प्रगति प्रवाह

September 1958

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महायज्ञ में आने वालों को सूचनायें

(1) कोई श्रद्धालु दर्शक आना चाहे तो उनके ठहरने भोजन आदि की भी व्यवस्था की जा सकती है। पर उसकी सूचना एक महीने पहले अवश्य आनी चाहिए। यज्ञ-नगर की सीमा में हुक्का, बीड़ी पीना निषिद्ध होगा। जो दर्शक इस नियम को पालन कर सकें वे ही यज्ञ नगर में ठहराये जा सकेंगे। रोगी, गंदे, झगड़ालू, नशेबाजी, यज्ञ कार्यों से उदासीन, आलसी, अनुशासन व्यवस्था एवं सफाई के नियमों से अपरिचित लोगों को दर्शक रूप में भी यज्ञ-नगर में न ठहरने दिया जायगा। उनके कारण यहाँ की पवित्रता एवं व्यवस्था में गड़बड़ी पड़ती है।

(2) महायज्ञ में सम्मिलित होने के नर-नारियों के अधिकार समान हैं। दोनों ही महायज्ञ में बिना किसी प्रतिबन्ध के समान रूप से सम्मिलित होंगे, पर बहुत छोटे बच्चों वाली महिलाएं बिना समुचित व्यवस्था के न आवें। मथुरा में ठंड अधिक पड़ती है। जमीन पर तम्बुओं में सबको सोना है। स्नान,भोजन आदि भी असुविधाजनक ही रहेगा। इसका प्रभाव छोटे बच्चों पर पड़ सकता है। वे अस्वस्थ हुए तो उनके कारण माताओं को तथा उनके साथ वालों को असुविधाएं बढ़ेंगी। इसलिए जिनके साथ अच्छे सहायक या नौकर हों, बिस्तर आदि की पूरी व्यवस्था हो जिनके बच्चे अधिक स्वस्थ हों वे ही महिलाएं आवें।

(3) प्रत्येक याज्ञिक को महायज्ञ के दिनों में पीले वस्त्र धारण करने चाहिये। धोती तथा कंधे पर दुपट्टा हर याज्ञिक का पीला होना चाहिये। इसकी व्यवस्था घर से ही करके लानी चाहिए। पैन्ट, पाजामा या नेकर पहन कर यज्ञ में बैठना न हो सकेगा।

(4) शाखाएं अपने झण्डे साथ लावें तथा कपड़े पर बने हुए ऐसे बोर्ड बना कर लावें जिन्हें दोनों ओर बाँस लगाकर जुलूस में ले चलें तथा ठहरते समय उसे ब्लॉक के तम्बुओं के आगे लगा दिया जाय। रास्ते में भी इन झण्डों से, कपड़े के बोड़ों से, पीली पोशाक पहन कर चलने से महायज्ञ का प्रचार होता है। गायत्री-परिवार का झण्डा पीला रंगा हो बीच में सूर्य का गोला लाल रंग से बनाया जाय, उसके बीच में ‘ॐ भूर्भुवः स्वः” लिखा रहे।

(5) आते समय रास्ते में बाँटते आने के लिये कुछ पर्चे भी प्रत्येक शाखा को मँगा लेने चाहिएं। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान का साहित्य जितना वजन 6) रु. में दिया जाता है, उतने ही वजन के पर्चे पोस्टर भी उतने ही मूल्य में दिये जा सकते हैं। रास्ते में बाँटने के लिए पुस्तकों की अपेक्षा यह पर्चे तथा पोस्टर ही उपयुक्त हैं। इसी उद्देश्य के लिये छोटे साइज का एक पोस्टर तथा पीठ पर विज्ञप्ति का पर्चा छपाया जा रहा है। यह 6) में कई हजार की संख्या में प्राप्त हो सकेगा। जिन लोगों ने अभी ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान साहित्य नहीं मंगाया है, उनके पैसे इकट्ठे करके अब यही “छोटे पर्चे पोस्टर” मंगाने चाहिए और यज्ञ के अन्तिम दिनों में इनका पूरे जोश के साथ गाँव-2 में प्रचार करना चाहिये, ताकि महायज्ञ का सन्देश अधिकतम जनता तक पहुँच सके। छोटे पर्चे पोस्टर, दुकानों तथा मकानों की किवाड़ों पर चिपकाने के काम में भी बड़ी सुन्दरतापूर्वक आ सकते हैं।

