गायत्री तपोभूमि एक चैतन्य तीर्थ

January 1955

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लुप्तप्राय गायत्री विद्या के रत्न भंडार को पुनः प्रकाशवान् करने के लिए दैवी शक्ति के द्वारा कुछ विशेष कार्य हो रहे हैं। उन्हीं, कार्यों में से एक गायत्री तपोभूमि का निर्माण भी है। जिन प्रक्रियाओं के साथ इस तीर्थ की स्थापना हुई है वे आश्चर्यजनक एवं अविश्वासियों में भी विश्वास उत्पन्न करने वाली हैं। घोर आर्थिक अभावों के बीच उसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ। फिर भी मथुरा वृन्दावन के प्रमुख दर्शनीय स्थानों में गणना होने योग्य यह अत्यन्त ही मनोरम स्थान बन गया है। अभी भी इसका निर्माण कार्य चल रहा है।

मथुरा से एक मील दूर वृन्दावन रोड पर बिलकुल सड़क के किनारे गायत्री तपोभूमि अवस्थित है−इसके पीछे ही पुण्य सलिला यमुना कल−कल निनाद करती हुई प्रवाहित होती है। यह भूमि ऐसी है जहाँ प्राचीन काल में अनेक तपस्वियों ने प्रचंड तप करके अलौकिक सिद्धियाँ पाई हैं। उनकी तपस्या का पर्याप्त प्रभाव अभी भी इस भूमि में मौजूद है। भगवान कृष्ण की यह पुनीत क्रीड़ास्थली अपने भीतर एक दिव्य विशेषता धारण किये हुए हैं।

गायत्री मंदिर के भव्य कक्ष में भगवती वेदमाता गायत्री की बड़ी ही मनोरम, नयनाभिराम,एवं शास्त्रोक्त विधि से बनाई हुई तथा विशिष्ट प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित की हुई दिव्य प्रतिमा है। जिसका दर्शन करते करते आँखें तृप्त नहीं होती । वाम कक्ष के कमरे में भारत वर्ष के समस्त प्रधान तीर्थों के, पवित्र नदी सरोवरों के जल सुसज्जित रूप से संग्रहित हैं। दक्षिण कक्ष के कमरे में हजारों गायत्री उपासकों द्वारा लिखे हुए लगभग 83 करोड़ मंत्र स्थापित करने का संकल्प है जिसमें से 42 करोड़ मन्त्र और संग्रह किये जा रहे हैं। मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय 24 दिन का केवल गंगाजल लेकर उपवास इसलिए किया था कि यह तीर्थ वस्तुतः आध्यात्मिक शक्ति से सुसम्पन्न हो जाय ।

तपोभूमि के प्राँगण में तुलसी के पवित्र पौधों से घिरी हुई यज्ञशाला है। जहाँ निरन्तर अखण्ड अग्नि स्थापित रहती है। प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योदय के समय यज्ञ होता है। मन्दिर के बरामदे में गायत्री का महत्व बताने वाले शास्त्र वचन लिखे हुए हैं। यज्ञशाला में यज्ञ का महत्व बताने वाले मंत्र लिखे हैं और दीवारों पर शिक्षाप्रद स्फूर्तिदायक, वेदमन्त्रों की सूक्तियाँ अर्थ समेत लिखी हुई हैं। सत्संग भवन में लगभग 100 व्यक्ति यों के बैठने की जगह है, इसी से संलग्न पुस्तकालय में सन्मार्ग की और अग्रसर करने वाली चुनी हुई पुस्तकों की अलमारियाँ है। औषधालय में सबको बिना मूल्य औषधियाँ दी जाती है। इन औषधियों में गर्म पोषक रसायन बड़ी ही चमत्कारी औषधि है। गर्भवती स्त्रियों के गर्भ को पुष्ट करने, दीर्घजीवी, सुन्दर बुद्धिमानी, सद्गुण बनाने एवं कष्ट रहित प्रसव होने का इसमें विशेष गुण हैं। चारों ओर हरे भरे पौधे बड़े ही सुहावने दीखते हैं। कुएं का पानी बड़ा हलका,शीतल एवं मधुर है। 14 छोटे−छोटे कमरे साधकों को ठहरने के लिए बने हुए हैं। मंदिर के चारों ओर उपवन जैसे प्राकृतिक दृश्य बड़े ही सुन्दर हैं।

