मनुष्य स्वयं अपना भाग्य विधाता है।

February 1958

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(स्वामी रामतीर्थ)

हम यह देखते हैं कि चींटियों जैसे क्षुद्र जीवधारियों की भी इच्छायें पूर्ण होती हैं। तो फिर मनुष्य की इच्छायें ही क्यों मारी जायें? प्रकृति या ईश्वर द्वारा मनुष्य की ही हंसी क्यों उड़ाई जाय? मनुष्य उपहास के ही योग्य नहीं हैं। उसकी इच्छाओं का भी होना भी आवश्यक है। हमारी अधिकाँश इच्छाएं इसी जीवन में फलती-फूलती हैं। इस तरह हम देखते हैं कि हमारी इच्छायें ही हमारे कार्यों में रूपांतरित हो जाती हैं, इच्छायें ही प्रेरक शक्तियाँ हैं। किन्तु जो अनेक इच्छाएं पूर्ण नहीं होती उनकी क्या गति होती हैं? वेदान्त कहता है “ऐ मनुष्य! तू ईश्वर द्वारा हंसे जाने के लिए नहीं बनाया गया है। तुम्हारी भी अपूर्ण ओर अतृप्त इच्छायें अवश्यमेव फलवती होंगी, यदि इस लोक में नहीं, तो दूसरे लोक में।

यहाँ एक प्रश्न और उपस्थित होता है। यदि इससे पूर्व हमारा कोई जीवन था, और यदि मृत्यु के बाद हमें फिर जन्म लेना पड़ता है, तो फिर हमें पिछले जन्मों की याद क्यों नहीं रहती है? वेदान्त पूछता है, स्मृति या स्मरण शक्ति क्या है? उदाहरण के लिये राम अमरीका में एक विदेशी भाषा में बोल रहा है। राम ने भारतवर्ष में कभी अंग्रेजी भाषा में व्याख्यान नहीं दिया। तुम लोगों से अंग्रेजी बोलते समय मातृभाषा का एक भी शब्द राम के चित्त में नहीं आया। किन्तु क्या उसकी भारतीय मातृभाषा कहीं खो गई है? नहीं। वह राम के पास ज्यों की त्यों है। यदि राम चाहे तो उसे तुरन्त ही संस्कृत, हिन्दी और उर्दू फारसी आदि भारतीय भाषायें याद पड़ सकती हैं। अच्छा, तो स्मृति क्या है? तुम्हारा मन एक झील जैसा है। इस समय राम के मानसरोवर में भी भारतीय भाषायें, संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी आदि इस झील की तह में बैठी हैं। बात की बात में हम इस झील को क्षुब्ध कर सकते हैं, बस, यही किसी चीज को याद करना कहलाता है। तुम बहुतेरी बातें जानते हो, परन्तु हर समय तुम्हें सबका चेत नहीं रहता। इसी क्षण तुम अपने मन की झील को हिला डुला कर उनको सचेत कर सकते हो, उन्हें ऊपरी तल पर लाने से वे तुम्हारे चित्त या मस्तिष्क में आ जाती हैं।

इसी तरह वेदान्त कहता है, तुम्हारे सारे जन्म और पूर्व जीवन तुम्हारी चेतना की आन्तरिक झील में, तुम्हारे ज्ञान की आन्तरिक झील में विद्यमान रहते हैं। वे वहाँ रहते हैं। इस समय वे निम्नतम तह पर अवस्थित हैं। वे ऊपरी तल पर नहीं हैं। यदि तुम अपने पिछले जन्मों की याद करना चाहते हो, तो यह कोई कठिन बात नहीं है। अपने ज्ञान सरोवर को खूब निम्नतम तह तक खलमला डालो और आप जो चीज चाहें उसे ऊपरी तल पर ला सकते हैं। यदि आप चाहें तो आप पिछले जन्मों की भी याद कर सकते हैं, किन्तु एक बात है, ऐसा प्रयोग लाभदायक नहीं होता। क्योंकि एक दूसरे नियम-विकासवाद-के अनुसार तुम्हें आगे बढ़ना है, तुम्हें अग्रसर होते रहना है। इसलिए जो गया सो गया, उसकी क्या खबर करना। तुम्हारा उससे कोई सरोकार नहीं तुम्हें तो आगे बढ़ना है।

फिर कर्म का विधान एक बात और बतलाता है जिन चीजों में तुम्हें इतनी दिलचस्पी है, जिन्हें तुम इतना अधिक पसन्द करते हो, जिनसे तुम इतने आकृष्ट होते हो, जिन सबको तुम दुनिया में देखते हो, वेदान्त कहता है, कर्म विधान के अनुसार, तुम इन्हें पसन्द करते हो, तुम्हें इनसे दिलचस्पी है, तुम इन्हें प्यार करते हो, तुम इन्हें पहचानते हो, क्यों? केवल इसी कारण कि किसी समय तुम भी इन सब चीजों में होकर गुजर चुके हो, तुम चट्टान थे, तुम चट्टानों में सो चुके हो, तुम नदियाँ में होकर बहे हो, तुम पौधों में उगे हो, तुम पशुओं में दौड़े हो, तुम अब उन सबको देखते और पहचानते हो। अब हम इसी बात को एक दूसरे तर्क से सिद्ध कर सकते हैं।

संस्मरण क्या हैं? संस्मरण से प्रतीत होता है कि जिस वस्तु को हम अभी याद कर रहे हैं उसे हम पहले ही जानते थे। दृष्टान्त के लिए कल्पना करो कि दो मनुष्य एक साथ इन व्याख्यानों को सुनते आते रहे हैं, कभी न बिछुड़ने वाले जोड़े के रूप में। इस भवन में दिये हुये सात व्याख्यानों में वे साथ-साथ आये किंतु आठवें व्याख्यान में एक अकेला ही आया है दूसरा नहीं आया हैं। बिछुड़े हुए अकेले मनुष्य से मित्रगण स्वभावतः वह प्रश्न करेंगे, तुम्हारा मित्र-तुम्हारा प्रिय मित्र आज कहाँ है? वह कहाँ गया है?” ऐसा प्रश्न क्यों किया जायगा? इसका हेतु है संस्मरण का नियम, जो संग या संयोग का नियम भी कहा जा सकता है। हम दोनों को सदा साथ-साथ देखते आये हैं, दोनों हमारे इतने सुपरिचित हो गये हैं, कि दोनों हमारे चित्त में, मानों एक हो गए हैं, इसलिए बाद को जब हम उनमें से एक को देखते हैं तो वह हमें तुरन्त दूसरे की याद दिलाता है। इसी तरह हमारे मस्तिष्क में संग या संयोग का नियम काम करता हैं, जिससे हमें उसके साथी की याद आईं। इस याद का अर्थ है कि हमें उस वस्तु की पहले से जानकारी थी जिसको हम अभी याद करते हैं।


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