संकल्प से सफलता

February 1946

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नैपोलियन निज सेना सहित दुर्ग से बाहर निकला। मार्ग में गगन चुम्भी एल्पस पर्वत उन्नत ललाट किए खड़ा था। मानो घोषणा कर रहा हो कि “मैं अजेय हूँ, उन्नत हूँ, अपराजित हूँ। आज तक किसी की हिम्मत मुझे पार करने की नहीं हुई है। मुझे कौन पार कर सकता है? किसी हाड़ माँस के मनुष्य की क्या शक्ति कि मुझे पार कर सके।”

नैपोलियन ने सेना को आज्ञा दी- “मेरे वीर सैनिकों! एल्पस से डरना मत। ऊपर चढ़ जाओ। देखो, मैं आगे चलता हूँ।”

एल्पस के नीचे जहाँ ये लोग खड़े सोच रहे थे एक वृद्धा लकड़हारिन की झोपड़ी थी। वृद्धा उत्सुक भय से अश्वारोहियों को निहार रही थी। नैपोलियन के आदेश को सुन कर बोली- “बेटा! व्यर्थ जान क्यों गंवाते हो। तुम जैसे अनेक व्यक्ति यहाँ आये तथा पस्त हिम्मत हो वापिस चले गये। कितनी ही सेनाएँ तथा उनके अश्व देखते-देखते विनाश के गर्भ में विलीन हो गये। उनकी अस्थियाँ बिखरी पड़ी हैं। सोच समझ से काम लो। मनुष्य का जीवन अनेक पुण्यों से प्राप्त होता है।

नैपोलियन हंसा और देर तक वृद्धा को देखता रहा। फिर एक बहुमूल्य हार उसे भेंट दिया और बोला- “माता, मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ। तुमने मुझे नया उत्साह दिया है। मैं पर्वत की ऊँचाई देख कर भयभीत हो रहा था किन्तु तुम्हारी स्फूर्तिदायक उक्तियों ने मुझे प्रेरणा दी है। मैं दूसरों से कहीं आत्म-विश्वासी हूँ यदि मैं जीवित दूसरी ओर चला गया तो मेरे नाम का डंका बजाना तुम्हारा कर्त्तव्य होगा।”

वृद्धा ने कहा- तुम्हारा संकल्प दृढ़ है, तुम्हारे निश्चय मजबूत हैं। ऐसा व्यक्ति सौ में निन्यानवे बार सफल होता है। और नैपोलियन वास्तव में सफल हुआ।


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