(आर.सी. प्रसाद सिंह)
चल, दीवाने, चल।
आज नहीं, तो कल।।
तेरे ही हाथों में होगा मातृभूमि का हल।
चल, दीवाने, चल।। चल दीवाने0
माता आज पुकार रही है।
तरुणाई ललकार रही है।
कौन वीर आगे बढ़ता है? भारत-शक्ति निहार रही है।
आजादी का दीप मचलता, जल, परवाने, जल।
चल, दीवाने, चल।। चल दीवाने0
बैठा क्या रोता है घर में?
लहर उठी है भारत-भर में।
पर्वत का हिम पिघल रहा है, खोल रहा है जल सागर में।
तू ही क्यों अब तक है सोया? उठ, आंखों को मल।
चल, दीवाने, चल।
आज नहीं तो कल।।
तेरे ही हाथों में होगा मातृभूमि का कल।। चल दीवाने0