ऋषि युग्म का उद्बोधन

तुम कर्मों के भाग्य बदल दो

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               (विद्यावती मिश्र)

तुम कर्मों से भाग्य बदल दो,

भावी को निश्चय का बल दो,

युग अपने निर्भय हाथों से शिरा पकड़ लो अजय प्रलय की!

प्राण बदल दो राह समय की!!

तुम कर्मों के भाग्य0

बात करो नौका खेने की,

उस तट तक पहुंचा देने की,

बंदी करलो मंझधारों को, तुम सत्ता मानो न निलय की!

प्राण बदल दो राह समय की!!

तुम कर्मों के भाग्य0

हार, हार का स्वप्न असंभव,

एक अटल हो अभिनव अनुभव,

स्वयं मनुजता परिभाषा है जीवन की, जागृति की, जय की!

प्राण बदल दो राह समय की!!

तुम कर्मों के भाग्य बदल दो,

भावी को निश्चय का बल दो।

जहां कहीं भी अंधकार हो दीप जलाओ!

धरा और नभ पथ पर तम का वास न रहने दो,

यह अज्ञान-स्रोत जीवन के निकट न बहने दो,

जहां कहीं भ्रम का प्रसार हो पथ दिखाओ!

दीप जलाओ!!

जहां कहीं भी अंधकार हो दीप जलाओ!!

जब भी जलोगे तब ही जग को ज्योति मिलेगी,

पतझर का व्रत लोगे तब वाटिका खिलेगी,

जब संघर्षों की पुकार हो चरण बढ़ाओ!

दीप जलाओ!!

जहां कहीं भी अंधकार हो दीप जलाओ!!

है जलने का अन्त नहीं जल कर बुझ जाना,जलने की सीमा अवनी पर ऊषा लाना,

युग तरणी को कर्णधार बन पार लगाओ!

दीप जलाओ!!

जहां कहीं भी अंधकार हो दीप जलाओ!!
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