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October 1960

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निःस्वार्थ प्रेम की प्रेरणा

मैं केवल प्रेम का ही प्रचार चाहता हूँ। मेरे उपदेश वेदान्त की समता और आत्मा की विश्व-व्यापकता पर ही आधारित हैं। दुखियों के दर्द को अनुभव करो और उनकी सेवा करने को आगे बढ़ो, भगवान तुम्हें सफल करेंगे। मैं अपने मस्तिष्क में इसी विचार को रख कर 12 वर्ष तक घूमा हूँ। मैं इस दौर में भूखा प्यासा भले ही मर जाऊं, पर नव जवानों? मैं तुम्हारे लिए यह वसीयत छोड़ जाता हूँ कि गरीबों, अज्ञानियों और दुखियों की सेवा के लिए प्राण प्रण से लग जाओ।

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मनुष्य की आयु सीमित है और संसार की सभी वस्तुएं मिटने वाली हैं पर वे ही जीवित हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं। बाकी सब तो मुर्दे से भी बढ़कर हैं।

-स्वामी विवेकानन्द


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