मन में से भय की भावनाएं निकाल फेंकिए

March 1946

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भयभीत होना एक अप्राकृतिक बात है। प्रकृति नहीं चाहती कि मनुष्य डर कर अपनी आत्मा पर बोझ डाले। तुम्हारे दुःख, तुम्हारी नित्य प्रति की चिन्ताऐं तुमने स्वयं उत्पन्न कर ली हैं। यदि तुम चाहो तो अन्तःकरण को भूत प्रेत पिशाचों की श्मशान भूमि बना सकते हो। इसके विपरीत यदि तुम चाहो तो अपने अन्तःकरण को निर्भयता, श्रद्धा, उत्साह के सद्गुणों से परिपूर्ण कर सकते हो। अनुकूलता या प्रतिकूलता उत्पन्न करने वाले तुम स्वयं ही हो। तुम्हें दूसरा कोई हानि नहीं पहुँचा सकता, बाल भी बाँका नहीं कर सकता। तुम चाहो तो निर्भय, परम निःशंक बन सकते हो। तुम्हारी शुभ, अशुभ वृत्तियाँ, यश अपयश के विचार विवेक बुद्धि ही तुम्हारा भाग्य निर्माण करती है।

भय की एक शंका मन में प्रवेश करते ही, वातावरण को सन्देह पूर्ण बना देती है। हमें चारों ओर वही चीज नजर आने लगती है जिससे हम डरते हैं। यदि हम भय की भावनाएं हमेशा के लिए मनोमन्दिर से निकाल डालें तो उचित रूप से तृप्त और सुखी रह सकते हैं। आनन्दित रहने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि अन्तःकरण भय की कल्पनाओं से सर्वथा मुक्त रहें। आइए, हम आज से ही प्रतिज्ञा करें कि हम अभय हैं। भय के पिशाच को अपने निकट न आने देंगे। श्रद्धा और विश्वास के दीपक से अन्तःकरण में आलोकित रहेंगे और निर्भयता पूर्वक परमात्मा की इस पुनीत सृष्टि में विचरण करेंगे।


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