ऋषि युग्म का उद्बोधन

युग-युग तक जग याद करे

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(विद्यावती मिश्र)

युग-युग तक जग याद करे तुम ऐसे कर्म करो!

कर्म में ऐसे मर्म भरो!!

जहां कहीं हो ताप वहां पर

सावन बन बरसो,

मरुथल मधुवन बने जहां पर

दिन दो-चार वसो,

जिससे मिल लो एक बार तुम कभी नहीं विसरो!

कर्म में ऐसे मर्म भरो!! युग-युग0

पथिकों को गति भ्रमितों को तुम

बन कर दीप रहो,

सगर-सुतों हित बनकर पावन

सुरसरि धार बहो,

जग-उपवन में मलयज की शीतलता ले विचारो!

कर्म में ऐसे मर्म भरो!! युग-युग0

मानव हो तुम मानवता के

शुचि श्रृंगार बनो,

श्वांसों के सागर में

मन के कर्णधार बनो,

तपः पूत शापों में कंचन बन निखरो !

कर्म में ऐसे मर्म भरो!!

युग-युग तक जग याद करे तुम ऐसे कर्म करो!!

कर्म में ऐसे मर्म भरो!!
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