(6) गायत्री-परिवार के उत्साही कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है कि, महायज्ञ से जितने अधिक दिन पूर्व सम्भव हो सके अपने घरेलू कार्यों से छुट्टी लेकर अपने क्षेत्र में प्रचार कार्य के लिए पूरी शक्ति के साथ जुट जावें। कई साथियों के साथ एक मण्डली के रूप में यह धर्म फेरी और भी शोभनीय तथा प्रभावशाली बन सकती है। अपनी पहुँच जितनी दूर तक के क्षेत्रों में सम्भव हो उतने में दौरा करना चाहिये। दौरे में निम्न कार्यक्रमों का ध्यान रखा जाय :—(1) हर गाँव तथा घर में महायज्ञ का सन्देश पहुँचाने के लिये पर्चे बाँटना तथा पोस्टर चिपकाना (2) इस अलभ्य अवसर पर यज्ञोपवीत संस्कार कराने की एवं गुरु मन्त्र लेने की महत्ता बताकर इस पुण्य संस्कार को कराने के इच्छुकों को अधिक संख्या में प्रोत्साहित करना (3) होता यजमानों का तैयार रहने और चलने का कार्यक्रम बनाने के लिए उनसे मिलना (4) अपने क्षेत्र से अधिक स्वेच्छा-सहयोग एकत्रित करना (5) विशिष्ठ धर्म प्रेमियों को यज्ञ में पधारने के लिए आमंत्रित करना (6) मन्त्र लेखन की कापियाँ अधिकतम लोगों से लिखाकर महायज्ञ के लिए लेखन श्रद्धाँजलियाँ संग्रह करना।

(7) अपने घरों पर सभी लोग सुख सुविधा की जिन्दगी व्यतीत करते हैं। तपोभूमि में आने का उद्देश्य तप करना है। उन दिनों तम्बुओं में ठहरने जमीन पर सोने जमुनाजी के ठंडे पानी से नहाने, घटिया किस्म का भोजन करने की प्रायः सभी को असुविधा रहेगी। यह एक प्रकार का तप है। प्राचीन काल में लोग लम्बे-लम्बे दिनों तक तप करते थे, अब भी उस परम्परा को चार-छह दिन जीवन में लाने से किसी को घबराना न चाहिए। अपने लिए विशेष सुविधा की, कई आराम पसंद लोग प्रार्थना करते हैं। उन्हें यही मान कर चलना चाहिए कि यह तप का समय है। श्रीकृष्ण और सुदामा को एक साथ,एक स्थिति में गुरु आश्रम में रहने, पढ़ने तथा साधना करने की परम्परा का अवसर है। चार दिन यहाँ असुविधा उठाने तथा तप करने जो जा आ सकें उन्हें ही यहाँ आना चाहिए।

(8) जिन होता यजमानों का जप उपवास पूरा नहीं हो सके उन्हें उतना जप, उपवास तपोभूमि से उधार लेकर उसकी पूर्ति अगले वर्ष कर देने की सुविधा दी जा सकती है। यों 2400 मन्त्र लेखन बहुत ही सरल है।

(9) ता.13 अक्टूबर से महायज्ञ की पूर्णाहुति तक 6 सप्ताह का शिक्षण शिविर होगा। इसमें तपोभूमि के मिशन, मूल मन्तव्य तथा आगामी कार्यक्रम सम्बन्धी विविध विषयों पर शिक्षण दिया जायगा। सामूहिक यज्ञ आयोजन की शास्त्रीय एवं व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त करने का जितना उत्तम अवसर यह है वैसा फिर मिल सकना कठिन है। इसलिए जिन्हें इन विषयों में अभिरुचि हो वे 1॥ महीने के लिए शिविर में मथुरा आने का प्रयत्न करें।

शिविर में केवल पढ़ते रहने या बैठे-बैठे शिक्षा प्राप्त करते रहने का ही कार्य नहीं है वरन् महायज्ञ की आवश्यकताओं की व्यवस्थाओं में सक्रिय हाथ बंटाने के लिए कटिबद्ध रहना होगा। इसलिए उत्साही निरोग, स्फूर्तिवान, सेवा भावी, अनुशासन में रहने वाले, निर्व्यसनी मधुरभाषी एवं उदार प्रकृति के लोग ही उसमें आवें। बूढ़े, बीमार, अशिक्षित, नशेबाज, अहंकारी, काम से जी चुराने वाले, अनुशासन में न रहने वाले, उद्दण्ड, स्वार्थी प्रकृति के शिक्षार्थी इस शिविर में न आवें। अपने मार्ग व्यय की स्वयं व्यवस्था करनी चाहिए। भोजन तथा ठहरने का प्रबन्ध तपोभूमि में है ही।

