तपोभूमि में विशेष यज्ञों की शृंखला।

June 1955

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गायत्री तपोभूमि में गत बसन्त पञ्चमी से विशेष गायत्री महायज्ञ चल रहा है। अब उसका विशेष यज्ञों का आयोजन अगले मास में प्रारम्भ हो रहा है। वशद गायत्री महायज्ञ में 125 लाख आहुतियों के द्वारा जो महान मंगलमय वातावरण उत्पन्न होने जा रहा है उसमें इन विशेष यज्ञों से और भी अधिक सहायता मिलेगी।

इन विशेष यज्ञों का महत्व और महात्म्य अत्यन्त ही महान है। मनुष्य की साँसारिक और आध्यात्मिक कठिनाइयों के समाधान में इनके द्वारा भारी सहायता मिलता है। श्रावण में होने वाला रुद्र यज्ञ—एवं रुद्राभिषेक भगवान शंकर के अनुग्रह को विशेष रूप से उपलब्ध कराने में समर्थ होता है। शिव शक्ति की कृपा होने पर जो लाभ जीव को प्राप्त होने सम्भव हैं उन्हें उपलब्ध कराने में रुद्रयज्ञ एक असाधारण उपकरण है।

प्रथम भद्र पद में होने वाला महा मृत्युञ्जय यज्ञ मनुष्यों में संजीवनी शक्ति का प्रादुर्भाव करता है। महामृत्युञ्जय यज्ञ के द्वारा मरे हुए मृत प्रायः मृत्यु के मुख में अटके हुए प्राणी भी पुनर्जीवित होते, जीवनी शक्ति प्राप्त करते देखे गये हैं। जिनका शरीर और मन निर्जीव, निष्प्राय, दुर्बल, जर्जरी भूत हो रहा हो उन्हें महामृत्युञ्जय शक्ति एक प्रकार से संजीवनी जीवनमृरि ही है।

दूसरे भाद्रपद में पुरुषोत्तम मास में यजुर्वेदीय पुरुष सूक्त से विष्णु यज्ञ होगा। यह सुख, सम्पत्ति, श्री, कीर्ति, लक्ष्मी, संतान आदि आनन्ददायक परिस्थितियों को उत्पन्न करने वाला माना गया है। लक्ष्मीपति विष्णु की यज्ञीय उपासना साँसारिक समाज और दारिद्र को मिटाने में बड़ी सहायक होती है।

आश्विन में होने वाला शत चंडी यज्ञ दुर्गा की प्रचण्ड दुर्धर शक्ति का आह्वान है। विद्युत की तरह यह आपत्तियों संकटों कठिनाइयों के पहाड़ पर वज्र की तरह गिरनी है और उन्हें चूर चूर कर डालती है। शत्रुता, द्वेष, बन्धन, विरोध, क्लेश आदि के असुरों का उदर विदीर्ण करने के लिये चण्डी महा शक्ति व प्रहार तीक्ष्ण तलवार की तरह होता है।

कार्तिक में होने वाला नवग्रह यज्ञ ग्रह दशा का जो प्रभाव किसी मनुष्य, प्रदेश, जाति अथवा राष्ट्र पर पड़ता है उसके अशुभ प्रभाव को हटाने और शुभ प्रभाव को बढ़ाने में चमत्कारिक रूप से उपयोग सिद्ध होता है। शनि राहु आदि अशुभ ग्रहों के अनिष्ट कर प्रभाव से पीड़ितों के लिए नवग्रह यज्ञ जितना हितकारक है उतना ही शुभ ग्रहों के मन्द फल को तीव्र करके लाभ और कल्याण की अधिक आनन्दमयी परिस्थिति भी उत्पन्न करता है।

चारों वेदों के मन्त्र मार्गशीर्ष से प्रारम्भ होंगे। यजुर्वेद में उन शक्तियों का विशेष रूप से समावेश है जो आनन्ददायक, प्रिय, रुचिकर, सुखदायी, पदार्थों को उत्पन्न करती है। यजुर्वेद के मन्त्रों से भरी हुई सूक्ष्म शक्तियों का प्रकाश जिन्हें प्राप्त हो जाता है उन्हें किन्हीं वस्तुओं पदार्थों एवं उपकरणों का अभाव नहीं रहता है।

ऋग्वेद का यज्ञ पौष में होगा जो आत्मा को परमात्मा से मिला देने के महान अध्यात्म विज्ञान से सब प्रकार परिपूर्ण हैं। दुष्ट मनोविकारों, संचित दुष्कर्मों, पाप तापों, को जला डालने में ऋग्वेदीय मन्त्र अग्निबाण के सदृश्य है। वे आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने वाली दूरवर्ती मात्रा को शीघ्र पूरा कर देने में पुष्पक विमान के समान सिद्ध होते हैं।

सामवेद का उपयोग बुद्धि, भावना, स्नेह, सदाचार अन्तःकरण चतुष्टय की शुद्धि, कुण्डलिनी आदि शक्तियों के जागरण, षट्चक्र वेधन, ऋद्धि सिद्धियों की उपलब्धि के लिए है। यह यज्ञ माघ में होगा।

अथर्ववेद का यज्ञ फाल्गुन में प्रारम्भ होगा जो शरीर अन्य रोगों एवं अपूर्णताओं को हटाने में रामबाण के समान माना गया है। सन्तान सुख, दीर्घ जीवन, आरोग्य वृद्धि आदि प्रयोजनों के लिए सदा अथर्ववेदीय यज्ञ उपासना की जाती है।

