(संग्रहकर्ता श्री धर्मपालसिंह जी रुड़की)
(1) अहंकार को त्याग दो। दूसरों में दोष देखने की दृष्टि को छोड़कर गुणदर्शी बनो। अपने हाथ पेश आने वाली प्रत्येक घटना में शुभ फल की ही भावना रखो, क्योंकि संसार में सब कुछ व्यवस्थित रूप से चल रहा है। जो भी हो रहा है सब कल्याण के लिए हो रहा है। अतएव विपत्ति में कष्ट में धैर्य रखो। देखो! यह दुःख दर्द तुम्हारे भविष्य के लिए छिपे हुए रूप में आशीर्वाद हैं- प्यारों ! चिन्ता और शोक के शिकार न बनो।
(2) चिन्ता के समय कातर होकर प्रभु का स्मरण करो। जो कुछ अपना समझते हो उस सब को उस असली मालिक को सौंप दो और फिर अपने आपको उनके चरणों पर भेंट चढ़ाकर निश्चिन्त हो जाओ फिर तुम एक अद्भुत जीवन का सुख अनुभव करोंगे। एक मुसलमान भक्त अपने वाणी में इसी को कहते हैं- उइ ‘फ्ररीदहा’ जिकर कर, फिक्र करेगा आप। जिनका यह निश्चय नहीं, उनको है संताप। ।
(3) सदैव अपने भविष्य के जीवन पर गहरी दृष्टि रखो। उसे सत्कर्मों से भर दो ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखकर उत्साह से जीवन व्यतीत करो देखो। जिन्दगी में परिवर्तन होते ज्यादा वक्त नहीं लगता।
(4) अपने आपस के बर्ताव और व्यवहार को ठीक करो। अपनी किसी बात को दूसरों से हठ पूर्वक मनवाने की चेष्टा न करो। अपनी भूल को मान भंग होने का झूठा भय मानकर स्वीकार करने में लज्जा संकोच न करो। देखो! भूल मान लेने से किसी प्रकार की हानि नहीं होती, बल्कि ठीक रास्ता हाथ आता है।