सरल और सस्ता वेद भाष्य

हिन्दू धर्म का मूल उद्गम वेद हैं। वेदों में ज्ञान विज्ञान का अजस्र स्रोत भरा हुआ है। प्राचीन काल में प्रत्येक हिन्दू के लिये वेद पढ़ना एक आवश्यक धर्म कर्तव्य था। यज्ञोपवीत धारण करने का संस्कार होने के साथ ही वेदारम्भ संस्कार भी होता था जिसका उद्देश्य प्रत्येक यज्ञोपवीत धारी को वेद ज्ञान की समुचित शिक्षा प्राप्त करना होता था। प्रत्येक वेद का एक-एक मंत्र तो यज्ञोपवीत संस्कार के दिन वेदारम्भ करते समय आज भी बताया जाता है। अब तो यह प्रथा एक चिन्ह पूजा मात्र रह गई है। वेदों का पढ़ना-पढ़ाना अब एक प्रकार से बिल्कुल ही छोड़ दिया गया है।

मुसलमान कुरान पढ़ते हैं सुनते हैं कम से कम मानते तो हैं। ईसाई भी कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो कहे कि हमने बाइबिल को न पढ़ा है, न सुना है, न देखा है। पर हिन्दू लाखों करोड़ों ऐसे मिलेंगे जो यह कह सकते हैं कि वेद को पढ़ना दूर उन्होंने उसे देखा तक नहीं है। यह हमारे लिए सचमुच ही एक बड़े कलंक की बात है।

गायत्री-परिवार भारतीय संस्कृति के प्रमाण आधार गायत्री यज्ञ एवं वेदों का पुनरुत्थान करने के लिए प्रयत्नशील है। उसने निश्चय किया है कि वेदज्ञान को घर-घर पहुँचाने के लिए वैसा ही प्रयत्न किया जाय जैसा ईसाइयों ने सारे संसार की भाषाओं में बाइबिल के अत्यन्त सस्ते संस्करण प्रकाशित एवं प्रचारित करके किया है।

वेद क्लिष्ट संस्कृत में हैं। इनके प्रामाणिक भाष्य संस्कृत भाषा में सायण, महीधर, उव्वट एवं राक्षस राज रावण ने किये हैं, वे भाष्य संस्कृत के विद्वानों के समझने योग्य हैं। हिन्दी भाषा में केवल आर्य समाज ने चारों वेदों के भाष्य किये हैं, इसमें उनके मत के दृष्टिकोण को ही प्रधान रखा गया है। सनातन धर्म के दृष्टिकोण से कहीं-कहीं से एक दो वेदों का हिन्दी अनुवाद छपा है। वह हिन्दी टीका भी ऐसी कठिन है कि साधारण हिन्दी जानने वाला तो पूरा भाष्य पढ़ जाने पर भी कुछ समझने में असमर्थ ही रहता है।

इस एक बहुत बड़ी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अगले वर्ष महायज्ञ के बाद चारों वेदों का सरल सुबोध हिन्दी भाष्य करने का निश्चय किया है। यह मनगढ़न्त अपने निज के दृष्टिकोण के आधार पर नहीं वरन् प्राचीन समय के सायण, उब्बट, महीधर, रावण के सनातन धर्मी भाष्यों के आधार पर होगा और सरल इतना बनाया जायगा कि साधारण किसान,मजदूर, महिलाएं, बच्चे तथा कम पढ़े लोग भी बड़ी आसानी से समझ सकें और वेद की महान शिक्षाओं का लाभ उठा सकें। इन चारों वेदों का मूल्य इतना सस्ता रखा जाएगा कि संसार भर में अब तक छपे कहीं के भी वेद प्रकाशन की अपेक्षा इनका मूल्य अत्यन्त कम रहे। लागत मात्र में यह ग्रन्थ सबको उपलब्ध किए जावेंगे।

