उठो, बांसुरी में नई सांस फूंको,
नई जिन्दगी, स्वर नये मांगती है।
पहाड़ों से जूझो, नई राह ढूंढ़ो,
हवाओं को मोड़ो, भुजाओं के बल पर।
गगन आज अपना, धरा आज अपनी,
धरे हाथ पर हाथ बैठो न कल पर।
क्षितिज पर नई नाचती है किरण जो,
परिश्रम के जौहर नये मांगती है।। उठो0
अभी तो सुबह है उमंगें भरी हैं,
अभी हाथ में अपने तकदीर अपनी।
अभी है समय खींच डालो सुहानी
पसीने के रंगों से तस्वीर अपनी।
नैया भी अपनी खिवैया भी अपनी,
तराने लहर पर नये मांगती है।
नई जिन्दगी स्वर नये मांगती है।। उठो0