(श्री स्वामी विवेकानन्द जी)
संकल्प ही संसार में अमोघ शक्ति है। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले पुरुषों के शरीर से मानो एक प्रकार का तेज निकला करता है और उनका मन जिस अवस्था में रहता है वैसा ही वे दूसरे के मन को भी बना देते हैं और जब एक शक्तिशाली पुरुष की शक्ति से बहुत लोगों के भीतर वह एक ही प्रकार का भाव उत्पन्न होता है, तभी हम शक्तिशाली होते हैं। एक प्रत्यक्ष उदाहरण देखिए। चार करोड़ अंग्रेज आप 40 करोड़ भारतवासियों पर किस तरह शासन कर रहे हैं। संघ ही शक्ति का मूल है। शायद आप यह कहें कि यह तो जड़ शक्ति के द्वारा ही सिद्ध हो सकता है, इसलिए आध्यात्मिक शक्ति की क्या आवश्यकता है? देखिए, ये चार करोड़ अंग्रेज अपनी सारी इच्छा शक्ति को एकत्र किये हुए हैं उसी के द्वारा ही उनमें असीम शक्ति आती है और आप 40 करोड़ होते हुए भी अलग-अलग हैं। भारत के भविष्य को उज्ज्वल करने का मूल रहस्य संघ-शक्ति संग्रह, विभिन्न इच्छा शक्तियों का एकत्र करना ही है। मेरे मानसिक नेत्रों के सन्मुख ऋग्वेद का अपूर्व मन्त्र है-”संगच्छध्वे संवदध्वं संग्वो मनाँसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्व, 10/191/2”
आप सब लोक एक अन्तःकरण के हो जाइए। क्योंकि प्राचीन काल में देवता लोग एक मन होने से ही अपना भाग प्राप्त करने में समर्थ हुए थे। आप आर्य, द्रविणं, ब्राह्मण आदि तुच्छ विषयों को लेकर विवाद में फंसे रहेंगे उतना ही भावी भारत के उपयुक्त शक्ति संग्रह से बहुत दूर रहेंगे। भारत का भविष्य केवल एक बात पर निर्भर करता है वह है ‘एकता’।