ऋषि युग्म का उद्बोधन

मरने से नहीं डरो रे

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वैराग्य छोड़ बाहों की विभा संभालो,

चट्टानों की छाती से दूध निकालो।

है रुकी जहां भी धार, शिलायें तोड़ो,

पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।

चढ़ तुंगशैल शिखरों पर सोम पियो रे,

योगियों नहीं, विजयी के सदृश जियो रे। मरने से नहीं0

छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाये,

मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाये।

दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,

मरता है जो, एक ही बार मरता है।

तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे,

जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे। मरने से नहीं0

आंधियां नहीं जिनमें उमंग भरती है,

छातियां जहां संगीनों से डरती हैं।

शोणित के बदले जहां अश्रु बहता है,

वह देश कभी स्वाधीन नहीं रहता है।

पकड़ो मशाल, अंधड़ पर उछल चढ़ो रे,

किरचों पर अपने तन का चाम मढ़ो रे। मरने से नहीं0
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