मनुष्य का सबसे बड़ा मुक्ति दाता स्वयं उसी के भीतर विद्यमान है। वह सत्य है। सत्य ही भलाई है। जिसके विचार और कार्य निरंतर भले हैं वही वास्तव में भला मनुष्य है।