बुढ़ापे से कैसे बचे?

May 1940

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(पं. सीताराम शर्मा बी.ए.एल.एल.बी. मुरारी)

गत अंक में यह अच्छी तरह समझाया जा चुका है कि बुढ़ापा एक मानसिक रोग है। समयानुसार शरीर के कलपुर्जे घिस जाते हैं और प्रकृति के नियमानुसार एक समय उसे मरना पड़ता है यह सच है। परन्तु वह दुख, निराश और रोगों से घिरा हुआ नहीं होना चाहिए। इस लेख में उस बुढ़ापे को रोकने का कोई उपाय नहीं बताया जा सकेगा जिसमें बाल पक जाते हैं, चमड़ी पर सिकुड़ने पड़ जाती हैं, दाँत हिल या गिर जाते हैं। यह स्वाभाविक दशाएं हैं बड़ी उम्र में यह बातें स्वभावतः हो जाती हैं। स्वाभाविक होने के कारण यह सब परिवर्तन सुन्दर भी मालूम पड़ते हैं। जिस प्रकार एक सुन्दर तरुणी का चन्द्रबदन अपना एक विशेष आकर्षण रखता है उसी प्रकार वयोवृद्ध पुरुषों की बुढ़ौती अपने में एक श्रद्धा और रौब धारण किये होती है। नौजवान लड़के आपस में ठट्ठा मार रहे हों पर वे किसी वृद्ध पुरुष को देख पावेंगे तो झेंप जायेंगे और अपनी उच्छृंखलता बन्द कर देंगे। कहते हैं कि वृद्ध पुरुषों से सभा की शोभा होती है। अनुभव और ज्ञान वृद्धि के कारण उनकी उपयोगिता भी कम नहीं मानी जाती। प्रबंध, समझौता और निर्णय करने का भार वृद्ध पुरुषों पर डाला जाता है। इस प्रकार पाठक देखेंगे कि बुढ़ापा कोई अभिशाप नहीं है। स्वयं बुड्ढों को यह उम्र अखरनी भी नहीं चाहिए, पहले अंक में बताया जा चुका है कि बड़ी उम्र में इन्द्रियाँ शिथिल हो जाने के कारण यद्यपि वे स्थूल भोगों को नहीं भोग सकते, किसी तरुणी से मुहब्बत नहीं कर सकते। किन्तु मानसिक तत्वों की वृद्धि हो जाने के कारण दूसरे प्रकार के आनंद उन्हें प्राप्त होने लगते हैं। विभिन्न विचारधाराओं का अध्ययन, अपने अनुभव, दूसरों के शिक्षण, ईश्वर की अविचल भक्ति आदि के द्वारा वे ऐसा आनंद भोग सकते हैं जैसा नौजवानों को नसीब नहीं हो सकता।

इस लेख में हम उस बुढ़ापे को बुरा बता रहे हैं और उसी से बचने के उपायों पर प्रकाश डाल रहे हैं जिसके द्वारा आदमी दुख, शोकों में डूबा रहता है। देह बीमारियों का घर बन जाती है जिसके कारण उत्साह और फुर्ती तो दूर हलके काम करना और भोजन पचा लेना भी कठिन हो जाता है। मानसिक दशा बड़ी करुणा जनक हो जाती है। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो हमारा सर्वस्व चला गया हो, सब प्रकार का बल गंवा बैठे हों और मानों कोई घसीट घसीट कर मृत्यु के मुँह में पटकने के लिये ले जा रहे हों। शारीरिक अशक्ति उन्हें असहाय अवस्था का अनुभव कराती है। वे मृत्यु के दाँतों में उलझे हुए अशक्त जन्तु की तरह अपनी बेबसी पर आँसू बहाते हैं। पिछली क्रियाशीलता, भोग शक्ति और ऐश्वर्य की तुलना आज की लाचारी से करते ही उनके हृदय में एक ऐसी टीस सी उठती है जिसका हम नौजवान लोग ठीक तरह अनुभव नहीं कर सकते। यह बुढ़ापा अस्वाभाविक, अप्राकृतिक और अनुचित है।

हम सब को बुड्ढा होना है। हमारा बुढ़ापा भी ऐसा ही अप्राकृतिक न हो जाय इसलिए अभी से सावधान हो जाने की जरूरत है। चूँकि अस्वाभाविक बुढ़ापा अप्राकृतिक है। एक प्रकार का रोग है। इसलिए उससे छुटकारा मिल सकता है और आसानी के साथ अपना बचाव किया जा सकता है। स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने से निरोगता बनी रहती है और बीमारियों का आक्रमण नहीं होता। उसी प्रकार पहले से सावधान रहना अनुचित बुढ़ापे को रोक सकता है।

