प्रार्थना
हे सत्य, हे मेरी अन्तरात्मा के बीच निवास करने वाले अन्तर्हीन सत्य, सब-कुछ आप ही हैं। इस आत्मा में जो आपसे इसलिए फिर देश-काल गम्भीरता-निधिड़ता की कोई सीमा नहीं यह आत्मा अनन्तकाल तक रहने वाला है सत्यम् मन्त्र इसका द्योतक है। आप हैं और केवल आप ही हैं। आत्मा की अतल-स्पर्श गम्भीरता से यह मन्त्र निकला है, मानों वह हमारे मन एवं संसार के अन्यान्य समस्त शब्दों को अपने में भरकर सबके ऊपर प्रकाशमान हैं। सत्यं, सत्यं। उसी सत्य में मुझे पहुँचा दीजिए, हमारी उसी अन्तरात्मा के गूढ़तम अनन्त सत्य में, जहाँ आप हैं और कोई भी नहीं।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर