गायत्री पुस्तकालय स्थापित कीजिए

January 1956

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गायत्री ज्ञान की महाशक्ति है। इस महामंत्र में सद्ज्ञान की सद्बुद्धि की भावना की गई है। गायत्री माता जब प्रसन्न होती हैं तब साधक को ऐसा ज्ञान देती हैं जिससे उसे बड़ी से बड़ी कठिनाइयाँ पार करने का तथा आनन्दमय सफल जीवन व्यतीत करने का मार्ग मिल जाता है। यह मार्ग अन्तःप्रेरणा-सद्बुद्धि-सामयिक सूझ बूझ के द्वारा ही मिलता है। ज्ञान ही गायत्री का वरदान है।

गायत्री उपासना में जहाँ पूजा, उपासना, ध्यान, हवन, अनुष्ठान आदि की आवश्यकता है वहाँ गायत्री महाविद्या की समुचित जानकारी प्राप्त करके उसमें छिपे हुए अत्यन्त महत्वपूर्ण रत्न भंडार को समझ लेना भी आवश्यक है। ज्ञान और कर्म अध्यात्म रस के दो पहिये हैं। दोनों से बिना यह गाड़ी ठीक प्रकार नहीं चल सकती। गायत्री माता का ध्यान करना उनका पूजन करना जिस प्रकार आवश्यक है उसी प्रकार गायत्री ज्ञान की पुस्तकें पढ़ना तथा उनका स्वाध्याय मनन चिन्तन करना भी आवश्यक है। गायत्री उपासना में गायत्री ज्ञान का, साहित्य का भी प्रमुख स्थान है।

जितना पुण्य ‘गायत्री देवालय को बनाने का है उतना ही पुण्य ‘गायत्री पुस्तकालय’ स्थापित करने का है। गायत्री माता की मूर्ति को देखकर उन्हें प्रणाम करने के लिए मस्तक झुकता है उसी प्रकार गायत्री साहित्य को पढ़ने से आत्मा में सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा उत्पन्न होती है। गायत्री देवालय बनाना सब के लिए सरल नहीं उसमें हजारों रुपया खर्च करने को तथा पीछे पूजा उपासना के लिए स्थायी खर्च का प्रबन्ध करने की जरूरत पड़ती है। पर गायत्री पुस्तकालय बीस तीस रुपये की छोटी पूँजी से स्थापित हो जाता है। अखंड ज्योति पत्रिका इस पुस्तकालय में सदा आती रहे तो यह 31 वार्षिक का चार आना मासिक पूजा खर्च की इतना है जिसकी व्यवस्था कोई गरीब भी आसानी से कर सकता है।

विशद् गायत्री महायज्ञ के अंतर्गत 125 करोड़ जप, 125 लाख हवन, 125 हजार ब्रह्मभोज का संकल्प है। साथ ही 1250 गायत्री पुस्तकालय स्थापित करने का भी कार्य किया जाय तो अतीव उत्तम है। जिन गायत्री उपासकों ने इतनी श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक इतनी बड़ी साधना पूरी की है वे चाहें तो 1250 गायत्री पुस्तकालय स्थापित करने—जिसका महत्व इतने ही गायत्री देवालय बनवाने से किसी भी प्रकार कम नहीं है—का कार्य भी आसानी से पूरा कर सकते हैं। अधिकाँश गायत्री उपासकों के पास पहले से ही गायत्री साहित्य की बहुत-सी पुस्तकें मौजूद हैं जो कम हों उन्हें अब मंगा कर अपना गायत्री पुस्तकालय पूरा कर सकते हैं। जहाँ ऐसी स्थिति हो कि एक व्यक्ति सब पुस्तकें न मँगा सके वहाँ चार पाँच व्यक्ति मिलकर उन्हें मंगा सकते हैं और मिलजुल कर एक पुस्तकालय चला सकते हैं। जहाँ पूरे पैसों का अभी प्रबन्ध न हो सके वहाँ से आधे पैसे अभी भेज देने पर शेष आधे पैसे की उधार पुस्तकें भी भेजी जा सकती हैं। यह शेष पैसा पूर्णाहुति के समय आने जाने वाले किसी व्यक्ति के हाथों भेजा जा सकता है।

