हैजे से बचिए।

September 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री गुरु दयालु जी वैद्य, अलीगढ़)

वर्षा ऋतु में जल गंदला और पृथ्वी मल संयुक्त हो जाती है। आकाश मेघों से आच्छादित रहता है, वायु तथा प्राणियों के शरीर भी गीले रहते हैं। अतः जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। मन्दाग्नि से भोजन नहीं चलता। देह रोग हो जाते हैं। इसी ऋतु में विसूचिका (हैजा) आ कूदता है। कभी-कभी तो इस हैजे का आक्रमण इतना भयंकर तथा प्रकोप मय होता है कि असंख्यों का मरण हो जाता है। उपर्युक्त सभी रोगों में उपयोगी जनता के हितार्थ एक प्रयोग प्रकाशित किये देते हैं। प्रयोग-सौंफ का तेल 10 बिन्दु, इलायची का तेल 5 बिन्दु, कपूर 6 माशे पीपरमेंट 4 माशे सन अजवायन 5 माशे, लौंग का तेल 8 बिन्दु, सबको शीशी में डाल डाट लगा दें, 15 मिनट में सब तेल का रूप बदल जावेगा। इसकी 4 बिन्दु रात्रि को सोते समय एक घूँट जल में नित्य सेवन करने से हैजे आदि रोग की आशंकाएं नहीं रहती। हैजा होने पर इसी औषधि को 8 बिन्दु तोले अर्क पोदीने में डाल तीन-तीन घंटे के अन्तर से 2 घंटे तक रोगी को पिलाना चाहिए और खाने को कुछ देना चाहिए यदि रोगी की आयु शेष है तो अवश्य बदला जावेगा। यह प्रयोग अतीव उत्तम है।

विसूचिका रोगाघ्न गुटिका-हींग 3 मा. काली मिर्च 3 मा., अफीम शुद्ध 4 रत्ति, कपूर 4 रत्ति, पानी खरल करके 24 गोली बना ली जावें। हैजे वाले रोगी 2 घंटे के अन्तर से 1 गोली 1 तोले पोदीना के रस देते रहना खाने पीने को कुछ न दिया जाये अवश्य लाभ होगा, अनुभूत है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: