अखण्ड ज्योति के पाठकों से

October 1960

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“अखण्ड ज्योति” इस अंक के साथ अपने जीवन के 16 वर्ष पूर्ण करके 17वें वर्ष में पदार्पण कर रही है। इस अवसर पर वह अपने परिवार के सभी सदस्यों का अभिनन्दन करती है जिनके स्नेह सहयोग और आत्मभाव ने उसे जीवित ही नहीं रखा आगे भी बढ़ाया है।

अखण्ड ज्योति का एक मात्र उद्देश्य मानव जीवन को ऊँचा उठाने वाले सद्ज्ञान का प्रसार करना ही है। इसलिए उसने बाहरी विज्ञापनों से हो सकने वाली भारी आय को तिलाँजलि देकर आरम्भ के पृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक केवल सद्ज्ञान को ही छापना उचित समझा है। वार्षिक चन्दा भी इतना सस्ता रखा है कि सम्पादन, प्रबंध, मकान किराया, पत्र व्यवहार आदि का कोई खर्च उस पर न लगाने पर भी कागज छपाई का मूल्य मुश्किल से पुरा हो पाता है। कई वर्षों में तो काफी घाटा भी चला जाता है। पूँजी और साधनों के अभाव में भी ‘अखण्ड ज्योति’ के चलते रहने में प्रेमी पाठकों की व्यापक सद्भावनाओं को ही श्रेय है।

इस वर्ष अधिक ज्ञान वर्धक साहित्य देने की दृष्टि से अखंड ज्योति की पृष्ठ संख्या ड्यौढ़ी की गई है। पर मूल्य सवाये से भी कम केवल आठ आना बढ़ाया गया। ऐसी दशा में इस वर्ष काफी घटा रहने की सम्भावना है। इसकी पूर्ति तभी सम्भव है जब इस वर्ष नये ग्राहक बढ़ाने का कुछ अधिक प्रयत्न किया जाए। इस प्रयत्न में यदि आप थोड़ा सा सहयोग दें तो आपकी प्रिय अखण्ड ज्योति सम्भावित घाटे से बच सकती है और अधिक सेवा कर सकने में समर्थ हो सकती है। हमें आपकी अब तक सद्भावना पर भारी विश्वास है और इस दिशा में हर प्रेमी से इस वर्ष कुछ अधिक आशा रख रहे हैं।

जिनका वर्ष बीच के किसी महीने से प्रारम्भ हुआ है वे सन 55 के अंकों का मूल्य 2॥) वार्षिक के हिसाब से काट कर, शेष जो बचे उसको सन 56 के 3) में से कम करलें और शेष पैसा भेज दें। अधूरे वर्ष का हिसाब रखने में हमें भी और पाठकों को भी भारी अड़चन रहती है। जिनने सन 56 का चन्दा भी 2॥) ही भेजा है उनसे शेष भी शीघ्र ॥) भी भेज देने की प्रार्थना है। अन्यथा उनका चन्दा अक्टूबर 56 में समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार लटकता हिसाब छोड़ना असुविधाजनक ही है।

यहाँ से हर महीने दो बार जाँच कर ‘अखण्ड ज्योति’ भेजी जाती है 1. पते में गलती 2. डाक में गड़बड़ी 3. पता बदल लेने पर भी सूचना न देना, आमतौर से यही कारण अंक न पहुंचने के होते हैं। यदि किसी मास अंक न पहुँचे तो उसी मास त. 15 के लगभग सूचना देकर दूसरी प्रति तब दुबारा भेजना कठिन होता है। गतवर्ष अखण्ड ज्योति के ग्राहक रजिस्टर चोरी चले गये थे, इस झमेले में भी अनेक ग्राहकों के अंक पहुंचने में असुविधा हुई। वह एक विशेष दुर्घटना थी उस विवशता के लिए क्षमा प्रार्थना के अतिरिक्त और कुछ करने में हम असमर्थ भी थे। गतवर्ष के कुछ अंक अभी स्टॉक में मौजूद हैं जिन्हें जो अंक न मिले हों वे सूचना देकर मँगा सकते हैं। हर पत्र में पूरा पता और अपना ग्राहक नम्बर लिखते रहने की एवं जवाबी पत्र भेजने की हर पाठक से विशेष प्रार्थना है।

-व्यवस्थापक

“अखण्ड ज्योति” प्रेस, मथुरा।


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