी आतुरता से अपनी दृष्टि जमाये बैठे थे, विफल हो जाने के कारण उनकी आशा एवं अभिलाषा पर भी पानी फिर गया! संसार में जो शान्ति स्थापित होने की आशा थी वह चकनाचूर हो गयी और इतना ही नहीं विश्व व्यापी युद्ध की भी आशंका होने लगी। मर्यादा उल्लंघन के ऐसे ही दुष्परिणाम होते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118