‘गायत्री ‘ महामन्त्र से लाभ उठाने के लिए −

January 1955

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गायत्री महामन्त्र से लाभ उठाने के लिये यह आवश्यक है कि गायत्री विद्या का पूरा परिचय, एवं विधान भली प्रकार सीख लिया जाय। अधूरी जानकारी का परिणाम अधूरा ही होता है। साइन्स,डाक्टरी, इंजीनियरिंग, कानून,रसायन, शिल्प,आदि की भाँति गायत्री भी एक महत्वपूर्ण विद्या है जिसकी पूरी जानकारी प्राप्त करके ही पूरा लाभ उठाया जाना सम्भव है।

हजारों ग्रन्थों की खोज, अगणित गायत्री उपासकों एवं सिद्ध पुरुषों के सहयोग तथा दीर्घ कालीन अनुभवों के आधार पर, जो ज्ञान एकत्रित किया गया है उसको पुस्तक रूप में प्रकाशित कर दिया है। इनमें उन सभी प्रश्नों का उत्तर,शंकाओं का समाधान तथा विभिन्न प्रयोजनों के लिए गायत्री प्रयोगों का पूरा वर्णन है। इन्हें पढ़ने के बाद कोई बात पूछने लायक नहीं बचती । फिर भी कोई बात पूछनी हो तो जवाबी पत्र भेज कर प्रसन्नता पूर्वक पूछी जा सकती है। स्मरण− रहे साधारण पत्र की 10−20 पंक्ति यों में किन्हीं साधनाओं का पूरा विधान या विज्ञान बताया जाना सम्भव नहीं । संक्षिप्त और अधूरे उत्तरों से जिज्ञासुओं का ठीक प्रकार समाधान नहीं होता। इसलिए कोई पूछ ताछ करने से पहले गायत्री महाविज्ञान आदि ग्रन्थों को पढ़ना आवश्यक है। जो सज्जन इन पुस्तकों को मँगा लेते हैं वे गायत्री परिवार के सदस्य माने जाते हैं और उनकी उन्नति के लिए समय समय पर अनेक आवश्यक बातें एवं सूचनाएँ इधर से ही भेजी जाती रहती हैं।

गायत्री महाविज्ञान (प्रथम भाग) मू॰ 3॥)

विषय− गायत्री विद्या का वैज्ञानिक परिचय, तथ्य तथा मूल आधार, साधना द्वारा गुप्त 24 शक्ति यों का जागरण, अनेक शक्ति यों का आविर्भाव, वेद शास्त्रों तथा महापुरुषों द्वारा गायत्री का गुणगान,अनेकों अनुभव, गायत्री का शाप मोचन और उत्कीलन, यज्ञोपवीत और गायत्री का सम्बन्ध, निष्काम और सकाम साधना, गायत्री साधना के नौ रत्न, अत्यन्त आवश्यक नियम, गायत्री द्वारा सन्ध्या वन्दन, प्राणायाम, ध्यान, अनुष्ठान, हवन तथा तपश्चर्या की विस्तृत विधियाँ,अनेक प्रयोजनों के लिए गायत्री के अनेक प्रयोग,स्त्रियों की पृथक साधनाएँ मन्त्र का अर्थ, माता का साक्षात्कार, साधक में प्रकट होने वाली दस विशेषताएँ, गायत्री द्वारा वाममार्गी भयंकर तान्त्रिक साधनाएँ, कुण्डलिनी जागरण का विस्तृत विधान आदि।

(2)गायत्री महाविज्ञान (द्वितीय भाग) मू॰ 3॥)

विषय−गायत्री विद्या सम्बन्धी छोटे छोटे किंतु बड़े ही महत्वपूर्ण रत्नों का संस्कृत श्लोक और हिन्दी अर्थों समेत संग्रह है। गायत्री महात्म्य,गायत्री गीता, गायत्री स्मृति, गायत्री उपनिषद्, गायत्री रामायण, गायत्री पञ्जर, गायत्री संहिता, गायत्री तन्त्र, गायत्री अभिचार, 24 गायत्री, गायत्री पुरश्चरण, गायत्री सहस्रनाम, गायत्री स्तोत्र, गायत्री लहरी आदि के इस संग्रह को गागर में सागर कहा जा सकता है।

