सभ्यता एकान्तिक वस्तु नहीं है। उसका अर्थ हर जगह एक ही नहीं होता। पश्चिम की सभ्यता पूर्व की असभ्यता हो सकती है।
-महात्मा गाँधी
हमारे समाज की जैसी दशा है, उसमें कभी-कभी थोड़ा सा असभ्य हो जाना पड़ता है।
-थैकरे
मानव समाज में कोई न कोई धर्म होगा ही और वह मनुष्य के लिए अत्यन्त महत्व का होगा। वह इस दृष्टि से भारतवर्ष ही मानव सभ्यता का मूल स्रोत सिद्ध होता है। किसी व्यक्ति विशेष के लिए हो या किसी जाति के लिए।
-जूलियन हक्सले
जो मनुष्य अपने को तुच्छ समझता है, वह केवल अपना ही मूल्य नहीं घटाता, किन्तु समस्त जाति को अप्रतिष्ठित करता है। मनुष्य जहाँ महापुरुषों को देखता है वहीं उसे अपने बड़े होने का ज्ञान हो जाता है।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर।