ऋषि युग्म का उद्बोधन

दो शब्द

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लोक मानस को आदर्शोन्मुख बनाने के लिये उपयुक्त कविताओं-गीतों का प्रयोग जादू जैसा प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। इसके लिये प्रेरक, उद्बोधक गेय-गीत लिखे और प्रकाशित किये जाना बड़ा उपयोगी और आवश्यक है। अपने देश में आज भी कवियों की कमी नहीं है, पर खेद की बात है कि उनका ध्यान इस ओर बहुत ही कम गया है। इसी प्रकार पुस्तक-प्रकाशकों ने भी इस दिशा में उत्साह नहीं दिखाया। सम्भवतः दोनों ही यह सोचते रहें कि सस्ती लोक-रुचि के अनुरूप लिखने छापने में ही वे लाभ में रहेंगे। जो हो इस प्रकार के गीत ढूंढ़ने पर बहुत कम मिलते हैं, जो जन-मानस के युग के अनुरूप ढालने में सहायक हों, साथ ही लयबद्ध गाये भी जा सकें।

जहां ऐसे गीत मिले उन्हीं को संग्रह करना पड़ा है और पुस्तक रूप में छापा जा रहा है। जिन्होंने ये कवितायें लिखी या छापी हैं, उनसे जल्दी में स्वीकृति प्राप्त कर सकना संभव न हो सका। एक और कारण यह भी था कि उनके पूरे पते उपलब्ध न थे। कुछ कविताएं तो ऐसी हैं जो गायकों से नोट कर ली गई हैं, पर रचयिताओं का पता उन्हें भी न था। विषय सूची में कविताओं के नाम के साथ उनके रचयिता कवियों का नाम भी दिया गया है जिनके नाम नहीं मालूम थे, उन्हें अज्ञात लिख दिया गया है। जिन्हें उनके नाम मालूम हों वे कृपया सूचित करें, ताकि अगले संस्करण में उनका उल्लेख कर दिया जाय।

प्रस्तुत प्रेरक कविताओं का संग्रह प्रकाशित करते हुये हम उनके लेखकों-प्रकाशकों के हृदय से कृतज्ञ हैं। आशा है इस प्रकाशन से एक बड़ी आवश्यकता की पूर्ति हो सकेगी।
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