चैत्र में ज्योतिष्टोम, अग्निष्टोम आदि श्रौत यज्ञ होंगे। और चैत्र की नवरात्रि के अन्त में पूर्णाहुति के समय नरमेध यज्ञ किया जायगा। जो व्यक्ति अपने जीवन को गायत्री माता और यज्ञ पिता को सर्वतोभावेन सौंपने का संकल्प लेंगे, उनका व्यक्तित्व संकीर्ण स्वार्थपरता अहंभाव की चरुस्थाली से उठाकर भगवान बैश्वानर के अग्निकुण्ड में होम कर—विश्व मानव का, समष्टि पुरुष का एक अंग बना दिया जायगा। ऐसी आत्माएँ जो नरमेध में अपनी आहुति देगी, अभी से अपनी तैयारी में लगेंगी।

अत्यन्त ही विशद गायत्री यज्ञ के साथ साथ इतने यज्ञों की एक साथ क्रमबद्ध सांगोपांग शास्त्रोक्त पद्धति पर आधारित आयोजन अब तक शायद ही कभी हुआ हो। ऐसे अवसर भविष्य में भी कदाचित ही किन्हीं सौभाग्यशाली व्यक्तियों को प्राप्त होंगे। इन यज्ञों के द्वारा विश्व शान्ति, समस्त संसार का कल्याण, बढ़ी अनीति और आपत्तियों का निवारण, शान्तिमय वातावरण की उत्पत्ति आदि व्यापक लाभ तो होगा ही—इनमें भाग लेने वाले याज्ञिक व्यक्तिगत रूप में भी समुचित आध्यात्मिक और साँसारिक लाभ प्राप्त करेंगे।

जागृत आत्माएँ इस आलस्य अवसर को हाथ से ना जाने दे इसी में उनकी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता है। एक आध लोग यों ही असफल प्रयोगों में लगा देते हैं, यदि 10−15 महीनों का आगामी समय के हम महान आध्यात्मिक प्रयोग के लिये लगा दें तो निश्चित रूप से यह उनके लिए एक सफल आध्यात्मिक एवं नैतिक व्यापार सिद्ध हो सकता है। शिक्षित,निरोग धार्मिक प्रकृति, श्रद्धालु और परिश्रम शील स्त्री−पुरुष ही इसमें भाग ले सकेंगे और तपोभूमि में ठहर सकेंगे। व्यसनी, स्वार्थी, झगड़ालू, आलसी, रोगी, कामचोर स्वभाव के एवं अशिक्षित व्यक्ति इस कार्य के अनुपयुक्त रहेंगे। जिन्हें इन यज्ञों में भाग लेने के लिए मथुरा आना हो वे पत्र व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त और करलें और यथा सम्भव जल्दी ही तपोभूमि पहुंचने का प्रयत्न करें ताकि इन यज्ञों में भाग लेने की पूर्व तैयारी एवं आवश्यक शिक्षा प्राप्त करने का पहले ही अवसर मिल जाये। भोजन एवं ठहरने की व्यवस्था तपोभूमि में रहेगी। महिलाओं के ठहरने की समुचित व्यवस्था की गई है। यज्ञों सम्बन्धी शास्त्रीय शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिए तो यह एक स्वर्ग सुयोग ही है।

जिसके पास समय है ऐसे अपने परिवार को अगले 10 महीने, या जितने दिन सम्भव हो मथुरा आने और यज्ञ में भाग लेकर जीवन को सच्चा लाभ प्राप्त करने के लिए हम सादर आमन्त्रित करते हैं।

सरस्वती यज्ञ:—

ज्येष्ठ सुदी 1 से ज्येष्ठ सुदी 10(गायत्री जयन्ती) तक का सरस्वती यज्ञ इन दिनों आनन्द और उत्साहमय वातावरण में चल रहा है। भारतवर्ष के सुदूर प्रांतों से अनेकों व्यक्ति ज्ञान वृद्धि, विकास, साँस्कृतिक शिक्षा एवं तपश्चर्या के उद्देश्य से तपोभूमि में एकत्रित हुए है। ब्राह्मी, बच, शतावरी गोरखमुण्डी, आदि वृद्धि के औषधियों के द्वारा सरस्वती मंत्र से, प्रातःकाल 5 बजे से यज्ञ प्रारम्भ हो जाता है, और तीनों यज्ञशालाओं पर बड़े ही व्यवस्थित रूप में 9॥ बजे तक यज्ञ होता रहता है। तीसरे पहर से लेकर सायंकाल तक प्रवचन चलते रहते हैं। अनुभवी और अधिकारी वक्ताओं के द्वारा आगन्तुकों को अमृतमय उपदेश दिये जाते हैं। तीर्थ यात्रा का भी कार्यक्रम रखा गया है। ता. 26 मई को कितने ही व्यक्तियों को यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से कर्मकाण्डी विद्वान पंडितों द्वारा संपन्न कराया गया जिसका दृश्य बहुत ही हृदय ग्राही था। यह अंक जब तक पाठकों के हाथों में पहुंचेगा तब तक सरस्वती यज्ञ कर सब कार्य भली प्रकार पूर्ण हो चुका होगा।

यज्ञ महत्व विशेषांक:—

‘अखण्ड ज्योति’ का अगला (जुलाई 55 का) अंक ‘यज्ञ महत्व विशेषांक’ होगा। इसमें यज्ञ की महत्ता, उपयोगिता, शक्ति एवं वैज्ञानिक विशेषता पर समुचित प्रकाश डाला जायेगा। इस अंक से पाठकों का यज्ञ सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।


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