उन्नति की ओर बढ़िए।

September 1943

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(आगे बढ़ने की तैयारी)

आप ‘उन्नति करना’ अपने जीवन का मूल मंत्र बना लीजिए, ज्ञान को अधिक बढ़ाइए, शरीर स्वस्थ बलवान और सुन्दर बनाने की दिशा में अधिक प्रगति करते जाइए, प्रतिष्ठावान हूजिए, ऊंचे पद पर चढ़ने का उद्योग कीजिए, मित्र और स्नेहियों की संख्या बढ़ाइये, पुण्य संचय करिए, सद्गुणों से परिपूर्ण हूजिए आत्म बल बढ़ाइए, बुद्धि को तीव्र करिए अनुभव बढ़ाइए विवेक को जाग्रत होने दीजिए। बढ़ना आगे बढ़ना और आगे बढ़ना यात्री का यही कार्यक्रम होना चाहिए।

अपने को असमर्थ अशक्त एवं असहाय मत समझिए, ऐसे विचारों का परित्याग कर दीजिए कि साधनों के अभाव में हम किस प्रकार आगे बढ़ सकेंगे? स्मरण रखिए-शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं भावना में है। यदि आपकी आकाँक्षाएं आगे बढ़ने के लिए व्यग्र हो रही हैं, उन्नति करने की तीव्र इच्छायें बलवती हो रही हैं तो विश्वास रखिए साधन आपको प्राप्त होकर रहेंगे, ईश्वर उन लोगों की पीठ पर अपना वरद हस्त रखता है जो हिम्मत के साथ आगे कदम बढ़ाते हैं। पिता आपकी प्रयत्नशीलता को, बहादुरी की आकाँक्षा को पसंद करता है और वह इच्छा चाहे मामूली ही क्यों न हो बढ़ने में मदद करता है।

प्रकृति विज्ञान के महापंडित डॉक्टर ई. बी. जेम्स ने अनेक तर्क और प्रमाणों से यह सिद्ध किया है कि ‘योग्यतम का चुनाव’ प्रकृति का नियम है। जो बलवान है उसकी रक्षा के लिए वह अनेक कमजोरों को नष्ट हो जाने देता है। आँधी, ओले तूफान कमजोर पेड़ों को उखाड़ फेंकते हैं किन्तु बलवान वृक्ष जहाँ के तहाँ दृढ़ रहते हैं। बीमारी गरीबी, लड़ाई के संघर्ष में कमजोर पिस जाते हैं, किन्तु बलवान उन आघातों को सह जाते हैं, बड़ी मछली की जीवन रक्षा के लिए हजारों छोटी मछलियों को प्राण देने पड़ते हैं, बड़े पेड़ को खुराक देने के लिए छोटे पौधों को भूखा मर जाना पड़ता है, एक पशु का पेट भरने के लिए घास पात की असंख्य वनस्पति नष्ट हो जाती है, सिंह की जीवन रक्षा के लिए अनेक पशु अपने जीवन से हाथ धोते हैं। यह कड़वी सच्चाई अपने निष्ठुर स्वर में घोषणा करती है कि जीवन एक संघर्ष है इसमें वे ही लोग स्थिर रहेंगे जो अपने को सब दृष्टियों से बलवान बनावेंगे। यह ‘वीर भोग्या वसुन्धरा’ निर्बलों के लिए नहीं है यह तो पराक्रमियों की क्रीड़ा भूमि है यहाँ पुरुषार्थियों को विजय माला पहनाई जाती है और निर्बलों को निष्ठुरतापूर्वक निकाल बाहर किया जाता है।

सावधान हूजिए, गफलत को त्याग दीजिए, कहीं ऐसा न हो कि आप शक्ति संपादन की ओर से उपेक्षा करके ‘चैन करने’ में रस लेने लेंगे और प्रकृति के निष्ठुर नियम आपको निर्बल पाकर दबोच दें। कहीं ऐसी स्थिति में न पड़ जावें कि निर्बलता, के दंड स्वरूप असह्य वेदनाओं की चक्की में पिसने को विवश होना पड़े। इसलिए पहले से ही अलग रहिए आत्म रक्षा के लिए सावधान हूजिए, जीवन संग्राम में अपने को बर्बाद होने से बचाने के लिए शक्ति का संपादन कीजिए, बलवान बनिए। सुदृढ़ आधारों पर अपने को खड़ा कीजिए।

आध्यात्मवाद कहता है कि ईश्वर की आज्ञा पालन यह है कि आप आगे चलें, ऊंचे उठें, आत्म रक्षा के लिए दृढ़ता चाहिए, विपत्ति से बचने के लिए मजबूती चाहिए, भोग ऐश्वर्यों का सुख भोगने के लिए शक्ति चाहिए, परमार्थ प्राप्ति के लिए तेज चाहिए दंशों दिशाओं की एक ही पुकार है- आगे बढ़िए, अधिक इकट्ठा कीजिए। ईश्वर को प्राप्त करने की साधना को जारी रखिए उस महान पथ को पूरा करने की योग्यता बनाये रखने के लिए साँसारिक उन्नतियों को एकत्रित कीजिए या प्रतिष्ठित, शक्ति शास्त्रों और वैभव वान बनने की दिशा में सदैव प्रगति करते रहिए।


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