जिस प्रकार घर घर में गायत्री माता के चित्रों की-मूर्तियों की पूजा होने की, जप और हवन होने की आवश्यकता है वैसे ही पुस्तकालयों की स्थापना भी जरूरी है। घर घर, मुहल्ले मुहल्ले, गाँव गाँव गायत्री पुस्तकालय होने चाहिए जिससे उस घर के सभी व्यक्ति, स्त्री पुरुष, बच्चों, रिश्तेदार, कुटुम्बी, मित्र, अतिथि, आगन्तुक आदि संबंधित व्यक्ति अब तथा आगे बीसियों वर्षों तक लाभ उठाते रहें। दूसरे से माँगकर पुस्तकें पढ़लें उससे तत्काल कुछ काम तो चल सकता है पर कई कई बार इन ग्रन्थों के पढ़ने से जो लाभ मिलता है तथा घर में यह सब साहित्य रहने से अनेक व्यक्ति आगे भी लाभ उठाते रह सकते हैं वह बात माँग जाँच कर पुस्तक पढ़ लेने से नहीं हो सकती।

गायत्री पुस्तकालय की स्थापना एक बटडडडडडडडडडडड डडडड के समान श्रेष्ठ कार्य है। इस पुनीत स्थापना को गायत्री देवालय बनवाने से कम महत्व का किसी भी प्रकार नहीं समझना चाहिए। इस प्रयत्न से जिन पढ़ने वालों को प्रेरणा मिलेगी जो साधनारत होंगे—उनका दशाँश पुण्य, इन पुस्तकालयों की स्थापना का प्रयत्न करने वालों को सदैव मिलता रहेगा। क्योंकि शुभ-अशुभ कार्यों में प्रेरणा करने वाले को भी दशाँश पाप पुण्य का भाग मिलता है। इन पुस्तकों से कुछ थोड़ा सा लाभ बचता है वह गायत्री तपोभूमि का खर्च चलने में ही काम आता है। इस प्रकार इन पुस्तकालयों की स्थापना एक प्रकार से गायत्री महायज्ञ की आर्थिक सहायता करना भी है। इस प्रकार सद्ज्ञान प्रसार और तपोभूमि की सहायता का दुहरा पुण्य इस पुनीत प्रयत्न में छिपा हुआ है। 3॥) वाली 5 पुस्तकें 1॥), वाली 2 पुस्तकें 2) वाली 11।=) वाली 12,-)। वाली 8,-) वाले दो तिरंगे चित्र तथा चालीसा इस प्रकार कुल 30 पुस्तकें तथा 2 पूजा उपासना के उपयुक्त चित्र सब मिला कर 27॥=) का होता है। थोड़ी सामर्थ्यवान् व्यक्ति भी अपने घर में यह देवालय स्थापित कर सकते हैं। जिनके पास कई पुस्तकें मौजूद हैं उनके लिए शेष पुस्तकें मंगा लेना कोई बहुत भारी काम नहीं है। कई व्यक्ति मिलकर तो ऐसा पुस्तकालय बड़ी आसानी से स्थापित कर सकते हैं। आधा मूल्य उधार कर सकने की सुविधा से तो आर्थिक कठिनाई वाले प्रसंगों में भी काफी सरलता हो सकती है।

थोड़ा उत्साह हो तो आप थोड़े बहुत ऐसे गायत्री देवालय (पुस्तकालय) स्थापित करने में अवश्य सफल हो सकते हैं। इस दिशा में कुछ प्रयत्न करके गायत्री प्रचार के पुण्य कार्य को अधिक सुदृढ़ बनाने में सहयोग करने के लिए तपोभूमि अपने सभी शुभ चिन्तकों तथा सहयोगियों से आशा करती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118