जीवन के निष्कर्ष

November 1953

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जीवन यापन करते हुए अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर मनुष्य जिन निष्कर्षों पर पहुँचता है उनका महत्व निस्सन्देह बहुत अधिक है। संसार के कुछ विचारशील व्यक्तियों ने अपने जीवन-निष्कर्षों को किस प्रकार व्यक्त किया है। उसका कुछ आस्वादन नीचे की पंक्तियों में कीजिए :-

डब्लू. आर. इंजे लिखते हैं- मैं इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि मनुष्य को अपने विषय में अच्छी राय न रखनी चाहिए। हमारा अधिकार केवल प्रार्थना पर है। हम दया के लिए प्रार्थना करें। मानव जीवन में सुखद विवाह सर्वोत्तम पदार्थ ही नहीं, ईश्वर की सभी देनों में श्रेष्ठ है। जो प्रेम नहीं करता वह ईश्वर को नहीं जानता। प्रेम ही ईश्वर है। जो अपनी आँखों देखते भाई को प्रेम नहीं कर सकता वह अदृष्ट ईश्वर से कैसे प्रेम कर सकता है?

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मारग्रेट जी. वान्डफील्ड के विचार हैं- प्रार्थना ईश्वर को अपने पक्ष में आकृष्ट करने को नहीं होती, वरन् ईश्वर की सर्व व्यापकता का ध्यान रखने के लिए होती है। पाप क्या है? जीवन का जो विकास हमें प्राप्त है उसके अनुकूल रहने से इनकार करना ही पाप है। दूसरों की अवज्ञा करना महान भूल है। घृणा और कटु आलोचना दोनों ऐसी बुराइयाँ हैं जो उनके कर्त्ताओं पर ही पड़ती है और मनुष्य-मनुष्य का जो परस्पर सम्बन्ध है उसे विषाक्त कर देती है।

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बरट्रेण्ड रसेल महोदय कहते हैं- मैं तो इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि बहुत बड़ी हानि पहुँचाने की अपेक्षा छोटी सी भलाई करना ही अच्छा है। जब मनुष्य सीमा से अधिक तिरस्कृत किया जाता है तब उसमें कोई ऐसी बहुमूल्य चीज नष्ट कर दी जाती है जो फिर नहीं बनायी जा सकती। जो मनुष्य अपने को समाज की इकाई नहीं समझता, वह यदि महान कलाकार नहीं तो नपुँसक है।

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रिवार्ड ग्रिगरी लिखते हैं- एक समय तीन मजदूर काम कर रहे थे! एक पथिक ने उनसे पूछा तुम क्या कर रहे हो?

पहले ने कहा- मैं पत्थर काट रहा हूँ!

दूसरे ने कहा- मैं अपनी जीविका कमा रहा हूँ।

तीसरे ने कहा- मैं गिरजा बना रहा हूँ।

जीवन में काम आवश्यक है। काम तीन प्रकार से किया जा सकता है- मशीन की तरह, रोजी कमाने के लिए तथा किसी महान आदर्श के लिए। इन तीनों को जीवन तथा समाज का ढाँचा तैयार करने को एकत्र किया जा सकता है। केवल आनन्द के लिए रहने की अपेक्षा इस तरह रहने से अधिक सन्तोष प्राप्त होता है।

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सर माइल्स टोमस महोदय का अनुभव है कि सीमा से अधिक आत्मरक्षा का भाव मनुष्य को उन्नति की ओर नहीं ले जाता। गलत दिशा में चिकनी सड़क पर चलने की अपेक्षा सही दिशा में पथरीले मार्ग पर चलना कहीं अच्छा है। केवल भाग्य जैसी कोई चीज नहीं है। हाँ, भाग्य जीवन में गौण महत्व अवश्य रखता है।

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एल. पी. जैक्स महोदय लिखते हैं- मैंने जीवन में जो कुछ सीखा है, संक्षेप में सब वही है जो मैं जानता हूँ, जिसमें विश्वास रखता हूँ, जिसकी आशा रखता हूँ, और अधिक संक्षेप में वह सब जो मैं हूँ। नास्तिक कहते हैं कि ईश्वर नहीं है और आस्तिक कहते हैं कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। मैंने जीवन से सीखा है कि मेरा अस्तित्व ईश्वर के अस्तित्व से मिला हुआ है। लेकिन इस तरह से मिला है कि उसे पृथक करने का प्रयत्न किसी परिणाम पर नहीं पहुँचता।

