आत्मीयता का विस्तार

September 1943

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(आन्तरिक उल्लास का विकास)

संसार से ममता को हटा लेने या संसार भर में ममता का विस्तार कर देने का एक ही अर्थ है। दोनों का तात्पर्य यह है कि थोड़े ही दायरे में ममता को केन्द्रीभूत न रहने दिया जावे वरन् उसका उपयोग विस्तृत क्षेत्र में किया जाया। केवल अपने शरीर तक या स्त्री संतान तक ममता सीमित रहना, पाप मूलक है। क्योंकि अन्य लोगों को विराना समझने से उनका शोषण करने की प्रवृत्ति बलवती होती है। जिससे अपना संबंध नहीं उसकी हानि लाभ में भी कोई दिलचस्पी नहीं रहती, ऐसी दशा में अपनों के लाभ के लिए विरानों को हानि पहुँचाने का अवसर आवे तो उसे करने में कुछ झिझक या संकोच अनुभव नहीं होता। चोर यदि यह अनुभव करे कि जिसका माल चुरा रहा हूँ उसे जितना दुख चोरी में मुझे होता है उतना ही दुख उसे होगा तो वह चोरी कैसे कर सकेगा? हत्यारा-यदि अनुभव करे कि वध करते समय मुझे जितना कष्ट होता है उतना ही उसे भी होगा तो उसकी छुरी कैसे किसी का गला कतरने में समर्थ होगी? आत्मीयता का अभाव ही सताने और शोषण करने की छूट देता है- अपनों के लिए तो त्याग और सेवा करने की इच्छा होगी। अपनी बीमारी को दूर करने के लिए मानना ऐसा खर्च किया जा सकता है, यदि भाई को अपना मानते हैं तो उसकी बीमारी में भी सहायता किये बिना न रहा जायेगा इस प्रकार पाप और पुण्य की प्रवृत्तियाँ भी इसी आर्हता को सकोड़ने और विस्तार करने पर निर्भर है। आप सदैव यही उद्योग करते रहिए कि अपना ‘अहम्’ सीमित न रहे, वरन् जितना हो सके विस्तृत किया जाय।

आत्मभाव के विस्तार की सूक्ष्म मनोवृत्ति का

व्यवहारतः उदारता में दर्शन किया जा सकता है। जिनके विचार और कार्य उदारतापूर्ण हैं, जो दूसरे लोगों की सुविधा का अधिक ध्यान रखते हैं वास्तव में वे इस भूलोक के देवता हैं। अभागा कंजूस सोचता है कि सारी दौलत अपने लिए जोड़-जोड़ कर रख लूँ, अपनी विद्या किसी पर प्रकट न करूं, अपनी शक्तियों को किसी को मुफ्त न दूँ, ऐसे लोग सर्प बनकर सम्पदाओं की चौकीदारी करते हुए मर जाते हैं, उन्हें यह आनन्द जीवन भर उपलब्ध नहीं होता जो उदारता के द्वारा मिलता है। एक उदार हृदय व्यक्ति पड़ोसी के बच्चों को खिलाकर बिना खर्च के उतना ही आनन्द प्राप्त कर लेता है जितना कि बहुत खर्च और कष्ट के साथ अपने बालकों को खिलाने में प्राप्त किया जाता। अपने हंसते हुए बालक को देखकर आपकी छाती गुदगुदाने लगती है, फिर पड़ोसी के उससे भी सुन्दर फूल से हंसते हुए बालक को देखकर आपके दिल की कली क्यों नहीं खिलती? अपनी फुलवारी को देखकर खुश होते हैं पर पास में ही दूसरों के जो सुरभित उद्यान लहलहा रहे हैं वे आपमें तरंगें क्यों नहीं उत्पन्न करते? आपके आस-पास सदाचारी, कर्त्तव्य-परायण, मधुर स्वभाव वाले धर्मात्मा परोपकारी विद्वान निवास कर रहे हैं, उनका होना आपको क्यों शाँतिदायी नहीं होता? कारण यह कि आप खुद अपने हाथों अपनी एक निजी अलग दुनिया बसाना चाहते हैं, उसी से संबंध रखना चाहते हैं, उसी की उन्नति को देखकर प्रसन्न होना चाहते हैं, यह काम शैतान का है शैतानी कार्य आनन्ददायी नहीं हो सकते।


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