प्राणायाम के लाभ

October 1951

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री विश्वम्भर नाथ द्विवेदी)

यह तो सर्वविदित ही है कि खून को पहले हृदय संचालित करता है फिर यह खून धमनियों और बारीक धमनियों में होता हुआ शरीर के प्रत्येक भाग में पहुँच जाता है। इसके बाद वह दूसरे मार्ग से बारीक से बारीक शिराओं में होता हुआ मोटी शिराओं में लौटता है और वहाँ से फिर हृदय में वापस आता है। फिर हृदय से निकल कर वह फेफड़ों में खिच जाता हैं। जब पहले हृदय से रुधिर संचालित होकर धमनियों की राह शरीर में फैला था तो उसका रंग लाल, चमकदार, और जीवनदायक था। परन्तु जब शिराओं की राह से वापस आया था तब उसका रंग नीला और दोषयुक्त था। क्योंकि शरीर की तमाम गन्दगियों को बटोरता हुआ आया था। यह गन्दा खून वापस आकर हृदय की बाई कोठरी में पहुँचता है और तब यही गन्दा खून निकल कर दाहिना ओर दूसरी वेंट््रीकल नामक कोठरी में जाता है। फिर वहाँ से फेफड़ों में आता है जिसका वर्णन ऊपर हो चुका है। यह गन्दा रुधिर फेफड़ों की लाखों हवा वाली कोठरियों में बँट जाता है। जब श्वास ली जाती है तो हवा भी इन्हीं कोठरियों में पहुंचती हैं और जब हवा के ऑक्सीजन का स्पर्श इस गन्दे रुधिर से होता है तब उस में एक तरह की जलन पैदा होती है और रुधिर हवा की ऑक्सीजन को खुद ही खींच लेता है। और अपनी कार्बोनिक एसिड गैस को हवा के सुपुर्द कर देता है। इस तरह रुधिर साफ और ऑक्सीजन मिश्रित होकर चमकीला, लाल एवं जीवन शक्ति दायक तथा और सामान से युक्त होकर हृदय की बाईं कोठरी में जाता है वहाँ से वह फिर वेंट्रीकल में जाता है। वहाँ से फिर नलियों और बारीक नलियों द्वारा शरीर के अंग प्रत्यंग को जीवन दान देने जाता है। यह अनुमान किया गया है कि 24 घंटे में 3500 पाइंट रुधिर फेफड़े की बाल सी बारीक नलियों में होकर गुजरता है, जिसके दोनों तरफ ऑक्सीजन होता है।

अब यह देखना है कि यदि साफ हवा पूरे परिमाण में फेफड़ों में न पहुँचेगी तो शरीर के अंगों से लौटा हुआ गन्दा खून साफ न हो सकेगा और परिणाम होगा कि यह शरीर केवल जीवनदायक सामग्रियों से वंचित ही नहीं, किंतु रुधिर की गन्दगी जिसको फेफड़ों में साफ हो जाना चाहिए था यह फिर शरीर के अंग-प्रत्यंगों में वापस जाएगी और विष उत्पन्न करके मृत्यु को न्योता देगी। गन्दी हवा भी ऐसा ही असर करती है, लेकिन धीरे धीरे यह भी देखने में आयेगा कि यदि कोई उचित परिमाण में श्वास न लेगा तो रुधिर का काम भी उचित रीति से न चल सकेगा। और तब शरीर का उचित पालन पोषण भी न होगा, तो फिर बीमार होना निश्चित है अथवा स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा। इसके प्रतिकूल अच्छी तरह श्वास लेने से खून का संचालन अच्छी तरह होता है, जिससे शरीर सुर्ख एवं रोग रहित हो जाता है।

ऑक्सीजन द्वारा केवल प्रत्येक भाग बलवान ही नहीं बनाया जाता, किन्तु पाचन शक्ति भी अधिकाँश में भोजन के ऑक्सीजन पर ही अवलम्बित है और यह तभी होगा जब रुधिर में ऑक्सीजन अधिक रहे और वह खाये हुए अन्न के संपर्क में आकर एक प्रकार की जलन उत्पन्न करे, जिसे जठराग्नि कह सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि फेफड़ों द्वारा ऑक्सीजन काफी मात्रा में ग्रहण किया जाय। यही कारण है कि निर्बल फेफड़े वालो की पाचन शक्ति भी निर्बल होती है। इस कथन से भली भाँति सिद्ध है कि, पचे हुए अन्न से शरीर पुष्ट होता है और अपच से शरीर अपुष्ट होता है। साराँश यह कि ऑक्सीजन की कमी का अर्थ पुष्टि और सफाई की कमी होना है जिसका परिणाम स्वास्थ्य हानि है, अतएव वस्तुतः श्वास ही जीवन (प्राण) है।