लार्ड लिटन महोदय का भी अनुभव सुनिये- आनन्द के लिए अथवा आदर के लिए रुपया कोई आवश्यक वस्तु नहीं है। सत्य ही मैत्री की जननी है। सत्य निर्वासित व्यक्ति के समान है जो अपने लिए घर ढूँढ़ता फिरता है, परन्तु मिलता कोई नहीं। स्वर्ग हमारे चारों तरफ बिखरा पड़ा है, लेकिन उसे वही देख सकता है जिसके पास उसे देखने को आँखें हैं। सत्य तो यह है कि हम वह नहीं हैं जो जीवन ने इसे बनाया है, वरन् हमारा जीवन वही है जो हमने उसे बनाया हैं।

लार्ड आशफील्ड का कहना है कि मनुष्य के व्यक्तिगत गुण ही अन्त में सफल होते हैं। निर्णय की शक्ति, साधारण बुद्धि तथा विवेक बुद्धि, विचार बुद्धि तथा सद्व्यवहार ऐसे ही गुण हैं। मैं इनमें निर्भिमानता को और जोड़ुँगा। बिना अभिमान के भी अपना मान रखा जा सकता है। इन गुणों के अतिरिक्त एक गुण और है जो सभी गुणों में होना चाहिये। वह है विनोद प्रियता (सेंस आफ ह्यूमर) इसके अतिरिक्त मानव प्रकृति की दुर्बलताओं के प्रति सहिष्णुता रखना तथा आदान-प्रदान के लिए भी तैयार रहना कम आवश्यक गुण नहीं।

फ्रैंक सेलिसवरी महोदय लिखते हैं- हम जीवन में जो बोते हैं वही काटते हैं। जिस चीज के हम अधिकारी नहीं, उसे स्वीकार करना अपने चरित्र को गिराना है। शीघ्र ही या कुछ विलम्ब से नैतिक पतन प्रारम्भ हो जाता है। कर्म ही मनुष्य के लिए सर्वोत्तम आशीर्वाद है। बुरे से बुरे परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए और अच्छे से अच्छे की आशा रखनी चाहिए। मनुष्य अपनी सर्वोत्तम अवस्था में तभी होता है जबकि जीवन उसे प्रायः दुःसह परीक्षा में डाल देता है।

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मैं काम को इस प्रकार करता हूँ जैसे सब चीज मेरे ही ऊपर निर्भर हो और प्रार्थना इस प्रकार करता हूँ जैसे हर एक चीज ईश्वराधीन हो।

हर एक समस्या को शीघ्र सुलझाओ ताकि मस्तिष्क दिल से सबसे महत्वपूर्ण काम में लगने को मुक्त रहे।

यदि तुम कला की किसी चीज में उसके अवगुण ढूँढ़ने को देखोगे तो उसके गुण तुम्हारी दृष्टि में न आवेंगे।

बुरी चीज पर दुबारा दृष्टि न डालो। यदि कोई चीज तुम्हें सच्चा आनन्द देती है तो उसकी प्रशंसा करने में कृपणता मत करो। बड़े काम प्रोत्साहन के वातावरण में ही होते हैं। हम यह बात नहीं समझ पाते कि दूसरे की प्रशंसा करने से हमारी गुण ग्राहकता भी बढ़ती है।

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लार्डवैट फील्ट महोदय लिखते हैं-’क्रोध के वशीभूत न होना चाहिये। क्रोध समाज के लिये लाभदायक नहीं होता अपितु विनाश की ओर ले जाता है। सफलतापूर्वक खतरा लेने के लिये भाग्य की आवश्यकता होती है। जीवन में जन्म से मरण पर्यन्त भाग्य भी कुछ महत्व रखता है। लेकिन भाग्य उनकी कदापि सहायता नहीं करता जो उसके योग्य नहीं। लेकिन यदि तुम भाग्य पर बहुत अधिक विश्वास करोगे तो सम्भव है वह तुम्हें ठीक समय पर धोखा न दे जाय। हमें भाग्य को छोड़ अपने भविष्य पर सोचना चाहिए। और उसे अपने अधीन करने को दृढ़ संकल्प होना चाहिये।

