दाम्पत्य जीवन का सुख यों प्राप्त करें

November 1960

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(डॉ. रामचरण महेन्द्र एम.ए., पी.एच.डी.)

इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध कलाकार दम्पत्ति ने अपने विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ मनाई है। उन्होंने दाम्पत्य जीवन के ये दिन बड़े सुख, शान्ति और सरसता से व्यतीत किए हैं। उनसे जब उनकी सफलता का रहस्य पूछा गया, तो नए दम्पत्तियों के लाभार्थ उन्होंने कई बड़े अनुभवपूर्ण सिद्धान्त बताये हैं। उनका विचार है कि इनके पालन करने से नए विवादित जोड़ों को सुख मिल सकता है। जो दम्पत्ति दुःखी हैं, उनको इन नियमों को व्यवहार में लाना चाहिये। जितने भी सूत्र सम्भव हों, उन्हीं को धारण करना चाहिए।

नियम 1- पति-पत्नी एक दूसरे को सच्चे हृदय के गहन तल से प्रेम करें। प्यार का अर्थ है प्रियजनों के दोष और त्रुटियों को क्षमा करते रहना। मत-भेद होने पर समझौता करें और गलतफहमी होने पर जल्दी से जल्दी उसे दूर करें। प्रेम में अहंभाव को भुला देना चाहिये। क्षमाशीलता से सरसता पुनः आ जाती है।

नियम 2- पति-पत्नी परस्पर एक-दूसरे में अविचलित विश्वास रखें। दाम्पत्य जीवन में सन्देह के समान कोई बड़ा शत्रु नहीं है। मन को विषमय बनाने के लिये सन्देह से बढ़ कर अन्य भावना नहीं है।

नियम 3- साथ-साथ रहें। सुख-दुःख में, संपद् विपद में, हर्ष और आह्लाद में सदा एक दूसरे के साथ रहें। जीवन में कष्ट आयें, तो साथ सहें, हर्ष के अवसर आयें, तो साथ ही हर्षित होकर खुशी मनावें। बीमारी में एक दूसरे का पूरा साथ दें। धर्म के सब कार्य हमारे यहाँ सम्मिलित मिलकर मनाने की प्रथा है। सम्मिलित दान, स्नान, यात्रा, कर्म इत्यादि से धर्म की सिद्धि मानी गई है। पति-पत्नी को चाहिए कि सब कामों में साथ-साथ रहें।

नियम 4- एक दूसरे की निस्वार्थ भाव से सेवा करें और उसके लिए अपने स्वार्थों का परित्याग करें। पत्नी पति के लिए और पति पत्नी के लिए अपने संकुचित स्वार्थ का त्याग करें, इस पारिवारिक त्याग से, आदान-प्रदान की नीति से काम लें। इससे वाणिज्य व्यापार तो चलता ही है, पर गृह संसार में भी यही नीति लाभ देती है।

नियम 5- एक दूसरे के आचरण की आलोचना न करें। बुराई किसमें नहीं हैं। कमजोरियों से कौन बचा है, सबसे पहले दम्पत्ति को दोषान्वेषण की आदत छोड़ देनी चाहिये। एक दूसरे के दोष दर्शन से दाम्पत्य जीवन में कटुता उत्पन्न होती है और पारस्परिक विश्वास नष्ट होता है। दोष देखने का अर्थ एक दूसरे को नीचा दिखाना है। इससे घृणा उत्पन्न होती है। यह घृणा बड़े-बड़े राज्यों को समाप्त कर देती है। घृणा से मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं।

नियम 6- मैं अपनी पत्नी की अपेक्षा बड़ा हूँ या मैं अपने पति से ऊँची हूँ, यह सब मन में न आने दीजिये। इससे अहंभाव उत्पन्न होता है, स्वेच्छाचारिता बढ़ जाती है और स्वार्थ की इस खींचा-तानी में दाम्पत्य जीवन की डोर टूट जाती है। दाम्पत्य जीवन में तो दोनों को सदा समानता का ही भाव मन और कर्म में रखना चाहिए।

नियम 7- विवाह किया है, इसलिए हमारा दूसरे के ऊपर पूरा-पूरा हर प्रकार का अधिकार है। हम अपने साथी से सब प्रकार की आशा कर सकते हैं। ऐसा कभी भी न सोचें। मनुष्य आखिर मनुष्य ही है, देवता नहीं है। मनुष्य में चाहे योग्यता और शक्ति कितनी ही बड़ी क्यों न हो, किन्तु दुर्बलता आखिर सब में है-इस बात को स्मरण रखिए। हो सकता है कि अपनी पत्नी से या पति से कोई दुर्बलता सूचक कार्य हो जाए, यदि ऐसा हो तो उदारतापूर्वक उसे क्षमा कर देने में ही दोनों की भलाई है।

नियम 8- सदा गम्भीर मत बने रहिए, इससे जीवन नीरस हो जाता है। दोनों मिल-जुलकर हँसी-खुशी के लिए भी समय रखिये, हँसना, बोलना, मनोरंजन करना भोजन से भी अधिक उपयोगी है। हँसमुख आदमी कभी अस्वस्थ नहीं रहता। हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ व्यक्ति ही प्रसन्न चित्त होते हैं। एक प्रख्यात जर्मन डॉक्टर का तो यहाँ तक कथन है कि हँसने से शरीर का रक्त उष्ण रहता है और नाड़ी की स्पन्दन क्रिया नियमित होती है। हँसने से जबड़े मजबूत होते हैं, शरीर में बल और साहस की वृद्धि होती है। हँसना जीवन की शक्ति को बढ़ाता है, प्रसन्नता और आनन्दी स्वभाव चेतना शक्ति बढ़ाते हैं। मृदुल हास से स्वभाव, शरीर और आत्मा दृढ़ होती है, हास-परिहास, दाम्पत्य जीवन के लिए बहुत आवश्यक है, स्वास्थ्य और सुख का आधार है। हँसते हुए जीवन बिताना एक प्रकार से मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ाने की चिकित्सा है। तात्पर्य यह है कि हँसना भोजन से भी अधिक उपयोगी है।

नियम 9- पहले प्रियजन बाद में मैं-पहले उसका सुख फिर मेरा सुख, इस बात को स्मरण रखते हुए अपने सुख को पीछे रखिये।

नियम 10-पति पत्नी से और पत्नी पति से पूरे शिष्टाचार का पालन करें। अभ्यागत के प्रति भी ऐसा ही व्यवहार उचित है। अशिष्ट व्यवहार दाम्पत्य जीवन में भी सर्वथा निन्दनीय और त्याज्य है।


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