विश्वास-चिकित्सा या फेथक्योर

February 1946

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मन का शरीर पर अद्भुत प्रभाव विश्वास चिकित्सा से स्पष्ट हो जाता है। मनुष्य विश्वास का (Faith) दास है। किसी तथ्य के निर्धारण में मन की तीन वृत्तियाँ कार्यशील होती हैं-विश्वास, संदेह तथा अविश्वास। मन सर्वप्रथम निर्धारित करने लगता है और जब बहुत से वैसे ही उदाहरण पाता है, तब उस बात को सत्य मानने लगता है। मन की इस स्थिर विचार क्रिया को विश्वास कहते हैं। पूर्ण निर्धारण के उपरान्त मन में एक ऐसा स्थायी पथ या लकीर बन जाती है जैसी ग्रामोफोन के रिकार्ड पर। कभी-कभी बाल्यावस्था के विश्वास बड़े होने के पश्चात् भी नहीं छूटते। एक बार विश्वास जम जाने के बाद मन उस विश्वास के विरुद्ध कोई भी तर्क (Rcasoning) स्वीकार नहीं करता।

क्या कारण है कि साधुओं की धूनी की राख से लाभ हो जाता है? क्या कारण हैं कि केवल अध्यापक द्वारा बतलाई हुई बात ही विद्यार्थी के ध्यान में बैठती है? क्या बात है कि माता के पास ही आकर शिशु चुपचाप खेलता है? क्या कारण है कि झाड़फूँक, जादू टोना, नजर उतारना, गंडा, ताबीज, दाँत कीलना, मैस्मेरेजम, हिप्नोटिज्म, संकेत इत्यादि से अद्भुत लाभ होता है? यह सब कुछ उन वस्तुओं पर आदि काल से जमा हुआ विश्वास ही है। इसमें गुणकारी सिर्फ मनुष्य का अपना विश्वास ही है। ये सभी बातें मनुष्य के मन में अतुलित विश्वास उत्पन्न कर गुणकारी संकेत (Suggestions) लोगों को देती हैं। आन्तरिक सामर्थ्य, उत्तेजित हो उठता है और स्वयं अपने ही अंतर्निहित रोग निवारक सामर्थ्य से मनुष्य स्वस्थ हो उठता है।

कितने ही व्यक्तियों को यह विश्वास हो जाता है कि तम्बाकू भाँग इत्यादि से पेट दर्द दूर होता है या

चाय से ताकत आती है। कुछ दिनों के सेवन के पश्चात् न जाने कैसे वास्तव में ऐसा ही होने भी लगता है। उन्हें स्वास्थ्य विनाशनी इन मादक वस्तुओं से ही लाभ दिखने लगता है। इसका कारण हमारा स्वयं का संकेत ही (Suggestions) है और कुछ नहीं।

कितनी ही बीमारियों में किन्हीं विशेष डाक्टरों वैद्यों, चिकित्सकों या किन्हीं विशेष औषधियों में विश्वास जम जाता है और उन्हीं से लाभ होता है। अन्य कोई प्रसिद्ध डॉक्टर दवाई करे तो कुछ फायदा नहीं होता। किसी विशेष पुरुष के रोगी के पास आने मात्र से रोग दूर होता है। महापुरुष ईसा महान के व्यक्तित्व की शक्ति तरंगें अनेक रोगियों को भला चंगा कर देती थीं। कितने ही आध्यात्मवेत्ता, गणितज्ञ, कठिन प्रश्नों में इतने तन्मय हो जाते हैं कि ऑपरेशन तक करा लेते हैं यह उनका विश्वास ही है। मुहर्रमों के दिनों में ढोल पीटने वाले भावावेश में शरीर की परवाह तक नहीं करते। बड़े वक्ताओं की वाणी का प्रभाव उनके प्रति जमे हुए विश्वास का ही फल है।

विश्वास का सम्बन्ध मानव मन की अचेतन तरंगों से है। इन अचेतन तरंगों का प्रभाव आन्तरिक सामर्थ्य पर पड़ता है और मनुष्य का अपना ही संकेत उसे प्रत्येक दिशा में लाभ भी पहुँचाता है। अतः संकेतों द्वारा चिकित्सक का रोगी को अपना विश्वास ही उत्तेजित करना चाहिए। मनुष्य का उत्कृष्टता, स्वास्थ्य, आनन्द में विश्वास ही मनुष्य को लाभ पहुँचाता है। बाह्य उपकरण तो आत्म श्रद्धा के क्षुद्र प्रतीक हैं। ये तो केवल नाममात्र को ही प्रस्तुत रहते हैं। जीता जागता विश्वास ही सब कुछ है। यही महौषधि है।


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