कार्य काफी कठिन एवं श्रमसाध्य है। पर जिस माता की प्रेरणा से अन्य कठिन कार्य सरल होते हैं उन्हीं की इच्छा से यह भी पूर्ण होकर रहेगा, ऐसी आशा है।

वेद पारायण यज्ञ

गायत्री तपोभूमि में अन्य दैनिक कृत्यों के साथ-साथ यज्ञ का कार्यक्रम भी नियमित रूप से चलता रहता है। कभी न बुझने दी जाने वाली अग्नि को विधिवत् प्रज्ज्वलित रखा जाता है। नित्य गायत्री यज्ञ के साथ-साथ चारों वेदों का पारायण यज्ञ भी साथ-साथ चलता रहता है।

यजुर्वेद, ऋग्वेद, अथर्ववेद सामवेद इन चारों के सम्पूर्ण मन्त्रों का पारायण की पूर्णाहुति का समय भी प्रतिवर्ष जेष्ठ सुदी 10 गायत्री जयन्ती ही रहा करेगा। इस प्रकार नियमित रूप से चारों वेदों के पारायण यज्ञ की व्यवस्था देश में कहीं विरले ही स्थान पर देख पड़ेगी।

यह परम्परा हम भी शुरू करें

जैन समाज में यह एक बड़ी ही प्रशंसनीय प्रथा आरम्भ हुई है कि वे लोग अपने बड़े-बड़े धर्म-मेलों के अवसर पर अपने विवाह योग्य कन्या-वरों को ले जाकर उन धर्म-स्थानों पर ही विवाह संस्कार करा देते हैं। इससे कई लाभ हैं :—(1)बड़े धर्म-स्थानों पर एवं पुण्य पर्वों पर ब्रह्मनिष्ठ महात्माओं के प्रत्यक्ष आशीर्वाद के साथ सम्पन्न हुए विवाह सब सफल होते हैं। उनमें वर-वधू के सम्बन्ध जीवन भर मधुर रहते हैं और धन, संतान एवं सुहाग की दृष्टि से भी वे सफल होते हैं। 2) घर पर विवाह करने में भारी प्रीति-भोज, बारात, गाजे-बाजे, सामाजिक प्रथा परम्पराओं के व्यर्थ के तथा खर्चीले झंझटों से छुटकारा मिल जाता है। इन धर्म-स्थानों पर अल्पकाल में कन्या और वर पक्ष के दस पाँच आत्मीय सगे-सम्बन्धी ही आपस में मिलकर अत्यन्त प्रेमपूर्वक सब काम कर लेते हैं।

यह प्रथा बहुत ही उत्तम है। इसे गायत्री-परिवार को भी अपनाना चाहिए। सम्भव हो तो यह कार्य गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति से ही आरम्भ किया जाय। जिस प्रकार यहाँ बिना किसी खर्चे के किन्तु पूर्ण विधि -विधान के साथ यज्ञोपवीत संस्कार होते हैं,वैसे ही विवाह संस्कार भी बहुत ही उत्तम रीति से सम्पन्न होंगे। जिनने अपने विवाह सम्बन्ध पक्के कर रखे हों या कर रहे हों, वे महायज्ञ के समय विवाह संस्कार करने की तैयारी करें। ऐसे विवाह जहाँ आर्थिक दृष्टि से खर्च और आडम्बर विहीन होने से बड़े सुविधाजनक रहेंगे वहाँ आध्यात्मिक दृष्टि से भी इनकी सफलता निश्चित है। ऐसे विवाहों का परिणाम सुख, सुहाग,धन, संतान सभी दृष्टियों से उत्तम होगा। जिनके लड़की-लड़के मंगली तथा अशुभ ग्रहों वाले हैं उनके लिए तो अनिष्ट शाँति का यह अवसर स्वर्ण सुयोग के समान है।

पूर्णाहुति के लिए “स्वेच्छा सहयोग“

महायज्ञ की पूर्णाहुति के विशाल कार्यक्रम के लिए किसी से न माँगने का व्रत लिया गया है। इसका उद्देश्य केवल अयाचित, सच्ची-श्रद्धा से प्राप्त धन से ही किसी प्रकार काम चला लेना है। कोई व्यक्ति इस भ्रम में न रहे कि संस्था के पास कोई धन राशि जमा है या किन्हीं धनी लोगों ने इस भार को उठाया है। ऐसी बात बिलकुल भी नहीं है। संस्था के पास कुछ भी जमा नहीं है, न किसी धनी आदमी ने इस कार्य का बोझ अपने ऊपर लिया है। यह गायत्री-परिवार का यज्ञ है, उन्हीं की बूँद-बूँद प्राप्त होने वाली श्रद्धाँजलियों से यह पूरा होगा। माँगा नहीं गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि देने पर कोई प्रतिबन्ध है। कोई देगा तो न लिया जायगा ऐसी बात भी नहीं है।