अब यह तो सर्व प्रकार से सिद्ध ही है कि शरीर को स्वास्थ्य और बलवान बनाने के लिए जितना ही ऑक्सीजन यानी प्राण वायु मिल सके, उतना ही अच्छा है। इससे सम्बन्ध रखने वाले विषय ये हैं।

श्वास कसरतों को करना, जिससे प्राण-वायु मिल सके और श्वास-यन्त्र को बड़ा करना अर्थात् सीने को चौड़ा बनाना। मनुष्य को चौबीस घंटे प्राण-वायु की आवश्यकता होती है। जिस समय हम कसरत करते हैं उस समय तो हवा मिलती है, पर दस या पन्द्रह मिनट के लिए। ज्यादा श्वास लेने से 24 घंटे की जरूरत पूरी नहीं होगी। इसलिए सीने की चौड़ाई बढ़ानी ही पड़ेगी। जब हम मामूली तौर पर श्वास लेते हैं तो करीब 500 घन सेन्टी मीटर हवा एक बार में खिंच आती है पर यह सीने के अन्दर सिर्फ ऊपर के हिस्से में ही आती जाती है। सीने के अन्दर के सारे हिस्सों में नहीं जाने पाती। पाठक ऊपर यह भली प्रकार समझ ही चुके हैं कि पूर्णतया श्वास की क्रिया ठीक न होने पर शरीर के अन्दर सीने पर विकार इकठ्ठा होने लगता है और वह धीरे-धीरे खराब होने लगता है। ऊपर-ऊपर तो श्वास आती जाती है पर बीच और नीचे के हिस्सों में श्वास के नहीं आने जाने से विषैले कीड़े पैदा होते हैं। और यह कीड़े समय पाकर सारे शरीर में खराबी उत्पन्न कर देते हैं। कभी कभी यह देख कर मन विचलित सा हो उठता है कि हमारे देश के लोग न तो अपने पूर्वजों के बताये हुए नियमों पर चलते हैं और न अपना ही कोई नियमित ढंग निकाल कर उस पर चलते हैं। हमारे देश में विद्या के बड़े बड़े केन्द्र हैं। उन केन्द्रों में बड़े बड़े विद्वानों का समागम होता है। पर अन्य विषयों के साथ-साथ मामूली रहन सहन, खान पान और व्यायाम की तरफ किन्हीं महाशय का ध्यान नहीं जाता। और रोगों की बढ़ती के साथ साथ क्षय दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है पर इसके रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया जाता। जितने भी श्वास रोग हैं उनसे बचने के लिए यदि मनुष्य भोजन सुधार के साथ-साथ हर रोज दो प्राणायाम की क्रिया कर ले तो उसे किसी प्रकार की श्वास की बीमारी का होना असम्भव है। साथ ही साधारण श्वास में भी आश्चर्य जनक उन्नति होती है।

ऊपर मैंने दो ऐसे व्यायामों का जिक्र किया है जिनसे प्राण वायु ज्यादा मिले और सीना चौड़ा हो। अब एक तीसरा व्यायाम और होना चाहिए, जिससे शरीर के स्नायु तन्तु स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनें। क्योंकि हमारे शरीर में जितने भी अंग हैं उन सबकी चाल ज्ञान-तन्तुओं पर ही निर्भर है।

