अखण्ड ज्योति (Kavita)

November 1953

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प्रदीप! यह जला करे। असीम स्नेह-धार पर, अकम्प लौ बयार पर, प्रदीप! यह जला करे।

जला करे नगर-नगर, भवन-भवन, डगर-डगर, लिये अमन्द वर्ति-कण, जला करे जगर-मगर।

दिगन्त जगमगा उठे। प्रकाश डगमगा उठे॥

परन्तु द्वार द्वार पर, प्रदीप! यह जला करे।

कहीं जले, कहीं ढले तमिस्र के विकास पर, ज्वलित शिखा महान ले, जले नया प्रकाश भर।

तिमिर भरी गली-गल। खिले कनक-कलित कली।

अनन्त सिन्धु ज्वार पर, प्रदीप! यह जला करे।


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