तपोभूमि में पति वर्ष में तीन विशेष समारोह होते हैं। (1) जून की गर्मी की छुट्टियों में ज्येष्ठ सुदी 1 से ज्येष्ठ सुदी 10 गंगा दशहरा तक विद्यार्थियों के बुद्धि विकास एवं चारित्रिक शिक्षा के लिए 10 दिन का सरस्वती यज्ञ होता है। (2)आश्विन की नवरात्रि में। (3)चैत्र की नवरात्रि में 10 10 दिन के 24 लक्ष गायत्री महा पुरश्चरण होते हैं। इन में दूर दूर से गायत्री साधक आकर अपने 24−24 हजार के अनुष्ठान करते हैं। घर की अपेक्षा इस पुनीत तीर्थ में आकर साधना करने से साधकों को अनेक गुनी सफलता मिलती है। कइयों के यहाँ साक्षत्कार हुए हैं। यहाँ विशेष अनुष्ठान साधन और यज्ञ होते रहने से इस तीर्थ की गुप्त शक्ति में भारी वृद्धि होती रहती है। जिस प्रकार बर्फ खाने में घुसते ही ठंडक और आग की भट्टी के पास जाते ही गर्मी लगती है, उसी प्रकार इस तपोभूमि में प्रवेश करते ही मनुष्य एक आध्यात्मिक पवित्रता एवं शान्ति अनुभव करता है।

साँस्कृतिक धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के लिए तपोभूमि में सुदृढ़ आधार पर एक विद्यालय की व्यवस्था का आयोजन हो रहा है। वह प्रबन्ध जब तक न हो जाय तब तक समय समय पर स्वल्प कालीन शिक्षण शिविरों द्वारा तरह तरह की उपयोगी शिक्षाएँ दी जाती रहती हैं। गत जून 54 में छात्रों और अध्यापकों के लिए चरित्र निर्माण की व्यवहारिक शिक्षा देने के लिए एक बहुत ही सफल साँस्कृतिक शिविर हुआ था। अब चैत्र वदी 5 सं॰ 2011 से तीन मास का एक ऐसा शिविर हो रहा है जिसमें अनेक प्रकार के श्रौत, स्मार्त यज्ञों का शास्त्रोक्त विधि विधान,षोडश संस्कारों की क्रियात्मक पद्धति आदि की शिक्षाएँ दी जाएंगी।

गायत्री तपोभूमि भारत वर्ष के असंख्यों गायत्री उपासकों की एक केन्द्रीय क्रीड़ास्थली है। जहाँ साधारण जिज्ञासुओं, साधकों, शिक्षार्थियों, चिंतितों, अभाव ग्रस्तों से लेकर पूर्णता प्राप्त सिद्ध पुरुषों तक सभी श्रेणी के गायत्री उपासकों का आना यहाँ होता रहता है। गायत्री सम्बन्धी जिज्ञासाओं,शंकाओं के समाधान के लिए देश के कौने कौने से ढेरों पत्र यहाँ आते रहे हैं और उत्तर के लिए टिकट या कार्ड भेजने वालों को तुरन्त ही उपयोगी पथ प्रदर्शन किया जाता है। गायत्री विषयक अनेकों पुस्तकें भी प्रकाशित की जा चुकी हैं।

आप जब कभी मथुरा पधारें तब इस सच्चे अर्थों में तीर्थ कहला सकने योग्य परम पवित्र स्थान को देखना न भूलें। इसे देखे बिना आपकी ब्रजयात्रा अधूरी ही रहेगी ।


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