महायज्ञ के समय आने वाले याज्ञिक अपने अपने श्रद्धालु पास-पड़ौसियों से हवन शाकल्य की वस्तुएं संग्रह करके अपने साथ ला सकते हैं ओर उनकी और से वे वस्तुएं स्वयं अपने हाथों हवन कर सकते हैं। तिल, जौ, चावल,शक्कर हवन सामग्री यहाँ मथुरा में ही शास्त्रोक्त विधि से बनाई जायगी। बाजारू हवन सामग्री का उपयोग इस यज्ञ में न होगा। उसे खरीद कर कोई न भेजे। बिना पिसी हवन औषधियाँ स्वीकार की जा सकती हैं।

घी का प्रश्न काफी पेचीदा है। हवन के लिए पूर्ण शुद्ध घी चाहिए, जिसमें रत्ती भर किसी प्रकार की मिलावट न हो। बाजार में ऐसा घी मिलता नहीं। यदि याज्ञिक अपने घरों से या अन्य उदार सज्जनों के यहाँ से विश्वस्त घी इकट्ठा करके ला सकें तो इससे यज्ञ कार्य में सचमुच बड़ी सहायता मिलेगी, दान का माध्यम बहुत ही उत्तम है। उत्साही सज्जन इसके लिए कुछ विशेष प्रयत्न करें।

हवन में एक सौ आहुतियों के पीछे एक रुपया खर्च आता है। सामग्री, घी, समिधा, पूजा पदार्थ आदि हवन सम्बन्धी कुल खर्च मिलाकर एक रुपये में एक सौ आहुति पूरी हो जाती हैं। कोई सज्जन इस यज्ञ में अपनी ओर से कुछ आहुतियाँ कराना चाहें तो उसका व्यय भर अपने ऊपर ले सकते हैं।

भोजन पर एक आदमी के लिए दोनों समय में करीब नौ आना प्रतिदिन खर्च पड़ने की सम्भावना है। परिवार के कोई सज्जन कुछ याज्ञिकों का भोजन व्यय अपने ऊपर लेना चाहें तो उसकी व्यवस्था अपनी ओर से कर सकते हैं। आटा, चावल, दाल आदि खाद्य सामग्री भेजी जा सकती है। हवन के लिए सुविधाएँ तथा भोजन पकाने की लकड़ी की व्यवस्था हो तो वहाँ से लोग इन चीजों को भेज सकते हैं।

ठहरने के लिए तम्बू लगाने पर हर व्यक्ति पर प्रतिदिन प्रायः पाँच पैसा खर्च पड़ेगा। रोशनी बिजली तीन पैसे प्रतिदिन और पानी खर्च दो पैसा प्रतिदिन, सफाई खर्च एक पैसा प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के पीछे पड़ने का अनुमान है। कोई सज्जन कुछ व्यक्तियों का उपरोक्त खर्च उठाना चाहें तो स्वेच्छापूर्वक उठा सकते हैं।

अब उधार चुका दीजिए

कई शाखाओं तथा कितने ही व्यक्तियों के नाम पुस्तकें, हवन सामग्री आदि मँगाने का उधार हिसाब पड़ा हुआ है। अब महायज्ञ के समय संस्था को पैसे की बहुत तंगी है। जिनके नाम उधार पड़ा है, उनके नाम पुनः स्मरण दिलाने वाले पत्रक तथा बिल भेजे जा रहे हैं। सभी से प्रार्थना है कि महायज्ञ में अपना हिसाब पूर्ण चुकता कर लें। उधार की रकमें वसूल हो जाने से यज्ञ खर्च सम्बन्धी कठिनाई में सहायता मिलेगी।