डॉक्टर ग्रे का कथन है कि चिन्ता मनुष्य का बुढ़ापा है। यह जवान आदमी को बुड्ढा कर देती है। मेरे अनुभव में ऐसे कई रोगी आ चुके हैं। एक स्त्री का पति मर गया पाँच बच्चों के पालन पोषण का भार वह किस प्रकार उठा सकेगी, इस चिन्ता से वह बेचैन रहने लगी। डेढ़ वर्ष के बाद मैंने देखा तो उस अधेड़ स्त्री के बाल पक गये थे और कमर झुक गई थी। एक दूसरा रोगी एक नानबाई है। पैंतालीस वर्षीय यह प्रौढ़ अपने दो बेटों समेत रोटी की दुकान करता था। निमोनिया रोग से एक सप्ताह के अन्दर उसके दोनों पुत्र मर गये। दो वर्ष लाठी टेक कर एक कृशकाय बुड्ढे को देखा तो मैं पहचान न सका कि वह वही नानबाई है। तीसरा व्यक्ति एक बड़ी जहाजी कंपनी का मालिक है। करोड़ों पोण्ड की पूँजी से इसका काम चल रहा था। दैवयोग से एक वर्ष में तीन जहाज दो दफ्तरों में आग लगी, एक बैंक में रुपया डूबने के फलस्वरूप वह बड़ी कम्पनी दिवालिया हो गई। उसका मालिक अपनी सारी प्रतिष्ठा खो बैठा और वह खाता पीता आदमी है पर सम्पत्ति नाश का सदमा बैठा कि चंद रोज में ही क्षीण काय जर्जर बुड्ढा बन गया। चौथा आदमी जौन्स होटल का क्लर्क है। उसे सन्देह हो गया कि मेरा मालिक मुझसे नाराज हो गया है और किसी ऐसे जाल में फंसा देने का षड्यंत्र कर रहा है जिसमें लंबी मुद्दत के लिए जेल हो सकती है। बेचारा क्लर्क घर छोड़कर भागा और आपने को छिपाता हुए तीन महीने तक देश विदेश की खाक छानता फिरा। उसे विश्वास हो गया कि ऐसी कोई बात नहीं है तब वह वापिस आया। लोग यह देखकर हैरान हो गये कि तीन महीने में ही उसके सिर के सारे बाल सफेद क्योंकर हो गये?

विद्वानों के उपरोक्त दोनों मतों को पढ़कर पाठक समझ सकते हैं कि साँसारिक माया जाल में अपने को ऊँचा उठा हुआ समझना मानसिक वेदनाओं को असहाय नहीं बनने देगा। जिसने मानसिक कष्टों पर काबू पा लिया है और मुसकराते रहने का दैवी गुण ग्रहण कर लिया है वह किसी परिस्थिति में विचलित नहीं किया जा सकता। ऐसा धीर और अविचल व्यक्ति जब तक मधु मृत्यु शय्या पर सुलाया जायेगा तब तक नौजवान बना रहेगा।

मानसिक कष्टों के बाद शारीरिक अयोग्यता का नम्बर आता है। यह ठीक है कि काम काजी लोग आपने स्वाभाविक शारीरिक संगठन में कोई है चमत्कारी परिवर्तन करने का अवसर प्राप्त नहीं कर सकते फिर भी स्वस्थ रहने की क्षमता धारण किए रहे सकते है। इसके सम्बंध में लाईपील का कहना है ढेरों मोटे-मोटे ग्रंथ बाजार में मिलते हैं। साधारण लोग जो उन सब का पालन नहीं कर सकते यह जानने में असमर्थ रहते हैं कि इन में से कौन से मुख्य है। मेरा अनुभव है डडड डडडड डडडडडड डडडडडडड

करना पर्याप्त है। भोजन और मैथुन करने से पूर्व उनकी आवश्यकता पर भली प्रकार विचार करके तब प्रवृत्त हुआ जाय। बस इतना ही काफी है।

उपरोक्त साधारण शब्दों में कितना सत्य और गूढ़ ज्ञान छिपा हुआ है। भोजन की सावधानी कितनी जरूरी और महत्वपूर्ण है इसे सब लोग जानते हैं खूब भूख लगने पर अच्छी तरह चबा चबा कर ताजा पौष्टिक और सात्विक भोजन करना दीर्घजीवन की पहली सीढ़ी है पर्याप्त स्वास्थ्य, तीव्र कामेच्छा और अनुकूल अवसर का ध्यान रखकर विचार और विवेक के साथ वीर्यपात करें तो उस सारी क्षति से बचे रह सकते हैं जो इस विषय में अविचार पूर्वक प्रवृत्त होने के कारण होती है। वायु सेवन, व्यायाम, प्रातः काल उठना, स्नान, सफाई निद्रा आदि बातें भी अपना काफी महत्व रखती हैं परन्तु यह उन दोनों बातों की सीमा में आ जाती है जिनका आहार बिहार ठीक होगा उनको यह सब बातें स्वयमेव सूझ पड़ेगी और उनका पालन अपने आप होने लगेगा।

बुढ़ापे से बचने के लिए यह उपाय सर्वोत्तम है। पाठकों को नोट कर लेना चाहिए कि उन्हें यदि अस्वाभाविक बुढ़ापे से बचना है तो मन को माया से ऊँचा उठाना होगा और प्रसन्नता को अपनाना होगा। साथ ही भोजन और मैथुन के संबंध में पूर्ण संयम के साथ काम लेना होगा। यही उपाय उनकी जवानी को मृत्यु पर्यन्त कायम रख सकेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118