अपने पाँवों पर खड़े होइए।

September 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(शक्ति संचय के पथ पर)

आप किसी गुत्थी को सुलझाने के लिए दूसरों की सहायता ले सकते हैं पर उनके ऊपर अवलम्बित मत रहिए। अपने पैरों पर खड़े हूजिए और आप अपनी कठिनाइयों को सुलझाने का प्रयत्न कीजिए। जब तक आप दूसरों पर आश्रित रहते हैं, यह समझते हैं कि हमारे कष्टों को कोई और दूर करेगा तब तक बहुत बड़े भ्रम में हैं। जो उलझनें आपके सामने हैं उनका दुखदायी रूप अपनी त्रुटियों के कारण हैं, उन त्रुटियों को त्याग कर आप स्वयं ही अपनी उलझनें सुलझा सकते हैं। जब आत्मविश्वास के साथ सुयोग्य मार्ग की तलाश करेंगे तो वह किसी न किसी प्रकार मिलकर ही रहेगा।

बाहर की शक्तियाँ भी सहायता किया करती हैं, पर करती उन्हीं की हैं जो उसके पात्र हैं। एक मनुष्य सहायता की याचना के लिए जाता है, उधार या मुफ्त कोई वस्तु चाहता है तो उसे आसानी से मिल जाती है, देने वाला विश्वास करता है कि मेरी सहायता का यह सदुपयोग करेगा और तुरन्त ही प्रसन्नतापूर्वक सहायता करने को उद्यत हो जाता है। एक दूसरा व्यक्ति भी सहायता माँगने जाता है पर उसे देने के लिए कोई तैयार नहीं होता, कारण यह नहीं है कि पहले व्यक्ति का भाग्य अच्छा है, दूसरे का खोटा है या सहायता करने वाले दुष्ट हैं वरन् असली कारण यह है कि दूसरा व्यक्ति अपनी योग्यता और ईमानदारी उस प्रकार प्रमाणित नहीं कर सका जैसी कि पहले व्यक्ति ने की थी। सहायता न करने वालों को आपका गालियाँ देना बेकार है। इस दुनिया में अधिक योग्य को तरजीह देने का नियम सदा से चला आता है। किसान निठल्ले पशुओं को कसाई के हाथ बेच देता है और दुधारू तथा कामकाजी ढोरों को अच्छी खुराक देकर पालता पोसता है। संसार में सुयोग्य व्यक्तियों को सब प्रकार सहायता मिलती है और अयोग्यों की अपनी मौत मर जाने के लिए छोड़ दिया जाता है। माली अपने बाग में तन्दुरुस्त पौधों की खूब हिफजत करता है और जो कमजोर होते हैं उन्हें उखाड़ कर उसकी जगह दूसरा बलवान पौधा लगाता है। ईश्वर की सहायता भी सुयोग्यों को मिलती है, माला जपने और मनौती मनाने पर भी अयोग्य बेचारा वहाँ से भी निराश लौटता है।

संसार में सफलता लाभ करने की आकाँक्षा के साथ अपनी योग्यताओं में वृद्धि करना भी आरंभ कीजिए। आपका भाग्य किस प्रकार लिखा जाय? इसका निर्णय करते समय विधाता आपकी आन्तरिक योग्यताओं की परख करता रहता है, उन्नति करने वाले गुणों को यदि अधिक मात्रा में जमा कर लिया गया है तो भाग्य में उन्नति का लेख लिखा जायेगा और यदि उन्नायक गुणों को अविकसित पड़ा रहने दिया गया है- दुर्गुणों को, मूर्खताओं को अन्दर भर रखा गया है- तो भाग्य की लिपि दूसरी होगी विधाता लिख देगी कि इसे तब तक दुख दुर्भाग्यों में ही पड़ा रहना होगा जब तक कि योग्यताओं का सम्पादन न करें। अपने भाग्य को जैसा चाहे वैसा लिखना अपने हाथ की बात है। यदि आप आत्मनिर्भर हो जावें, जैसा होना चाहते हैं उसके अनुरूप अपनी योग्यताएं बनाने में प्रवृत्त हो जावें तो विधाता को विवश होकर आपकी मनमर्जी का भाग्य लिखना पड़ेगा।

‘अमरता’ पर विश्वास करने के बाद आध्यात्मवाद की दूसरी शिक्षा यह है कि अपनी आत्मा को बाह्य परिस्थितियों को निर्माता-केन्द्र बिन्दु मानिए। जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उनकी प्रिय अप्रिय अनुमति का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लीजिए। अपने को जैसा चाहें वैसा बना लेने की योग्यता अपने में समझिए। अपने ऊपर विश्वास कीजिए। किसी और का आसरा मत तकिये। बिना आपके निजी प्रयत्न के-योग्यता संपादन के बाहरी सहायता प्राप्त न होगी, यदि होगी तो उसका लाभ बहुत थोड़े समय में समाप्त हो जायेगा और पुनः वही दशा आ उपस्थित होगी, जिसकी कि अपनी औकात है। उत्साह, लगन, दृढ़ता, साहस, धैर्य, परिश्रम इन छः गुणों को सफलता का अग्रदूत माना गया है। इन दूतों का निवास स्थान आत्मविश्वास में है। अपने ऊपर भरोसा करेंगे तो यह गुण भी उत्पन्न होंगे अन्यथा, किसी देव दानव की कृपा से सट्टा, लाटरी फल जाने, बंझोला की भभूत से छप्पन करोड़ की चौथाई मिल जाने, वैद्य जी की दवादारु खाकर भीमसेन बन जाने, वशीकरण मंत्र से तरुणी स्त्रियाँ खिंची चली आने, गंगा मैया की कृपा से बेटा हो जाने, साईं जी के ताबीज से शादी हो जाने के स्वप्न देखते हुए और उम्मीदों की दुनिया में तबियत बहलाते रहिए। बेशऊरों का माल-मसखरे उड़ाते हैं, आप जो मसखरों की चंगुल में फंसकर उगाते रहिए, समय बर्बाद करते रहिए पर प्रयोजन कुछ भी सिद्ध न होगा। ईश्वर के राज्य में ऐसी अन्धी नहीं लड़ रही है कि पसीना बहाने वाले परिश्रमी टापते रहें और शेखचिल्लियों की बन आवे।

“उद्धरेत् आत्मानात्मानम्” की शिक्षा देते हुए गीता ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि अपना उत्थान चाहते हो तो उसका प्रयत्न स्वयं करो। दूसरा कोई भी आपकी दशा को सुधार नहीं सकता श्रेष्ठ पुरुषों का थोड़ा सहयोग मिल सकता है पर रास्ता अपने को ही चलना पड़ेगा, यह मंजिल दूसरे के कंधे पर बैठकर पार नहीं की जा सकती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118