मैंने जीवन जहाज पर बिताया है जहाज पर काम जहाज के लिये करना होता है न कि अपने लिए। जहाँ कहीं भी तुम हो, वहीं जहाज है। हर एक मनुष्य को अपनी उन्नति के लिए काम करना चाहिए। लेकिन जीवन ने मुझे यह सिखाया है कि यदि तुम अपनी ही उन्नति को एकमात्र दृष्टि में रखोगे तो तुम्हें निराश होना पड़ेगा।

अच्छा जहाज वह है जिसमें मल्लाह महान लक्ष्य से एकता के सूत्र में बँधे हैं।

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सी. सी. मारटिण्डेल का संकेत है- जीवन ने मुझे इससे अच्छा कुछ नहीं सिखाया कि मैं ईश्वर और अपने पड़ौसियों से प्रेम करुं। ऐसा नहीं हैं कि जीवन ने मुझे कुछ सिखाया ही न हो, परन्तु ईश्वर ने कुछ तो आन्तरिक अनुभव से और कुछ बाह्य अनुभव से मुझे समाज में रहने योग्य बनाया है और सद्भावना प्रदान की है कि उसकी सेवा करूं और उसके लिए अपने पड़ोसी की।

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सर विलियम वी. डार्लिंग (पार्लियामेण्ट के सदस्य) लिखते हैं- हेडोनिष्ट के अनुसार आनन्द ही जीवन का ध्येय है एक अन्य लेखक के कथनानुसार जीवन का लक्ष्य प्रसन्न होना है। प्रसन्न होने के लिए समय अभी है, और स्थान यही है, तरीका दूसरों को प्रसन्न करना है।

जीवन ही सब कुछ नहीं। एक चीज और है जो उसे गति प्रदान करती है-वह है साहस। यदि कोई जीवन को सार्थक बनाना चाहता है तो उसे भय को अवश्य तिलाँजलि देनी चाहिए। साहसी के लिए दुर्भाग्य भी अकस्मात सौभाग्य में परिणत हो जाता है।

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विस्काउण्ट टेम्पुल उड़ (रीडिंग विश्वविद्यालय के चाँसलर) लिखते हैं-मनुष्य की तीन अवस्थाएँ होती हैं- युवावस्था में वह अपनी पुस्तकों से बात करता है, मध्यावस्था में अपने मित्रों से और वृद्धावस्था में अपने से। मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे जीवन के अन्तिम परिच्छेद आत्मचिन्तन के परिच्छेद हैं। मेरे जीवन ने मेरे लिए जो विरासत छोड़ी है वह धैर्य और सहिष्णुता है।

विस्काउण्ट जोविट लिखते हैं- मैंने जीवन से जो कुछ सीखा है उससे कहीं बहुत अधिक सीखना चाहिए था। यदि मैं अपने अब तक के अनुभव के साथ फिर से जीवन प्रारम्भ करता, तो शायद वही गल्तियाँ फिर करता जो मैंने की हैं। मैंने लोगों को कहते सुना है कि मनुष्य का लड़कपन तब शुरू होता है, जब वह उन शैतानियों को सोचता है जो वह आगे करेगा। जवानी तब शुरू होती है जब वह उन्हें करता है। बुढ़ापा तब शुरू होता हैं जब वह उन पर पश्चाताप करता है। जीवन ने मुझे सिखाया है कि अपने साथियों में अच्छाई ढूँढ़ना ही सही मार्ग है। मनुष्य के लिए अध्ययन का उचित विषय मनुष्य ही है। जीवन को सुखी बनाने का एक ही रहस्य है। वह यह है- दूसरे लोगों का तथा उनकी समस्याओं का उतना ही ध्यान रखना जितना अपना तथा अपनी समस्याओं का। यदि तुम दूसरे को सुख दोगे तो तुमको भी फलस्वरूप सुख प्राप्त होगा।


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