(प्रो. मोहनलाल वर्मा)
आप उदास हैं! चेहरा मुरझाया, शरीर थका और तबियत निढाल! जीवन में अनेक बार आप उदास हो जाते हैं, अंग शिथिल, मन भारी, काम में तबियत नहीं लगती। मनहूसियत बरसती है तो उबासियाँ चैन नहीं लेने देती। आप परेशान होकर सोचते हैं कि क्या करें? कही चले जायं? सर में दर्द है। शरीर भारी इन्द्रियों, गिरी-गिरी, आँखों में थकान तो हृदय में जोश उत्फुल्लता और उत्साह का नाम निशान नहीं। जगत् जंजाल लगता है, तो परिवार भार स्वरूप प्रतीत होता है।
उदासी जीवन के ऊपर यकायक आ जाने वाली मृत्यु अंधियारी है। यह हमारी जीवन-शक्ति का ह्रास करती है। शरीर को शिथिल कर देने वाली राक्षसी है। अधिक देर तक मनुष्य में रहने से उदासी स्थायी बन जाती है और “मलनकोलिया” जैसे मानसिक रोग को उत्पन्न करती है। इस रोग का रोगी गंभीर नैराश्य मुद्रा बनाये रहता है। किसी कार्य में दिलचस्पी नहीं लेता, लोगों से मिलने बरतने में सकुचाता है, मनोरंजन संगीत नृत्य, खेल तमाशों में भाग नहीं लेता। छोटे शिशुओं से नहीं खेलता, अपनी पत्नी माता बहिन परिवार आदि से भी खिंचा तना रहता है। शौक की वस्तुओं में मन नहीं लगता।
उदासी जीवन-पुष्प को मुरझा देने वाली भयावह झंझावत है। कोई सुरम्य वाटिका हो, उसमें रंगीन मदभरे, उत्साह से परिपूर्ण छोटे-2 कोमल कमनीय फूल विंहस रहे हों, पर अचानक इधर उधर अग्नि लग जाये और धीरे-2 आकर इन पुष्पों से लदे हुए पौधों को झुलसा दे, तो कैसी दुरावस्था होगी! उदासी आने से हम इसी प्रकार हृदय की लोनी लोनी कमनीय भावनाओं, विहंसती हुई महत्वाकांक्षाओं, सद्भावनाओं, प्रेम सहानुभूति की कलिकाओं को झुलसा देते हैं।
निराशा यदि अग्नि है, तो उदासी उससे उठने वाला विषैला धुंआ है। जैसे काला काला धुंआ सफेदी से पुते हुए श्वेत घर को काला बना देता है, जिसमें बैठाने या ठहरने को मन नहीं करता, उसी प्रकार उदास मनः स्थिति वाले व्यक्ति की दिव्य आनन्दमयी आत्मा क्लान्त, अतृप्त, व्यग्र सी रहती है। आत्मा दिव्य परमात्म तत्व का अंश है। उदास रह कर हम अपने परमात्म तत्त्व का ह्रास करते हैं।
उदासी, कुरूपता, चेहरे का बेढंगापन, और तनाव की सृष्टि करती है। उदासी से मुख मण्डल म्लान पड़ जाता है तथा मानसिक शक्तियाँ निर्बल हो जाती हैं। प्रायः उदासी का एक कारण शारीरिक अथवा मानसिक थकावट होती है। एक ही परिस्थिति अथवा एक ही कार्य करते करते हम थक जाते हैं। अतः उदासी दूर करने के लिए नया कार्य, नई परिस्थितियाँ, नये लोगों का संपर्क स्थापित कीजिये। जिस कार्य से उदासी उत्पन्न हुई हो, उसे परिवर्तित कर नया काम प्रारम्भ कीजिए।
उदासी संपर्क से आती है। आप उदास, गंभीर चिन्तनशील प्रकृति के व्यक्तियों के साथ रह कर उदास बनते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ रहिये जो पुष्प के समान तरोताजा और खिले हुए रहते हैं, जो चिन्ताओं को चुटकियों में उड़ाते हैं। अपने चारों ओर ऐसे चित्र रखिए जिसमें मनुष्य हंस खेल रहे हों। स्वयं अपने ऐसे चित्र खिंचवाइये जिनमें आप प्रसन्न और आह्लादमयी मुखमुद्रा में हों। इन चित्रों को देखकर स्वयं अपनी उदास सूरत पर आपको लज्जा आयेगी और उदासी दूर हो जायगी।