(3)गायत्री महाविज्ञान (तृतीय भाग) मू॰ 3॥)

विषय−गायत्री द्वारा 24 प्रकार की महत्वपूर्ण एवं चमत्कारी योग साधना का विस्तृत वर्णन है। गायत्री के पाँच मुख तथा दस भुजाओं का रहस्य स्थूल,सूक्ष्म, कारण शरीरों का परिचय, अन्नमय, मनोमय, विज्ञानमय, आदि पंचकोशों की साधना, हठ−योग,राजयोग, लययोग नादयोग, ऋजुयोग, प्राण योग, शब्द योग, स्वरयोग की विधियाँ। बन्ध, मुद्रा, पञ्च तन्मात्रा, ग्रन्थिभेदन, पञ्जीकरण,भूत शुद्धि,समाधि, तुरीयावस्था,आत्म दर्शन सोऽहं का अजपा जाप, तन्त्र तथा वाममार्ग, मनोनिग्रह, मैस्मरेजम की बेधक दृष्टि, गायत्री द्वारा अनेक सिद्धियों की साधना का विधिवत विधान इस पुस्तक में है इसे योग विद्या का अद्वितीय ग्रन्थ ही समझना चाहिये।

(4)गायत्री के प्रत्यक्ष चमत्कार मू॰ 3॥)

विषय− अनेकों साधकों को, अपनी अपनी साधना में हुए अनुभवों का उन्हीं की लेखनी से वर्णन इस पुस्तक में है। किन व्यक्ति यों को किस किस गायत्री साधना से किस प्रकार क्या अद्भुत लाभ प्राप्त हुए निराशा एवं असफलता के अन्धकार पूर्ण वातावरण को पलट कर किस प्रकार आशा और सफलता के प्रकाश उपलब्ध हुए, इसके सैकड़ों सचित्र उदाहरण इस पुस्तक में छपे हैं।

(5)गायत्री यज्ञ विधान−मू॰ 3॥)

यज्ञ का रहस्य, विज्ञान, विधान, विवेचन, कारण,हेतु, महत्व आदि को पूरे विस्तार एवं प्रमाणों के साथ समझाया गया है। गायत्री के छोटे होम बड़े यज्ञ,विशेष विधियों और विवेचनाओं एवं मन्त्रों के साथ विस्तार पूर्वक समझाये गये हैं। इस पुस्तक के आधार पर पूर्ण शास्त्रोक्त विधि विधान का यज्ञ कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से कर सकता है और देव शक्ति यों द्वारा अनेक सहायताएँ प्राप्त कर सकता है।

(6)गायत्री शिक्षा मूल्य 2)

विषय−गायत्री के 24 अक्षरों में 24 महान सिद्धान्त छिपे हुए हैं। उनको समझने के लिये 24 श्लोक,24 लेख, 24 भावपूर्ण कविताएँ तथा 26 आर्ट पेपर पर छपे हुए कलात्मक, तिरंगे चित्र हैं। पुस्तक बड़ी ही शिक्षाप्रद तथा प्रभावोत्पादक है।

(7)गायत्री चित्रावली −मू॰ 1॥)

विषय− विविध प्रयोजनों के लिए गायत्री के विविध ध्यानों के लिए आर्ट पेपर पर छपे हुए 24 तिरंगे चित्र तथा उनका पूरा परिचय।

(8)गायत्री का मंत्रार्थ−मू॰ 1॥)

विषय− गायत्री के एक एक अक्षर की विस्तृत शास्त्रीयों व्याख्या तथा अनेक ऋषियों के अनेक प्रकार से किये हुए अर्थों का संग्रह । राक्षस राज रावण की गायत्री व्याख्या भी इसमें है।

