नाविक से

September 1943

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(रचियता-महावीर प्रसाद विद्यार्थी टेढ़ा उन्नाव)

सहता जा नाविक, ये प्रहार, पर मुँह से निकले आह नहीं।

अधरों पर मधुर विहास लिए।

उर में अक्षय उल्लास लिए॥

चल, रोक सकेगा तुझे वीर, यह चल का प्रबल प्रवाह नहीं॥

ओ तूफानी, आओ आओ।

लहरों, अम्बर से टकराओ॥

घन घटा घोर तुम बहराओ, परवाह नहीं परवाह नहीं॥

तू गिरता जा तू चढ़ता जा।

तिल-तिल जा तू बढ़ता जा।

तिल-तिल कर आगे बढ़ता जा॥

अपना पथ आप बनाता जा, है यहाँ कहीं भी राह नहीं।

चट्टानों से तू लड़ता चल।

विपदाओं में तू रह अविचल॥

अपनाया तूने शूलों को फूलों की करना चाह नहीं।

सहता जा नाँदिक, ये प्रहार पर मुँह से निकले आह नहीं॥


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