मुझे जब उदासी आती है, तो मैं अपने बच्चों के साथ खेलता हूँ। मैं अपना दुःख दर्द भूल कर कुछ काल के लिए बालक बन जाता हूँ-सरल चित्त और आह्लादमय, कपट और दुराव से उन्मुक्त पवित्र और निर्द्वन्द्व। समाज में कुछ व्यक्ति मेरे मित्र तो कुछ शत्रु हो सकते हैं, आदर अनादर कर सकते हैं, किन्तु ये सरल आनन्द स्वरूप शिशु तो सदैव ही मित्र हैं, दुःख को दूर करने नया उत्साह भरने वाले हैं। इनके लिए काले गोर, अमीर, गरीब, हरिजन सवर्ण किसी का तुच्छ भेद भाव नहीं, शिष्ट बनने का कृत्रिम दम्भ नहीं, परछिद्रान्वेषण या टीका-टिप्पणी करने की कमजोरी नहीं। वे तो शुद्ध ब्रह्म रूप हैं। उनमें आनन्द मय रूप पर्याप्त विकसित है, सांसारिकता से दब नहीं गया है। आनन्दमय रहने में बालक मेरे गुरु है, पथप्रदर्शक हैं, शान्ति एवं जीवन के प्रति उत्साह दिलाने वाले सच्चे मित्र हैं। उन्हें देख कर उनसे खेल कर उनकी हृदयतंत्री के तारों से झंकृत प्रेम से मैं ईश्वरत्व का अनुभव करता हूँ।
उदासी मन के गलत विकारमय काल्पनिक भयों के कारण उत्पन्न होती है। ऐसा व्यक्ति मन में अपने विपरीत, विरोधी, निराशावादी विचार रखता है। और मन में व्यर्थ के काल्पनिक भय मत रखिये और अपने जीवन के अप्रिय रूप पर गंभीरता से मत विचार कीजिए। अप्रिय भाव मन में इधर उधर चक्कर काटते रहते हैं और हमें मानसिक क्लान्त बना देते हैं। प्रायः मानसिक श्रम करने वाले उदासी से अधिक परेशान रहते हैं। कारण, जब मन उदास है, थका हुआ है, तो सम्पूर्ण शरीर पर उदासी छा जाती है। अतः जब जब मानसिक थकान हो तो श्रम छोड़ कर नया मनोरंजन कार्य कीजिये।
भजन पूजन तथा कीर्तन आदि आनन्दमय प्रभु से सान्निध्य प्राप्त करने और तुच्छ साँसारिकता से उत्पन्न उदासी दूर करने के उपाय हैं। “ॐ आनन्दम्, ॐ आनन्दम्।” का पुनःपुनः उच्चारणः गायत्री जैसे दिव्य मंत्र का जाप, “रघुपतिराघव राजाराम, पतित पावन सीताराम” अथवा भगवान के नाम का स्मरण दिलाने वाले किसी भजन का गायन मन में उत्फुल्लता और शान्ति उत्पन्न करने वाला है। संगीत में कुछ ऐसी उत्फुल्लकारी शक्ति है, जिससे उदासी दूर होकर ताजगी आती है। कोई हर्ज नहीं यदि आप अच्छे गवैया नहीं है। भक्ति रस के कुछ वचन, तुलसी, सूर या मीरा के प्रेम रस पूर्ण भजन गुनगुनाइये, उदासी दूर हो जायेगी।
जब आप निराश हों, तो बाहर स्वास्थ्यप्रद स्वच्छन्द वायु में घूमने निकल जाइये। आजकल का जीवन सभ्यता के बनावटी वातावरण में बुरी तरह बंध गया है। आवश्यकता है कि हम प्रकृति के मनोरम दृश्यों, सरिता तटों, लहलहाते खेतों, उद्यानों की शीतल विमल वायु का आनन्द लें। कल्पना की सहायता से अपने उज्ज्वल भविष्य के चित्र बनायें और आनन्दमम् बने रहें। प्राकृतिक वातावरण में निवास करने से मानसिक यातनाएँ दूर होती हैं चिन्ता के पर्वत चूर चूर होकर उड़ जाते हैं।