पूर्णाहुति अभी चालू रहेगी

महायज्ञ की पूर्णाहुति मथुरा में एक हजार कुण्डों में होगी। परन्तु ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के अंतर्गत जितना जप, पाठ एवं मंत्र लेखन हुआ है उसके हिसाब से इसका हवन 24 हजार कुण्डों में होने से पूरा हो सकता है। फिर जितने होता और यजमानों ने इस अनुष्ठान में भाग लिया है उनमें से दूर प्रदेशों के निवासियों के लिए आर्थिक एवं अन्य कारणों से मथुरा आ सकना भी कठिन है। इसलिए यह निश्चय किया गया है कि सन् 59 में पूरे एक वर्ष तक सभी शाखाओं में छोटे-बड़े यज्ञ हों और शेष 23 हजार कुण्डों के हवन की कमी, विभिन्न शाखाओं में यज्ञ आयोजन करके पूरी की जाय।

गायत्री परिवार की जिन शाखाओं ने महायज्ञ में सहयोग दिया है उन्हें अगले वर्ष के लिए अपने यहाँ यज्ञ कराने की तैयारी करनी चाहिए। कम से कम 9 कुण्डों के आयोजन रखे जाने चाहिएं। इस सम्बन्ध में शाखा-सदस्य आपसी विचार विमर्श करके अपने प्रस्ताव पूर्णाहुति के अवसर पर भेज दें, कि उनके यज्ञों में मथुरा से कोई ब्रह्मचारी या विद्वान भेजे जा सकें।

मथुरा में एक हजार कुण्डों की पूर्णाहुति तो एक आरम्भ मात्र है। यह एक वर्ष में,23 हजार कुण्डों में, भारत के कोने-कोने में साँस्कृतिक पुनरुत्थान का कार्यक्रम पूरा करने के साथ सम्पन्न होगी। इसे अभी समाप्त नहीं समझना चाहिए। पूर्ण पूर्णाहुति तो 24 हजार कुण्डों के हवन हो चुकने के बाद ही होगी।

बहरूपियों से सावधान रहिये

कितनी ही जगह से पत्र आये हैं कि —मथुरा के कुछ ‘धर्म व्यवसायी’ जगह-जगह गायत्री-यज्ञ के लिए चन्दा माँगते या अनाज इकट्ठा करते हैं, यज्ञ की बड़ी प्रशंसा करते हैं,आचार्य जी के नाम की जाली चिट्ठी बना लेते हैं कि उन्हें तपोभूमि से इस कार्य के लिए भेजा गया है। जहाँ उनकी दाल गल जाती है वहाँ से इस प्रकार धन संग्रह करके नौ दो ग्यारह हो जाते हैं।

जहाँ इनकी घात नहीं लगती वहाँ यज्ञ की और तपोभूमि की निंदा करते हैं। कहीं कहते हैं वहाँ चमार भंगी यज्ञ में बैठेंगे, कहीं कुछ कहते हैं, कहीं कुछ । इस प्रकार वहाँ अपना दूसरा रूप बना लेते हैं।

जनता इन बहरूपियों से सावधान रहे। मथुरा से कोई व्यक्ति कहीं भी चन्दा इकट्ठा करने नहीं भेजा गया है। कोई व्यक्ति ऐसा करता पाया जाय तो उसे पुलिस के सुपुर्द कर देना चाहिए। इसी प्रकार अनेक तरह की भ्रमपूर्ण बातें कोई कह रहा हो तो उसे ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित बहरूपिया मानना चाहिये और इन बातों पर तनिक भी विश्वास न करना चाहिए। ऐसी भ्रमपूर्ण बातों का निराकरण तपोभूमि से पत्र लिखकर करा लेना चाहिए।

धर्म प्रचार की शिक्षण व्यवस्था

गायत्री तपोभूमि का लक्ष आस्तिकता की-धर्म परायणता-की भावनाओं को जन साधारण में जागृत करके सद्विचारों और सत्कर्मों में प्रवृत्ति उत्पन्न करना है। ब्राह्मण संस्थाओं का कार्य भी यही है कि उच्च मनोभूमि का निर्माण करने वाले सद्विचारों की जन मानस में स्थापना करने के लिये निरन्तर प्रयत्न करने में जुटी रहें।

