आध्यात्म विद्या की नवीन शिक्षा

July 1943

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आध्यात्मवाद एक ऐसा महा विज्ञान है, जिसके ऊपर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सब प्रकार की उन्नतियाँ निर्भर है। प्राचीन काल में गरीब से लेकर राजा तक अपने बालकों को शिक्षा के लिए योगियों के आश्रम में छोड़कर निश्चिन्त हो जाते थे। क्योंकि वे समझते थे कि आध्यात्म शिक्षा, मानव जीवन को सुसंचालित करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है, सफल जीवन बनाने की एक कला पूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा बलवान, वीर्यवान, तेजस्वी, योद्धा, धनी प्रतिष्ठित, लोक प्रिय, उच्च पदारुढ़, अधिकारी, विद्वान एवं महापुरुष बना जा सकता है। आज भिखमंगों ने योग के नाम को कलंकित करने में कुछ उठा नहीं रखा है, तो भी मूल तत्व की सत्यता पर जरा भी आँच नहीं आया है।

आत्म-विज्ञान-नकद धर्म है। उसके फल की प्रतीक्षा के लिए परलोक की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती, वरन् ‘इस हाथ दे उस हाथ ले’ की नीति के अनुसार प्रत्यक्ष फल मिलता है। व्यापार में अधिक लाभ, नौकरी में सुविधा और तरक्की, पत्नी का प्रेम, पुत्र, शिष्य और सेवकों का आज्ञा पालन, मित्रों का भ्रातृ भाव, गुरुजनों का आशीर्वाद, परिचितों में आदर, समाज में प्रतिष्ठा, निर्मल कीर्ति, अनेक हृदयों पर शासन, निरोग शरीर, सुन्दर स्वास्थ्य, प्रसन्न चित, हर घड़ी आनन्द, दुख शोकों से छुटकारा, विद्वत्ता में वृद्धि, तीव्र बुद्धि, शत्रुओं पर विजय, वशीकरण का जादू, अकाटय़ नेतृत्व, प्रभावशाली प्रतिभा, धन-धान्य, तृप्ति दायक भोग वैभव ऐश्वर्य, ऐश-आराम, सुख-सन्तोष, परलोक में सद्गति, यह सब सम्पदायें प्राप्त करने का सीधा मार्ग आध्यात्मवाद है। इस पथ पर चलकर जो सफलता प्राप्त की जाती है, वह अधिक दिन ठहरने वाली, अधिक आनन्द देने वाली और अधिक आसानी से प्राप्त होने वाली होती है। एक शब्द में यों कहा जा सकता है, कि सारी लौकिक और पारलौकिक इच्छा आकाँक्षा की पूर्ति का अद्वितीय साधन आध्यात्म वाद है।

प्राचीन पुस्तकों में ‘कल्पवृक्ष’ नामक एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसके समीप जाकर जो इच्छा की जाय वह तुरन्त की पूरी हो जाती है। ढूँढ़ने वालों को बहुत खोज करने पर भी किसी देश में ऐसा पेड़ अभी नहीं मिला है, लेकिन हम कहते हैं कि वह वृक्ष है और दूर नहीं, आपके अपने अन्दर छिपा हुआ है। यदि आप आत्म साधना द्वारा उसके समीप तक पहुँच जावें तो निस्सन्देह आप अपनी समस्त आकांक्षाएं पूर्ण कर सकेंगे, इस कल्पवृक्ष के पास पहुँचने का जो मार्ग है उसे ही आध्यात्मवाद, ब्रह्म विद्या या योग साधन कहते हैं। प्रफुल्ल, आनन्दमय और सन्तुष्ट जीवन बिताने के लिए हरएक व्यक्ति को इसी मार्ग से चलना पड़ता है।

