प्यार लुटाया तुमने गुरुवर
‘प्यार’ लुटाया तुमने गुरुवर, गायत्री के नाम पर।
दृष्टि तुम्हारी रही सदा ही, नवयुग के निर्माण पर॥
दिव्य हिमालय में जा तुमने, तप से तन को तपा दिया।
सूक्ष्म साधना की सिद्धि से, जनहित मन को लगा दिया॥
गायत्री परिवार बनाया, जप- तप बल की राह पर।
सात समन्दर गहराई में, ढूंढे तुमने मोती।
डुबकी खूब लगायी फिर भी, आश न पूरी होती॥
खोज निकाला निज शिष्यों को, चिंतन की गहराई पर।
नैतिक, बौद्धिक ,, सामाजिक उत्थान, तुम्हीं को प्यारा।
हम बदलेंगे, युग बदलेगा, गूँजेगा यह नारा॥
स्वर्ग धरा पर उतरेगा फिर, स्वर्णिम युग की चाल पर।
बनने को तैयार खड़े है हम, अगणित कर, पग, माथा।
ज्ञान ज्योति जग में फैलाकर, लिख देंगे वह गाथा॥
सतयुग झलकेगा जन- जन में, जलती लाल मशाल पर।
मुक्तक- साधना की आपने, दीं सिद्धियाँ हमको प्रभो!
सहज ही दीं, निज प्यार की निधियाँ प्रभो!
हम चलेंगे आपने हमको बताई राह जो।
लोकमंगल की सिखा दीं आपने निधियाँ प्रभो॥