मेरे एक मित्र चित्रकार हैं। उनका अधिकाँश समय चित्रकला के अभ्यास में व्यतीत होता है। जब कभी उनके पास फालतू समय होता है तथा बेकार होते हैं, वे चित्रकारी का सामान लेकर प्रसन्नतापूर्ण चित्रों की सृष्टि करने बैठ जाते हैं। आनन्दमय विचारों से अपने मन और हृदय को पूर्णतः परिपूर्ण कर लेते हैं। बाहर भीतर आनन्दमय वातावरण छा जाने से उदासी स्वयं लुप्त हो जाती है।
जब आप उदास होते हैं, तो आप प्रायः खाली निठल्ले भी होते हैं। खाली मन्द विरोधी चिन्तन में लीन होकर मन को उदासी से भर देता है। अतः आप कुछ कीजिए। कोई आनन्ददायी कविता या उपन्यास नाटक या अपनी प्रिय पुस्तक पढ़िये। उदासी के कारण को भूलने के लिए कविता बड़ी उपयोगी है। दो चार ऐसी कविताएं कंठस्थ कर लीजिए जिनको पुनः उच्चारण करने से मन में प्रेरणा उत्पन्न होती है। जैसे श्री जगदम्बा प्रसाद शर्मा ने स्वयं अपना प्रिय गजल अपनी डायरी में इस प्रकार लिख रखा है:—
आदमी वो है, जो मुसीबत में परेशां न हो। कोई मुश्किल नहीं जो आशां न हो।
दुनिया में परेशानी है गर्दिश का चलन, चाँद सूरज पर पड़ जाता है एक रोज ग्रहण मर्द वही है जो मुसीबत में परेशां न हो।
आप भी इसी प्रकार का कोई प्रिय भजन, श्लोक, कविता, पद्य इत्यादि यदि कीजिए।
उदासी का एक कारण शारीरिक या मानसिक थकान है। इसके लिए पर्याप्त विश्राम करना चाहिए। घंटा भर सो लीजिए, निद्रा की मधुरता में उदासी धुल जायगी और नव शक्ति का संचार होगा। स्नान करने से भी मन और शरीर की थकावट दूर होती है। यदि किसी नदी में तैर सकें तो और भी ताजगी आयेगी। अनेक वृद्धों तक ने स्नान या तैर कर ताजगी प्राप्त की है। इंग्लैंड का सुप्रसिद्ध नाट्यकार जार्ज बर्नाडशा अस्सी वर्ष का होने पर भी तैरने का शौकीन था। उसका अनुभव था कि पानी में डुबकी लगाने, या तैरने से बढ़कर शरीर मन आत्मा को ताजगी देने वाला और अच्छा उपाय नहीं।
मित्रो, प्रसन्न रहो, उदासी आपके लिए अप्राकृतिक तथा हानिकर है। गीता में स्वयं भगवान् ने कहा हैं:—
प्रसादे सर्व दुःखाना हानि रस्योपजायते।
प्रसन्न चेतसो ह्याशु बुद्धिपर्यवतिष्ठते॥
(गी. 2।65)
अर्थात् चित्त प्रसन्न रहने से सब दुःख दूर होते हैं और प्रसन्न चित्त रहने से बुद्धि स्थिर होती है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति को श्रीयोन नागोची की निम्न प्रार्थना करना चाहिए—
“हे प्रभु! जब जिन्दगी के कगारों की हरियाली सूख गई हो, पक्षियों का कलरव बन्द हो गया हो, सूरज पर ग्रहण की छाया गहरी होती जा रही हो, परखे हुए मित्र और आत्मीय जन काँटों के रास्ते पर मुझे अकेला छोड़ कर चले गये हों और आसमान की सारी नाराजी मेरी तकदीर पर बरसने वाली हो,तो हे प्रभु, तुम मुझ पर इतना अनुग्रह करना कि मेरे होठों पर हँसी की एक उजली रेखा रहने देना।”