काम क्रोध मद मान न मोह, लोभ न छोभ न राग द्रोहा जिन्हके कपट दम्भ नहिं माया, तिन्ह के हृदय बसहु रघुराय सबके प्रिय सबके हितकारी, सुखदुख सरिस प्रसंशा गारि कहहिं सत्य प्रियबचन बिचारी, जागत सोवत सरन तुम्हारी