‘अखण्ड ज्योति’−यह गायत्री संख्या की मुख्य पत्रिका है। यह गत 14 वर्ष से निरन्तर प्रकाशित हो रही है। ग्राहक संख्या की दृष्टि में कल्याण के बाद धार्मिक पत्रों में अखण्ड ज्योति का दूसरा नम्बर है। इसकी उपयोगिता तथा सस्ते पन की सर्वत्र भूरि भूरि प्रशंसा हो रही है। इसमें हर महीने गायत्री सम्बन्धी लेख,रंगीन चित्र तथा समय समय पर गायत्री उपासना सम्बन्धी आवश्यक सूचनाएँ, विज्ञप्तियाँ तथा जानकारियाँ प्रकाशित होती रहती हैं। जुलाई में हर साल एक ‘गायत्री अंक’ निकलता है। गायत्री संस्था से सम्बन्ध रखने के लिए ‘अखण्ड ज्योति’ का ग्राहक रहना आवश्यक है। वार्षिक मूल्य 2॥ ) मात्र ।

छोटा सेट −उपरोक्त पुस्तकों के कुछ स्थलों का संक्षिप्त साराँश लेकर यह पुस्तकें भी छापी गई हैं।

(1)गायत्री ही कामधेनु है..।=)

(2)गायत्री का वैज्ञानिक आधार ...।=)

(3)वेद शास्त्रों का निचोड़ गायत्री।=)

(4)गायत्री की सर्वसुलभ साधनाएँ।=)

(5)अनादि गुरु मन्त्र गायत्री...।=)

(6)सचित्र गायत्री ... .... ।=)

(7)गायत्री के 14 रत्न (प्रथम भाग)।=)

(8)गायत्री के 14 रत्न (द्वितीय भाग)।=)

(9) विपत्ति निवारिणी गायत्री .... ...।=)

(10)स्त्रियों का गायत्री अधिकार ।=)

(11) गायत्री सहस्रनाम पाठ ।=)

(12) गायत्री हवन विधि। =)

(13) संक्षिप्त गायत्री हवन ।=)

अत्यंत सस्ती एवं सुन्दर वितरण योग्य पुस्तकें

(1)गायत्री की गुप्त शक्ति।-)

(2) सुख शान्ति दायिनी गायत्री ।-)

(3)गायत्री ये बुद्धि विकास ।-)

(4)गायत्री की दिव्य सिद्धियाँ ।-)

(5)गायत्री का अर्थ सन्देश ।-)

(6)स्त्रियों की गायत्री साधना ।-)

(7)गायत्री उपासना कैसे करें ।-)

(8)गायत्री से यज्ञ का सम्बन्ध ।-)

(9)गायत्री चालीसा ।-)

(10)गायत्री का तिरंगा चित्र ।-)

मूल्य में कमी के लिए लिखना बिलकुल व्यर्थ है। हाँ, 6)से अधिक मूल्य की पुस्तकें लेने पर डाक खर्च अपना लगा दिया जाता है। 3) से कम मूल्य की वी. पी. नहीं भेजी जाती । 3) की पुस्तकों पर करीब ॥।) पोस्टेज लगता है।

पत्र व्यवहार का पता −

“अखण्ड ज्योति प्रेस, मथुरा।

फिर अन्य उन्नति करने वाले तथा रक्षा करने वाले कार्यों के लिये शक्ति नहीं बच पाती है, फलस्वरूप उनकी व्यवस्था ठीक तरह नहीं चल पाती और वह हर दिशा में असफलता का शिकार होता रहता है।

प्राणवान की स्थिति इससे भिन्न होती है । उसकी नस नस में उत्साह होता है, मन में हर घड़ी नई तरंगें उठती है, हृदय में दृढ़ता, साहस, धैर्य, आशा एवं स्फूर्ति की भावनाएँ गूँजती रहती हैं। वह प्रत्यक्षतः चाहे दुबला पतला दिखाई पड़ता हो, कम पढ़ा लिखा हो, पिछड़ी हुई परिस्थितियों में रहता हो,तो भी वह अपने प्राण बल के आधार पर ऐसे ऐसे अवसर प्राप्त करता है, ऐसे ऐसे कार्य कर दिखाता है जिसे देख कर अधिक साधन सामर्थ्य रखने वाले व्यक्ति यों को भी आश्चर्य से दाँतों तले उंगली दबानी पड़ती है। मनुष्य में जो भी शक्ति है वह हाड़, माँस, रस, रक्त की नहीं, प्राण की शक्ति है। मरने के बाद हाड़ मास तो सब मौजूद रहते हैं पर केवल प्राण निकल जाते हैं। इस प्राण के हटते ही वे शरीर के सारे कल पुर्जे निरर्थक सिद्ध होते हैं।