पूज्यपाद स्वामी विवेकानन्द जी अब पाश्चात्य देशों का भ्रमण करके वापिस आये थे, तो उन्होंने कहा था कि गोरी जातियाँ आध्यात्म मार्ग के प्रारम्भिक सिद्धाँतों का पालन कर रही हैं और उसके फल स्वरूप जो शक्ति प्राप्त होती है, उससे राजसी सिद्धियों का सुख भोग रही हैं। भारतवासी योग के नाम पर बिगुल बजाते हैं, पर उसका आचरण बिलकुल भूल गये हैं, जिस दिन ऋषि सन्तान अपने इस शक्तिशाली शस्त्र को हाथ में पकड़ेगी उस दिन दिखा देगी कि शक्ति समृद्धि और स्वाधीनता हम भी प्राप्त कर सकते हैं।

अखण्ड ज्योति ऐसे ही व्यवहारिक आध्यात्मवाद का प्रचार करती है, जो तर्क प्रमाणों से युक्त है, बुद्धि ग्राह्य है और नकद धर्म की तरह तुर्त-कुर्त अपना चमत्कारी फल दिखाता है कैसी ही कठोर दुखदायी परिस्थिति में आप पड़े हुए हैं, इस महाविज्ञान की अमर बूटी का एक घूँट गले से नीचे उतरते ही शान्ति लाभ करेंगे और अपनी व्यथा में तत्क्षण समाधान पावेंगे।

आधुनिक नवीनतम मनोवैज्ञानिक खोजों और उपनिषदों के प्राचीन सिद्धाँतों का समन्वय करके एक ऐसी श्रृंखला बद्ध विचार पद्धति की रचना की गई है, जो जलपान की तरह सरल, वायु सेवन की तरह बिना झंझट की, मिर्च की तरह असर करने वाली, सुई के समान पैनी और पैसे के समान त्वरित फल देने वाली है। यह विचार पद्धति आठ पुस्तकों में प्रकाशित हो रही है। कारखाने में तीव्र वेग से उनकी छपाई हो रही है। अभी जुलाई तक पाँच पुस्तकें छप चुकी हैं। जुलाई के तीसरे सप्ताह में आठों पुस्तकें छप कर तैयार हो जायेगी।

बहुत से श्रद्धालुजन ऐसी शिक्षा प्राप्त करने के लिए हमारे यहाँ आध करते हैं, जिनसे उनका वर्तमान जीवन उन्नति और समृद्धिशाली हो कर माला जपने का मन्त्र बता कर हम अपना कर्तव्य समाप्त नहीं करते वरन् उन आगन्तुक मित्रों के दृष्टिकोण में परिवर्तन करके, वर्तमान कठिनाइयों को दूर करने की क्षमता पैदा करते हैं। जिन शिक्षा पद्धति के द्वारा अनेक प्रेमीजन आशातीत लाभ उठा चुके हैं, उसे अब पुस्तकाकार प्रकाशित करके समस्त पाठकों के लिए सुलभ किया जा रहा है। परिस्थितियाँ जरा अनुकूल होने पर सम्भवतः अगले वर्ष यहाँ मथुरा में एक ऐसा विद्यालय भी स्थापित करेंगे। जिसमें हमारे निकट कुछ समय तक रहकर वर्तमान जीवन की उन्नतिशील बनाने की व्यावहारिक एवं ठोस शिक्षा दी जा सके। जब तक जैसी व्यवस्था नहीं होती, तब तक हमारी इन नवीन पुस्तकों के आधार पर अपने-अपने स्थानों पर रहते हुए लाभ उठाया जा सकता है। हम विश्वास दिलाते हैं कि विचार पूर्वक इन पुस्तकों को पढ़ने मात्र से हृदय में एक नवीन प्रकाश की आविर्भाव होगा, उन्नति मार्ग पर चलने के लिए नाडियों में एक नवीन विद्युत शक्ति दौड़ने लगेगी। हर पाठक से हमारा निजी अनुरोध है कि इन आठ पुस्तकों में वर्णित शिक्षा को अविलम्ब मनन करें और उस पर एक कदम चलने से भी कितना लाभ होता है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव करें।

-श्रीराम शर्मा


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