सन्त समागम हरिकथा, तुलसी दुर्लभ होय।
दारा सुत अरु लक्ष्मी, पापी के भी होय॥
बहुत गई थोरी रही, नारायण अब चेत।
काल चिरैया चुग रही, निसि दिन आयू खेत॥
धन जोबन यों जायगो, या विधि उड़त कपूर।
नारायण गोपाल भज, क्यों चाटै जग धूर॥
नारायण संसार में, भूपत्ति भये अनेक।
मैं मेरी करते रहे, लै न गए तृन एक॥
तेरे भावैं जो करौ, भलौ बुरौ संसार।
नारायण तू बैठिकै, अपनौ भवन बुहार॥
नारायण सत्संग कर, सीख भजन की रीत।
काम क्रोध मद लोभ में, गई आर्बल बीत॥
धन विद्या गुण आयु बल, ये न बड़प्पन देत।
नारायण सोइ बड़ो, जाकों हरिसों हेत॥
नारायण हरि भजन में, तू जनि देर लगाय।
का जाने या देर में, श्वासा रहै कि जाय॥