जीवन का सार प्राण है, क्योंकि सभी प्रकार की भौतिक शक्तियाँ प्राण के अंतर्गत रहती हैं। जिसका प्राण जितना ही सबल है, अधिक है, सुरक्षित है वह उतना ही पुरुषार्थी एवं शक्ति शाली है और अपने प्रयत्न में वह सब बातें प्राप्त करेगा जिनके द्वारा आन्तरिक ओर बाह्य सुख शान्ति को प्राप्त किये जा सकता है।

गायत्री की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह हमारे प्राण तत्व की रक्षा करती है, उसे बढ़ाती एवं परिपुष्ट करती है। गायत्री उपासक का शरीर चाहे साधारण ही रहे पर उसमें आत्मबल, प्राणतत्व पर्याप्त मात्रा में भरता और बढ़ता है। फलस्वरूप वह तुच्छ मनुष्य न रह कर महामानव बन जाता है।

श्री शंकराचार्य ने गायत्री का भाष्य करते हुए कहा है− “गीयते तत्व मनया गायत्रीति” अर्थात्− जिसमें “तत्व ज्ञान” प्राप्त हो वह गायत्री है। जिस विवेक बुद्धि से, ऋतम्भरा प्रज्ञा से −तत्व− सत्य−जाना जाता है वही गायत्री है। यों मनुष्य के मस्तिष्क में बुद्धि के अनेक भाग होते हैं और उन विभिन्न भागों के विकास में मनुष्य में चतुरता आदि गुण आते हैं पर कर्तव्य का,सत् असत् का, हित अनहित का दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय केवल वहीं बुद्धि करती है जिसे ऋतम्भरा प्रज्ञा या गायत्री कहते हैं।

तमसाच्छन्न बुद्धि में कितनी ही चतुरता− तीक्ष्णता−सूझबूझ−भले ही हो, वह कितनी ही कमाऊ हो, पर उससे आत्मिक सुख शांति के दर्शन भी नहीं हो सकते। भोग विलास के थोड़े से उपादान वह जरूर जमा कर सकती है पर उन उपादानों के कारण चिन्ता, भय, आशंका, तृष्णा, मोह, मद आदि की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि उनका भार आत्मा के लिए असाधारण रूप से कष्ट दायक सिद्ध होता है। इसके विपरीत सतोगुणी ऋतम्भरा विवेक बुद्धि हमारे शारीरिक आहार विहारों को सात्विक रखती है जिससे दीर्घायुष्य एवं आरोग्य प्राप्त होता है । मन में धार्मिक, सतोगुणी, परमार्थ पूर्ण भावनाएँ रहती हैं जिससे अन्तरात्मा में सदा प्रफुल्लता एवं शान्ति रहती है। इस प्रकार शरीर और मन दोनों की सुरक्षा एवं उन्नति के कारण प्राण शक्ति दिन दिन बढ़ती ही रहती है और मनुष्य लोक एवं परलोक की सच्ची सुख शान्ति प्राप्त करता है। गायत्री रूपी सद्बुद्धि हमारी प्राण रक्षा का हेतु बनती हुई इस प्रकार अपने नाम के अर्थ को सार्थक करती है।

ऐसे अन्य प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे प्रकट होता है कि गायत्री नाम इसलिए पड़ा है कि वह प्राणों की रक्षा करती है।

प्राणा गया इति प्रोक्त स्त्रायते तानथापिवा।

−भारद्वाज

अर्थात्− गय प्राणों को कहते हैं। जो प्राणों की रक्षा करती है वह गायत्री है।

तद्यत्प्राणं त्रायते तस्माद् गायत्री।

जिससे प्राणों की रक्षा होती है वह गायत्री है।


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