सच्ची क्षमा

July 1943

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(श्री मुरारीलाल शर्मा ‘सुरस’ मधुरा)

मनु भगवान ने धर्म के दस लक्षणों का वर्णन करते हुए क्षमा को दूसरे स्थान पर रखा है। निस्सन्देह क्षमा एक उत्तम गुण है, यदि अपराधों का बदला लेने की प्रवृत्ति पर जोर दिया जाय तो इस संसार में इतना कलह और उत्पात उठ खड़ा होगा, जिसकी भयंकरता के कारण कोई भी चैन से न बैठ सकेगा? अल्पज्ञ और निर्बल लोगों से अकसर भूलें होती हैं, बड़ों का कर्त्तव्य है कि इन बड़ी उम्र के बालकों को माफ करके अपनी महानता का परिचय दें। लोग पृथ्वी की छाती पर पदाघात करते हुए घूमा करते हैं, परन्तु धरती माता किसी पर कभी रोष नहीं करती। छोटे बच्चे अकसर माता पिता के साथ अशिष्टता का व्यवहार किया करते हैं तो भी उन्हें क्षमा ही प्राप्त होती है।

परन्तु एक बात विशेष रूप से ध्यान रखने की है, कि दण्ड देने की परिपूर्ण शक्ति रखने वाला व्यक्ति ही निर्बल अपराधी को क्षमा कर सकता है। कमजोर आदमी बलवान से पिटता है जब कुछ बस नहीं चलता तो कहता है-”मैं” क्षमाशील हूँ, यह आत्मवंचना है। क्षमा का उपहास करना है। जिसमें दण्ड देने की, बदला लेने को शक्ति ही नहीं, वह बेचारा किसे क्षमा करेगा?

क्षमा धर्म का पालन करने के लिए सब से पहले इस बात की आवश्यकता है कि बलवान बना जाय, शक्ति का संचय किया जाय। निर्बलों को सदैव कायर और दुर्बल ही कहा जाता है। उससे उनका उपहास होता है, लोग ऐसे धर्मात्मा बनते हैं और ताने कसते हैं।

बलवान अत्याचारी का विरोध करना चाहिए। अन्याय करने वाले का मुकाबला करना चाहिए नहीं तो उसकी डाढ़ लपक जायगी और अनीति के मार्ग पर निर्भय होकर चलने लगेगा। महात्मा सुकरात ने कहा है कि-जो दुष्ट को माफ करता है, वह नहीं जानता, कि आदम की औलाद के साथ क्या गुनाह कर रहा हूँ।”


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