चलने की फिक्र करो बाबा (Kavita)

June 1955

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तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर जीन कसो बाबा। अब मौत नकारा बाज चुका, चलने की फिक्र करो बाबा॥

बटमार अजल का आ पहुँचा, टुक इसको देख डरो बाबा। अब अश्क बहाओ आँखों से, और आहें सर्द भरो बाबा॥

दिल हाथ उठा इस जीने से, बेबस मन मार मरो बाबा। तब बाप की खातिर रोते थे, अब अपनी खातिर रो बाबा॥

यह उम्र जिसे तुम समझे हो, यह हरदम तन को चुनती है। जिस लकड़ी के बल बैठे हो, दिन-रात यह लकड़ी घुनती है॥

तुम गठरी बाँधो कपड़े की, और देख अजल सिर धुनती है। अब मौत कफन के कपड़े का, या ताना बाना बुनती है॥

ये ऊंट किराये का यारो, सन्दूक जनाजा अरथी है। जब उस पर हो असवार चले,फिर घोड़ा है ना हस्ती है॥

किस नींद पड़े तुम सोते हो, ये बोझ तुम्हारा भारी है। कुछ देर नहीं अब चलने में, तैयार खड़ी असवारी है॥

तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर जीन कसो बाबा। अब मौत नकारा बाज चुका, चलने की फिक्र करो बाबा॥


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