(अज्ञात)
रुके नहीं पतवार माझियो!
अतिभीषण जलप्लावन है, शेष अभी भी सावन है,
तट पर भीड़ अपार! माझियो! रुके नहीं पतवार!!
सब जाने-अनजानों को अपने और बिरानों को,
पहुंचा दो उस पार! माझियो! रुके नहीं पतवार!!
तुम में साहस है, बल है, शक्ति प्राण का सम्बल है,
क्यों होगी फिर हार! माझियो! रुके नहीं पतवार!!
साहस है, बल है, श्रम है, मुझे न फिर किसका गम है,
पथ देगी खुद धार! माझियो! रुके नहीं पतवार!!