वंदना (कविता)

May 1940

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(ले.—श्री धूमसिंह वर्मा ‘धूम’ समोली)

बंदे उनके पद की धूल।

जिनके मन मानस में से करुणा का झरना झरता।
जो कल-कल-कल सुमधुर ध्वनि से, दिगमंडल में अमृत भरता॥
ऊसर, प्यासे, भूखंडों में उपजाता सुन्दर हरियाली—
अगणित जल थल चर जीवों को, जीवन देता प्रमुदित करता॥

नन्दन बन सा शीतल कूल।
बंदे उनके पद की धूल॥

खुद औरों को देख दया से, भर आती है जिनकी छाती।
तृषित जनों को शीतल करती, जिनकी वाणी रस बरसाती।
टिम-2 जिनका जीवन दीपक, तिल-तिल निशदिन जलता रहता—
जनता जिनकी चिनगारी के नीचे अपना पथ लख पाती।

जिनका जीवन सुरभित फूल।
बंदे उनके पद की धूल॥

खुद तपते हैं किन्तु दूसरों का अन्तस्थल शीतल करते।
खुद दुख सहते रहते लेकिन औरों की पीड़ाएं हरते॥
भिक्षुक पर कुबेर से दानी, अपमानित सुरपति से मानी—
जिनकी ज्ञानमयी गंगा में, डुबकी लेकर जग-जग तरते॥

जिनको प्रिय है शूल बबूल।
बंदे उनके पद की धूल॥


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