योग-शास्त्र में ज्यादा से ज्यादा प्राण वायु प्राप्त होने का जिक्र नहीं है अर्थात् प्राणायाम संबंध प्राण वायु से नहीं बताया गया है। यदि ऐसा समझा जाये कि एक मिनट में एक साधारण आदमी सत्रह बार साँस लेता है और हर साँस में करीब 500 घन सेन्टीमीटर हवा खींचता है तो एक मिनट में 500&60=30000 घन सेंटीमीटर हुआ। अब एक आदमी 500 घन से॰ हवा लेने के बाद 1600 घन से॰ श्वास और ले सकता है और 500 घन से॰ साँस निकालने के बाद 1600 घन से॰ श्वास और निकल सकता है। इस हिसाब से सीने की श्वास की ताकत 1600+500+1600=3700 घन से॰ हुई। मैं प्राणायाम करते समय यदि पाँच सेकेण्ड में श्वास लेता हूँ, 15 सेकेण्ड रोकता हूँ और 10 सेकेण्ड में निकालता हूँ तो एक मिनट में दो ही बार हुआ अर्थात् एक मिनट 3700&20=7400 घन से॰ हुआ। इससे सिद्ध हुआ कि मामूली तौर से जो साँस ली जाती है उससे कम प्राणायाम की हालत में ली जाती है। इस हिसाब से मालूम हो जाएगा कि प्राणायाम प्राण-वायु के लिए नहीं किया जाता है। प्राणायाम कुछ और उद्देश्य से किया कराया जाता है जिसका उल्लेख फिर कभी करेंगे। यदि कोई प्राणायाम को मामूली श्वास की कसरत समझे, जिससे मेरा मतलब सिर्फ प्राण-वायु लेना है तो वह भारी भूल करता है। शायद पच्छिमी विद्वान इसी भ्रम में पड़ कर यह कह दिया करते हैं कि प्राणायाम अवैज्ञानिक है और इसमें प्राण वायु नहीं मिलती। मैं तो यह समझता हूँ कि उन महाशयों को किसी ने यह नहीं बताया कि योग शास्त्र में प्राण-वायु प्राप्त करने के लिए एक बड़ी सुन्दर क्रिया है जिसे ‘कपाल भाथी’ कहते हैं। इस क्रिया का मुकाबला संसार में शायद वायु की कोई भी कसरत नहीं कर सकती। इस क्रिया में एक बार में मामूली तौर पर 800 घन से॰ अधिक श्वास निकाली जाती है। यह क्रिया एक मिनट में 120 बार की जाती है अर्थात् 1 मिनट में 120&840=9600 घन से॰ हुआ जो मामूली हालत की श्वास से सोलह गुणा ज्यादा होता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि श्वास विज्ञान हमारे योग शास्त्र में इतना पूर्ण है कि पच्छिमी विद्वानों को इतना जानने के लिए दो तीन शताब्दियाँ लगेंगी। पच्छिमी विद्वानों ने प्राण-वायु के लिए एक ही तरह की कसरत का अवलम्बन लिया है। इसलिए इनके यहाँ श्वास का रोकना जायज नहीं है। पर अपने यहाँ प्राण-वायु और सीने को बढ़ाने के लिए अलग अलग क्रियाएं हैं जिनका आधार दूध और घी हैं।

अब हम एक ऐसा प्राणायाम बता कर अपने लेख को समाप्त करेंगे। जिससे प्राण-वायु ज्यादा मिलती और सीना भी चौड़ा होता है, साथ ही खून का दौरा भी बढ़ता है इस प्राणायाम में रेचक कुम्भक, पूरक करने की आवश्यकता नहीं होती। इसे बैठ कर, खड़े होकर या धीरे-धीरे चलते हुए भी कर सकते हैं। पर खड़े हो कर हाथ कमर पर और बैठने की दशा में हाथ जंघों पर, और पीठ को स्वाभाविक अवस्था में सीधा रखते हैं। अब खुले हुए नथुनों से धीरे-धीरे साँस खीचते हैं। साँस लेते समय और निकालते समय पेट खींचा हुआ होता है श्वास लेते और निकालते समय गले में मीठी मीठी खर्र खर्र की आवाज निकलती है। चेहरा सामने और सीधा रहता है, पाँच सेकेण्ड में श्वाल लेना और 10 सेकेण्ड में धीरे धीरे श्वास छोड़ना चाहिए। पहले हफ्ते में यह प्राणायाम सात बार सुबह और सात बार शाम को करना चाहिए। हफ्ते में 3 बार बढ़ा कर 28 बार सुबह और 28 बार शाम को कर सकते हैं। जो नियम दूसरी व्यायामों के साथ लागू हैं वे इसमें भी लगते हैं। यह जरूरी है कि श्वास की यह या कोई क्रिया साफ हवा के स्थान में की जाये, इस प्राणायाम से जन साधारण को बहुत लाभ होगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118