अब तक इस दिशा में इस संस्था ने महत्वपूर्ण कार्य किया है अब और भी सुव्यवस्थित रूप से इस ओर कदम उठाये जा रहे हैं। सत्साहित्य प्रसार के लिए योजना पिछले पृष्ठों पर दी जा चुकी है कि एक पैसा प्रतिदिन दान यज्ञ के लिए निकलकर उससे प्रति अमावस्या, पूर्णिमा को 10 व्यक्तियों को जीवन में धार्मिक चेतना उत्पन्न करने वाली पुस्तिकायें वितरण की जाएं, पढ़ाई जाएं, सुनाई जाएं। इस योजना के अनुसार लाखों-करोड़ों व्यक्तियों के जीवन में धार्मिक भावनाओं की स्थापना की जा सकेगी।

इस लेखनी कार्य के अतिरिक्त दूसरा कार्य वाणी का है। ऐसे सैकड़ों-हजारों धर्म प्रचारकों की आवश्यकता है जो वाणी से भी सद्ज्ञान का प्रचार करने में नियमित रूप से कुछ समय लगाते रहें। मानव जाति के सामने उपस्थित समस्याओं का युग के अनुरूप समाधान सुझा सकें ऐसे धर्म प्रचारकों की आज भारी आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए तपोभूमि में महायज्ञ के बाद ही एक धर्म प्रचारक विद्यालय चल पड़ेगा, जिसमें रामायण, गीता एवं अन्य धर्म ग्रन्थों के आधार पर प्रवचन करके जनता की धार्मिक अभिरुचि को सही दिशा में लगाने का बहुत ही ठोस शिक्षाक्रम रखा जायगा। भजन, कीर्तन, रामायण गा सकने योग्य साधारण संगीत की भी शिक्षा दी जायगी और आरोग्य एवं चिकित्सा शास्त्र का भी सामान्य ज्ञान कराया जायगा। धार्मिक नेतृत्व कर सकने योग्य गुण एवं स्वभाव बनाने का ,वक्तृत्व कला का, भारतीय संस्कृति के इस विद्यालय में पूरा प्रबन्ध रहेगा।

18 से 40 वर्ष तक की आयु के शिक्षार्थी लिए जाया करेंगे। पूरा पाठ्यक्रम 2 वर्ष का होगा। पर कार्यव्यस्त व्यक्तियों के लिए छह महीने की एक स्वल्पकालीन शिक्षण व्यवस्था भी रहेगी। छात्रों के भोजन निवास की निःशुल्क व्यवस्था तपोभूमि में ही रहेगी। सत्पात्र, परिश्रमी और लगन के पक्के छात्र ही इसमें प्रवेश पा सकेंगे।

त्याग और बलिदान का इतिहास

महायज्ञ को सफल बनाने के लिए अनेकों परिजन प्राण-प्रण से कार्य में संलग्न हो रहे हैं। उनके त्याग, परिश्रम और सद्भावना देखकर ऐसा लगता है मानो सतयुग की स्थापना अब अधिक दूर नहीं है। इतनी निस्वार्थता, श्रद्धा, सेवा और धर्म परायणता जो इन दिनों अपने परिजनों में देखी जा रही है वह इस स्वार्थपरता के जमाने में आश्चर्यजनक ही लगती है। इस तपस्या और बलिदान का एक स्वतंत्र इतिहास लिखा जायगा। महायज्ञ की पूर्णाहुति के बाद इसे लिखेंगे और प्रकाशित करेंगे। इसमें गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ताओं के फोटो तथा उनके सत्कर्मों के विस्तृत विवरण छपेंगे। यह इतिहास बतायेगा कि गायत्री परिवार कितनी उच्चकोटि की विचारशील, विद्वान, कर्मठ एवं युग निर्माता त्यागी तपस्वियों की संस्था है और इसके द्वारा कितने ठोस कार्य हो चुके तथा आगे कितना युग परिवर्तनकारी कार्यक्रम सम्पन्न होने जा रहा है।

गायत्री परिवार पत्रिका

गायत्री परिवार के समाचार पहले अखंड ज्योति में छपते थे। समाचारों की तथा संस्था की प्रगति सम्बन्धी आवश्यक जानकारी के बहुत अधिक बढ़ जाने से अब परिवार की शाखाओं एवं गायत्री उपासकों के पथ-प्रदर्शन के लिए “गायत्री परिवार” नामक मासिक पत्रिका स्वतंत्र रूप से गत अप्रैल मास से निकल रही है। इसका वार्षिक चंदा 2) है। पत्रिका प्रायः सभी सक्रिय शाखाओं में भेजी जा रही है। सदस्यों को उसे पढ़ते रहना आवश्यक है।


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